केदार घाटी से बिपिन सेमवाल व लक्ष्मण सिंह नेगी की रिपोर्ट
केदारघाटी : केदारघाटी में एक अदद सुविधा संपन्न अस्पताल होता तो आज हमें सूरज नेगी को नहीं खोना पड़ता ,कुछ दिन पहले ही उसके छोटे भाई नीरज की गौरीकुंड आपदा में मौत हो गई थी । यह अचानक मौत नही, बल्कि इसे शासन द्वारा किया मर्डर माना जाए। डिप्रेशन के कारण लगातार छाती दर्द के चलते हार्ट अटैक से परिवार का बचा हुआ इकलौता सहारा सूरज भी चल बसा। महज सूरज ही क्यों, केदार घाटी की नियति ही बन चुकी है। प्रतिवर्ष इलाज के अभाव में दो दर्जन से अधिक महिलाएं, बच्चे और पुरुष लगातार मौत की आगोश में समा रहे हैं।
केदार घाटी की इकलौती संजीवनी बूटी के लिए विख्यात एलोपैथिक अस्पताल गुप्तकाशी अस्सी के दशक में बनने के बाद से लेकर 40 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी अभी भी यथावत बना हुआ है। उस दौर में इस अस्पताल का उद्घाटन करने वाले कई लोग तो आज इस धरती पर ही नहीं है। लेकिन सरकार की नाकामयाबी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि 40 वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक इस अस्पताल के उच्चीकरण की दिशा में कोई भी सकारात्मक पहल नहीं की जा रही है, जिसका खामियाजा इस अस्पताल से जुड़े हुए दो दर्जन से अधिक गांव के ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है।
अस्सी के दशक में गुप्तकाशी में एलोपैथिक अस्पताल स्थापित किया गया। इसके साथ ही काफी वर्ष बाद फाटा में और एक पीएचसी की स्थापना उखीमठ में की गई, लेकिन वक्त और मरीजों के बढ़ने के बाद भी इन अस्पतालों को सुविधा संपन्न बनाने और उच्चीकरण की दिशा कार्य सत्तासीन कांग्रेस और भाजपा के किसी भी जनप्रतिनिधि ने नही की। गुप्तकाशी केदारनाथ यात्रा का महत्वपूर्ण स्थान होने के साथ-साथ दर्जन भर से अधिक गांव का जंक्शन भी है। तोसी से चिलौंड और छेनागाड़ से त्युडी तक के तीन दर्जन से अधिक गांवों के मरीज गुप्तकाशी एलोपैथिक अस्पताल में ही इलाज लेते हैं, लेकिन यहां पर अल्ट्रासाउंड ,ब्लड बैंक, एक्स-रे जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण मरीजों को जिला चिकित्सालय रुद्रप्रयाग या फिर गंभीर बीमारी के चलते देहरादून या ऋषिकेश की और कूच करना पड़ता है।
तोसी गुप्तकाशी की दूरी लगभग 45 किलोमीटर की है, यदि ऐसे में किसी व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी लग जाती है, जिसे तत्काल इलाज की दरकार होती है, या प्रसूति महिलाओं की समस्याएं होती हैं, तो उनको लगभग गुप्तकाशी पहुंचते पहुंचते दो घंटे से अधिक का समय लग जाता है, ऐसे में यदि मोटर मार्ग बरसाती सीजन के दौरान क्षतिग्रस्त या बाधित हो तो मरीज बेहतर इलाज के अभाव में वाहनों में स्वर्ग सिधार जाते हैं। हालांकि कहने को तो केदारनाथ विधानसभा सीट से तीन बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस सत्तासीन रही है । और अभी भी उपचुनाव को लेकर तमाम पार्टियों के नेता टिकट की चाह में इस आपदा के दौरान औपचारिकता वर्ष आपदा ग्रस्त क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। लेकिन उनके जीत जाने के बाद वे क्षेत्र में दुबारा कम ही दर्शन होते हैं। विधायकों ने विधायक निधि से रास्ते, प्रतीक्षालय, रेलिंग, स्ट्रीट लाइट आदि का निर्माण जरूर किए हैं, लेकिन मूलभूत सुविधाओं को देने में इन जनप्रतिनिधियों ने कभी भी गंभीरता से मंथन या पहल नहीं की। गुप्तकाशी क्षेत्र में स्थित एलोपैथिक अस्पताल में कई बार तो एक मामूली गोली भी नहीं मिल पाती है।
विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम आने वाले तीर्थ यात्री या इस क्षेत्र में विभिन्न धार्मिक मठ मंदिरों में माथा टेकने के लिए प्रतिवर्ष लाखों की तादाद में यात्री आते हैं, उनमें से कई बार कई मरीज इलाज के अभाव तोड़ देते हैं। केदार घाटी के लोगों की नियति भी ऐसी ही बन गई है। सब भगवान भरोसा चल रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि पूर्व में कई बार गुप्तकाशी क्षेत्र के अंतर्गत नर्सिंग कॉलेज खुलवाने की दिशा में कार्य हुआ था, लेकिन बाद में अज्ञात कारणों के चलते यह दूसरी जगह शिफ्ट हो गया ।
अब गुप्तकाशी क्षेत्र में 50 बेड का उप जिला चिकित्सालय बनाने के लिए भूमि भी स्वास्थ्य विभाग को हस्तांतरित हो चुकी है। तमाम औपचारिकता एवं पूर्ण हो चुकी हैं, बावजूद इसके शासन स्तर से इस अस्पताल को बनाने के लिए पहल क्यों नहीं की जा रही है, सोचनीय विषय है।
सामाजिक कार्यकर्ता त्रिभुवन चौहान ने कहा नाला निवासी सूरज सिंह की मौत हार्ट अटैक नही मानी जाई, बल्कि शासन की घोर लापरवाही के चलते मर्डर माना जाए। उन्होंने कहा कि गत 24 वर्षों से जनता भाजपा और कांग्रेस को वोट देकर जिता रही है, लेकिन इनका ध्यान कभी भी जनता की मूलभूत असुविधाएं और मजबूरी पर नही गया है। उन्होंने कहा कि इस बार केदारनाथ उपचुनाव में किसी सशक्त और सक्षम निर्दलीय को चुनाव जीतने के लिए लोग संगठित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि आज गुप्तकाशी में सुविधा संपन्न अस्पताल होता है तो सूरज नेगी को आज इस तरह की मौत नसीब नहीं होती।
आपदा में हुई नीरज की मौत
कुछ दिन पूर्व गौरीकुंड आपदा में हुए नीरज की मौत और अब बड़ा भाई सूरज की भी हार्ट अटैक के कारण मृत्युगत हो गई। विकासखण्ड अगस्तमुनि की ग्राम पंचायत घिमतोली के स्वारी गांव निवासी सूरज अपने परिवार के साथ गत कई वर्षों से गुप्तकाशी नाला गांव में निवास कर रहा था। उसने मेहनत के बल पर आलीशान मकान भी बना लिया था। कुछ दिन पूर्व उसके छोटे भाई नीरज की गौरीकुंड त्रासदी के दौरान भूस्खलन की चपेट में आने से मौत हो गई थी।
इस दर्दनाक मौत से परिजन अभी उबर ही नही पाए थे, कि आपदा के 13 दिन के बाद उसके बड़े भाई सूरज सिंह की मौत भी हार्ट अटैक से हो गई है। सूरज के परिवार में उसकी विधवा मां है, और अब उसके तीन छोटे-छोटे बच्चे अनाथ हो चुके हैं । छोटे भाई के खोने का गम इतना नासूर बन गया , कि सूरज इससे उबर ही नहीं पाया। पारिवारिक जनों के अनुसार नीरज की मौत के बाद सूरज हर समय डिप्रेशन में रहने लगा। उसकी छाती में बार-बार दर्द हो रहा था। उसने नारायणकोटी स्थित माधव चिकित्सालय में खुद का ट्रीटमेंट करवाया। चिकित्सकों ने उसे शीघ्र टीएमटी और इको करने के लिए अच्छे सुविधा संपन्न अस्पताल के लिए जाने को बोला था। उसे बुधवार को देहरादून जाना था, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सूरज मंगलवार को दोपहर में खाना खाते समय हार्ट अटैक से हमेशा के लिए अपने हंसते खेलते परिवार से दूर हो गया । परिवार वालों का इन दो मौतों से रो रो के बुरा हाल है। पत्नी इस सदमे से बाहर नहीं आ पा रही है।छोटे-छोटे बच्चे बार-बार दरवाजे की ओर देखकर अपने पिताजी से बाट जोह रहे हैं। उन्हें क्या पता कि अब सूरज और नीरज कभी दोबारा इस घर में नही आयेंगे। ग्रामीण बताते हैं कि यदि क्षेत्र में ही कोई सुविधा संपन्न अस्पताल होता ,तो हम सूरज को बचा लेते । सूरज का सैकड़ों लोगों द्वारा नाला त्रिवेणी घाट पर नम आँखों से अन्तिम विदाई दी गयी। मात्र 13 दिनों की अवधि में दोनों भाइयों का निधन होने से उनके पैतृक गांव घिमतोली स्वारी सहित नाला गाँव में मातम पसरा हुआ है तथा जनप्रतिनिधियों, ग्रामीणों व विभिन्न सामाजिक संगठनों ने घटना पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की।