ऊखीमठ : केदारघाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं। दिसम्बर माह में बर्फबारी से लदक रहने वाला भू-भाग बर्फ विहीन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही हैं! निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की चिन्तायें बढ़ती जा रही है। जबकि केदार घाटी में मौसम के बार – बार करवट लेने से सम्पूर्ण केदार घाटी शीतलहर की चपेट में आने से जनमानस की दिनचर्या खासी प्रभावित हो रही है।आने वाले दिनों में यदि मौसम का मिजाज इसी प्रकार रहा तो बर्फबारी का आनन्द लेने वाले सैलानियों के आवागमन में भारी गिरावट आने से क्षेत्र का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है। विगत एक दशक पूर्व की बात कूरे तो केदार घाटी का हिमालयी क्षेत्र सहित सीमान्त भू-भाग दिसम्बर माह में बर्फबारी से लदक रहने से मानव व प्रकृति में नई ऊर्जा का संचार होने लगता था तथा फसलों की प्राप्त पानी मिलने से फसलों की उपज में खासी वृद्धि होने के साथ प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भी वृद्धि होने के आसार बने रहते थे। इस बार दिसम्बर माह के अन्तिम सप्ताह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं! पर्यावरणविद हर्ष जमलोकी का कहना है कि मानव द्वारा प्रकृति के साथ निरन्तर हस्तक्षेप करने से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या लगातार बढ़ने से मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं हो रही है तथा दिसम्बर माह में हिमालय के बर्फबारी विहीन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। ईको पर्यटन विकास समिति चोपता अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी का कहना है कि एक दशक पूर्व सम्पूर्ण तुंगनाथ घाटी दिसम्बर माह में बर्फबारी से लदक रहती थी मगर इस बार दिसम्बर माह के अन्तिम सप्ताह में भी बर्फबारी न होने से स्थानीय व्यापारी खासे मायूस है। मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भटट् का कहना है कि क्षेत्र में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से सम्पूर्ण केदार घाटी शीतलहर की चपेट में है तथा काश्तकारों की फसले समाप्ति की कंगार पर है! काश्तकार प्रकाश रावत ने बताया कि केदार घाटी के निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने के काश्तकारों की गेहूं, जौ, सरसों, मटर की फसलों सहित सब्जी के उत्पादन में खासा असर देखने को मिल रहा है।