रिपोर्ट रघुबीर नेगी
चमोली उत्तराखण्ड
भीगी पलकों के साथ भगवती नन्दा स्वनूल की कैलाश विदाई
उर्गम घाटी की आराध्य हिमालय वासियों की धियांण नन्दा स्वनूल आज भर्की गांव से भींगी पलकों के साथ कैलाश के लिए विदा हो गई। अष्टमी को मायके पहुंची थी नन्दा स्वनूल कुछ दिन मायके में रहकर अपनों से विदा हो गयी। भूमि क्षेत्र पाल घंटाकर्ण ने अपने छोटे भाई भर्की भूमियाल की नगरी पहुंचकर अपनी धियांण को भावुक माहौल में विदा किया। मां नन्दा स्वनूल को जागरों के माध्यम से समझा बुझा कर इस आशा के साथ कि हम जल्दी तुझे बुलाने आयेंगे नन्दा स्वनूल हिमालय के दूरस्थ गांवों के रग रग में बसी है।
यहाँ नन्दा को बेटी, बहु व धियांण का दर्जा प्राप्त है। दांकुड़ी, झूमेलो, जागरों व ढोल दमांऊ के साथ आज धियांण मैतियों से भैंटकर सबको आशीर्वाद देकर अपने ससुराल के लिए विदा हुई। मैतियों ने नन्दा स्वनूल को स्थानीय उत्पाद समुण देकर नन्दा को नन्दीकुड और स्वनूल को सोना शिखर के लिए विदा किया जागरवेताओं द्वारा जागरों के माध्यम से नन्दा स्वनूल के नन्दीकुड और सोना शिखर के विभिन्न पडावों समेत दैत्यों के वध का भी वर्णन किया जाता है। अन्त में छोटे भाई भर्की भूमियाल ने अपने क्षेत्र की खुशहाली सुख समृद्धि की कामना कर बडे भाई घंटाकर्ण भूमियाल को विदा किया।