भूस्खलन की चेतावनी देने वाले संकेतों के प्रति जागरूक होना जरूरी
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत में भूस्खलन का पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक परिष्कृत चेतावनी तंत्र का अभाव है। इस वजह से देश में
यह समस्या और जटिल हो जाती है। भूस्खलन के लिए संवेदनशील माने जाने वाले देश के किसी भी हिस्से को ले लें, हर जगह जल निकासी के इंतजाम खस्ताहाल हैं। इससे जान-माल की क्षति का खतरा और बढ़ जाता है। भारी
बरसात की वजह से भूस्खलन होते हैं। मानवजनित निर्माण कार्यों के कारण इसकी आशंका काफी बढ़ जाती है। खेती
या किसी अन्य कार्य के लिए पहाड़ी सतह को समतल करने के लिए इस्तेमाल होने वाली भारी मशीनें भी चट्टानों के खिसकने का कारण बनती हैं। सरकार ने ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां बार-बार भूस्खलन होते हैं। उनका नक्शा भी खींचा गया है।राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भूस्खलन और बर्फ की चट्टानों के खिसकने की घटनाओं के
प्रबंधन से जुड़े विस्तृत दिशा-निर्देश बनाए हैं, ताकि इन आपदाओं की विनाशक क्षमता को नियंत्रित किया जा सके।
भूस्खलन के जोखिम को कम करने वाले उपायों को संस्थागत रूप देने की कोशिश हो रही है, जिससे इस प्राकृतिक
आपदा से होने वाली क्षति को कम किया जा सके। भूस्खलन रोकने के लिए आवश्यक कार्यों को समयबद्ध तरीके से
पूरा करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इसमें कुछ को तो रोजाना तौर पर आजमाने की बात कही गई है। मसलन तूफानी बारिश के पानी को ढलानों से दूर रखा जाए। नालियों की नियमित तौर पर सफाई करके उनमें से
प्लास्टिक, वृक्षों के पत्ते और दूसरे कचरे निकाले जाएं।भूस्खलन की चेतावनी देने वाले संकेतों के प्रति जागरूक और सतर्क समाज इस चुनौती से निपटने में अहम योगदान कर सकता है। इनके अलावा ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण जिनकी जड़ें मिट्टी की पकड़ को मजबूत बनाती हैं, चट्टानों के गिरने के सर्वाधिक संभावित क्षेत्रों की पहचान और
चट्टानों में आने वाली दरारों की निगरानी जैसे उपाय भी बड़े कारगर साबित हो सकते हैं। ऊपरी हिस्से में कहीं
भूस्खलन हुआ है। किसी भी ढलान के उस समतल हिस्से पर जहां बहाव के वेग को कम किया जा सकता है, उसे सुरक्षित रखना चाहिए और जब तक नए पौधारोपण की तैयारी पूरी न हो चुकी हो तब तक पेड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए। भूस्खलन के प्रबंधन के लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच एक समन्वित और बहुआयामी नजरिए की
जरूरत होती है जिसे आवश्यक जानकारी और संस्थागत एवं वित्तीय सहायता मुहैया कराकर कारगर बनाया जा
सकता है। नैनीताल शहर के विकास, संरक्षण और भावी योजनाओं को लेकर बनाए जा रहे मास्टर प्लान में
बलियानाला सर्वाधिक संवेदनशील मुद्दा रहेगा। देश के नामी संस्थानों और विदेशी विशेषज्ञों के चार दिनी सर्वे और
अध्ययनों में यहीं तथ्य सामने आए हैं। अध्ययन में पता चला है कि पहाड़ी पर हर पल हलचल हो रही है। ऐसे में वर्षा के दौरान पहाड़ी पर भूस्खलन की समस्या बनी रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में बलियानाला का
भूस्खलन शहर के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट बन सकता है। इसलिए पहाड़ी का जल्द ट्रीटमेंट बेहद जरूरी है।
एडीबी वित्त पोषण से क्लाइमेट रेसिलियेंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट फार नैनीताल प्रोजेक्ट का क्रियान्वयन किया जा
रहा है। जिसमें नैनीताल की भावी जरूरतों, समस्याओं और समाधानों का अध्ययन कर मास्टर प्लान तैयार किया
जाना है। जिससे 20 वर्ष बाद शहर आने वाली चुनौतियों से निपटा जा सके।देश और विदेशी विशेषज्ञों ने अध्ययनों
के बाद बलियानाला में हो रहे भूस्खलन को ही सर्वाधिक संवेदनशील विषय बताया है। टीम के सदस्यों ने बताया कि
बलियानाला क्षेत्रीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है, जिसका सीधा कनेक्शन नैनीताल के अस्तित्व से है। पहाड़ी
के कई स्तरों पर कई विशेषज्ञ अध्ययन कर चुके हैं। मगर हर बार अध्ययनों में नए तथ्य सामने आ रहे हैं। यह तथ्य
शहर के लोगों की चिंता बढ़ाने वाले हैं। बलियानाला पहाड़ी का अध्ययन किया। टीम विशेषज्ञ ने बताया कि दो दिनों तक स्कैनर से हर आधे घंटे में पहाड़ी का स्कैन लिया गया। जिसमें सामने आया कि पहाड़ी में हर पल हलचल
हो रही है। बिना वर्षा के पहाड़ी से मिट्टी और धूल के कण गिर रहे हैं। वर्षा के पानी का पहाड़ी से रिसाव हुआ तो
भविष्य में यह बड़ा खतरा बन सकता है। ऐसे में समय रहते प्रबंधन बेहद जरूरी है। बलियानाला पहाड़ी में रिस्क
मैनेजमेंट सॉल्यूशन इंडिया व नीदरलैंड से पहुंचे विशेषज्ञों ने वाटर क्वालिटी, भूमिगत जल और अन्य पहलुओं का
अध्ययन किया। विशेषज्ञ शफीक ने बताया कि पहाड़ी से भारी मात्रा में पानी का रिसाव हो रहा है, जोकि भूमिगत
जल प्रतीत हो रहा है। लगातार पानी के रिसाव से पहाड़ी कमजोर हो रही है, जिसका समय रहते प्रबंधन बेहद
जरूरी है शहर के सबसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर नौकरशाहों गंभीर नहीं दिखती। हर वर्ष पहाड़ी पर भूस्खलन
होता है। जिसके ट्रीटमेंट के लिए कई बार सर्वे और अध्ययन हो चुके हैं। मगर अब तक ट्रीटमेंट शुरू करने को बजट
नहीं मिल सका।करीब डेढ़ वर्ष के अध्ययनों के बाद बीते वर्ष दिसंबर में जेंट्स टू कंसल्टेंट कंपनी की ओर से बनाई गई
डीपीआर को हाई पावर कमेटी के बाद मुख्य सचिव के समक्ष रखा गया। मुख्य सचिव ने प्रोजेक्ट को वित्तीय स्वीकृति
देते हुए जल्द कार्य भी शुरू करने के निर्देश दिए। मगर चार माह गुजरने के बाद भी बजट जारी नहीं हो सका है।
पर्वतीय क्षेत्रों में निर्माण कार्य और भारी बारिश से भूस्खलन की घटनाएं हर साल बढ़ती जा रही हैं। इससे जानमाल
का काफी नुकसान होता है। साथ ही रेल सेवाएं अवरुद्ध हो जाती हैं। हाईवे समेत कई सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते
हैं। इससे सबसे अधिक नुकसान विकासशील देशों में हो रहा है।