चमोली में मां नंदा देवी को अलग-अलग क्षेत्रों में अलग है विदाई का विधान

Team PahadRaftar

देवभूमि में मां नंदा यहां की आराध्य देवी के साथ बेटी के स्वरूप में भी पूजनीय है, हर वर्ष आयोजित लोकजात यात्रा में मां नंदा देवी का भव्य उत्सव मनाया जाता है

संतोष सिंह

देवभूमि उत्तराखंड में पग -पग पर देवी – देवताओं का वास है। यहां विश्व प्रसिद्ध चारधाम के साथ हजारों देवी – देवताओं के मंदिर स्थित हैं। उन्हीं में विश्व प्रसिद्ध नंदा राजजात यात्रा भी सामिल है।

यहां मां नंदा देवी को विभिन्न रूपों में पूजा जाता है। हर वर्ष आयोजित होने वाली लोकजात यात्रा में मां नंदा देवी को चमोली जिले में कर्णप्रयाग, पिंडर घाटी, नंदानगर दशोली में मां नंदा देवी को कैलाश के लिए विदा किया जाता है। वहीं पैनखंडा क्षेत्र में मां नंदा को कैलाश से बुलाकर गांव में बड़ा उत्सव मनाया जाता है और मां भगवती को जागरों के माध्यम से कैलाश विदा किया जाता है।

मां नंदा पहाड़ की अधिष्ठात्री देवी के साथ बेटी के रूप में भी पूजनीय है। यहां प्रतिवर्ष लोकजात यात्रा आयोजित की जाती है। सिद्धपीठ कुरूड में मां नंदा धाम स्थित है। यहां हर वर्ष लोकजात में बड़ा और भव्य उत्सव आयोजित होता है। इसके बाद मां नंदा देवी को ग्रामीणों द्वारा ऋतु फल समौण देकर कैलाश के लिए विदा किया जाता है।

यहां से दशोली व बधांण क्षेत्र की डोलियां विभिन्न पड़ावों से भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कैलाश के लिए विदा होती है। वहीं जोशीमठ विकासखंड में मां नंदा देवी को बेटी के रूप में दर्जनों गांवों से लोग मां नंदा को बुलाने के लिए कैलाश रवाना होते हैं और वहां से ब्रह्म कमल के साथ मां भगवती नंदा को बुलाकर लाते हैं। नंदा अष्टमी को यहां के सभी गांवों में नंदा उत्सव भव्य रूप में मनाया जाता है।

उर्गमघाटी क्षेत्र के दर्जनों गांवों में नंदा अष्टमी पर मां भगवती नंदा स्वनूल को ऋतु फलार काकड़ी, मुंगरी व चूडा सहित अन्य फलों को देकर मां नंदा को कैलाश विदा किया जाता है।

ऐसे ही सलूड, डुंगरा, सेलंग, जोशीमठ क्षेत्र, बदरीनाथ बामणी गांव में भव्य नंदा उत्सव मनाया जाता है। बड़ी संख्या में धियाणियां इस मेले में पहुंचकर मां नंदा देवी का आशीर्वाद लेकर मनौति मांगते हैं। युवा पीढ़ी अपनी इस पौराणिक और ऐतिहासिक लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग कर रहे हैं।

जिसका परिणाम है कि पहाड़ के सभी गांवों में नंदा उत्सव पर प्रवासी भी बड़ी संख्या में गांव पहुंच रहे हैं और अपनी संस्कृति और जड़ों से जुड़ रहे हैं। जिसके चलते गांवों में नंदा उत्सव पर रौनक लौट आ रही है।

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