ऊखीमठ। केदार घाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है परिणामस्वरूप वर्ष भर बर्फबारी से लदक रहने वाला हिमालय धीरे – धीरे बर्फ विहीन होता जा रहा है। इस बार के मौसम की बात करे तो मार्च महीने के प्रथम सप्ताह में ही जमीन तपने का अहसास होने लग गया है जबकि बसन्त ऋतु अपने निर्धारित समय से डेढ़ माह पूर्व अपने यौवन पर आ गई है।
आने वाले दिनों में यदि मेघराज नहीं बरसते हैं तो मई – जून में भारी पेयजल संकट गहरा सकता है। हिमालय के धीरे – धीरे बर्फ विहीन होने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है जबकि काश्तकारों के अरमानों पर पानी फिर गया है। बता दें कि केदार घाटी में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है मार्च महीने के आखिरी सप्ताह तक बर्फबारी से लदक रहने वाली तुंगनाथ घाटी सहित हिमालय बर्फ विहीन होता जा रहा है। इस वर्ष तुंगनाथ घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से शीतकालीन पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हुआ है जबकि प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरन्तर गिरावट देखी जा रही है, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या निरन्तर बढ़ने से इस वर्ष बसन्त ऋतु निरन्तर समय से पूर्व अपने यौवन पर आ गई है।
केदार घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से अप्रैल माह के तीसरे सप्ताह में तैयार होनी वाली सरसों की फसल फरवरी माह के अन्तिम सप्ताह में तैयार हो चुकी है। मार्च महीने में ही धरती के तपने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं। पर्यावरणविदों का मामना है कि यदि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप बन्द नही हुआ तो भविष्य में गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते है ! व्यापार संघ चोपता अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी बताते है कि तीन दशक पूर्व अप्रैल महीने तक तुंगनाथ घाटी बर्फबारी से लदक रहती थी मगर इस वर्ष फरवरी माह में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं हुई।