हॉकी के जादूगर को नहीं मिला भारत रत्न
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देहरादून : मेजर ध्यानचंद को खेल जगत की दुनिया में दद्दा कहकर पुकारते हैं। ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए जाते हैं। इस बार खेल रत्न पुरस्कार पैरा ऐथलीट दीपा मलिक और पहलवान बजरंग पूनिया को दिया जाएगा। उनसे जुड़ी 10 अहम बातें 16 साल की उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना के साथ जुड़ गए। इसके बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद को हॉकी का इतना जुनून था कि वह काफी प्रैक्टिस किया करते थे।
वह चांद निकलने तक हॉकी का अभ्यास करते रहते। इसी वजह से उनके साथी खिलाड़ी उन्हें चांद कहने लगे थे। 1928
एम्सटर्डम ओलिंपिक गेम्स में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे। उन खेलों में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। एक अखबार ने लिखा था, यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं। 1932 के
ओलिंपिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था। उस मैच में ध्यानचंद ने 8 और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। उस टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल इन दो भाइयों की जोड़ी की स्टिक से निकले थे। इसमें 15 गोल रूप सिंह ने किए थे। एक मैच में 24 गोल दागने का 86 साल पुराना यह रेकॉर्ड भारतीय हॉकी टीम ने 2018 में इंडोनेशिया में खेले गए एशियाई खेलों में हॉन्गकॉन्ग को 26-0 से मात देकर तोड़ा। क्रिकेट के सर्वकालिक महान बल्लेबाज माने जाने वाले सर डॉन ब्रैडमैन ने 1935 में ध्यानचंद से मुलाकात की थी। ब्रैडमैन ने ध्यानचंद के बारे में कहा था कि वह ऐसे गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं। विएना के एक स्पोर्ट्स क्लब में ध्यानचंद के चार हाथों वाली मूर्ति लगी है, उनके हाथों में हॉकी स्टिक हैं। यह मूर्ति बताती है कि उनकी स्टिक में कितना जादू था। ध्यानचंद की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह दूसरे खिलाड़ियों की अपेक्षा इतने गोल कैसे कर लेते हैं। इसके लिए उनकी हॉकी स्टिक को ही तोड़ कर जांचा गया।
नीदरलैंड्स में ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर यह चेक किया गया था कि कहीं इसमें चुंबक तो नहीं लगी। ध्यानचंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही बार भारत ने गोल्ड मेडल जीता। एक मैच में ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे।
उन्होंने मैच रेफरी से गोल पोस्ट की चौड़ाई जांचने को कहा। जब ऐसा किया गया तो हर कोई हैरान रह गया। गोलपोस्ट
की चौड़ाई मानकों के हिसाब से कम थी।बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद के शानदार प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने
उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। इस तानाशाह ने उन्हें जर्मन फौज में बड़े पद पर जॉइन करने का न्योता दिया। हिटलर
चाहता था कि ध्यानचंद जर्मनी के लिए हॉकी खेलें। लेकिन ध्यानचंद ने इस ऑफर को सिरे से ठुकरा दिया। उन्होंने कहा,
हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगी भर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा। भारत सरकार ने उनके सम्मान में साल 2002में दिल्ली में नेशनल स्टेडियम का नाम ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम किया।
दुनिया के खेलों के नक्शे पर अपनी हॉकी से बार बार भारत का नाम सुनहरे हरफों में लिखने वाले ध्यानचंद की
जन्मस्थली प्रयागराज ने देश को एक दर्जन से अधिक अन्तरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिए, लेकिन अब मूलभूत सुविधाओं और पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में शहर में राष्ट्रीय खेल के कद्रदां कम रह गए हैं। भारत में हॉकी के स्वर्णिम युग की बात हो तो ध्यानचंद और उनके जादुई खेल की बात होना लाजिमी है। इसके बावजूद प्रयागराज में मेजर ध्यान चंद के नाम पर एक भी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स या स्टेडियम नहीं होने पर खेद जताते हुए ध्यान चंद के पुत्र अशोक कुमार ने पीटीआई भाषा से कहा, कोई भी शहर अपनी विभूतियों पर गर्व करता है और उनकी उपलब्धियों को अपनी धरोहर मानता है। लक्ष्मीबाई के नाम के साथ झांसी का नाम सदा जुड़ा रहा है। लोग अपने नाम के साथ अपने शहर का नाम जोड़ना शान की बात समझते हैं। इलाहाबाद के लोगों को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद पर गर्व है। उन्होंने कहा, इस सब के बावजूद यह बात अपने आप में हैरान करती है कि इलाहाबाद में हॉकी से जुड़े लोगों ने सरकार से मेजर ध्यान चंद के नाम पर
स्टेडियम या स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनाने की मांग कभी नहीं की। इसी तरह भारत रत्न के लिए उनके नाम का तीन बार
अनुमोदन होने के बाद भी बाबू जी को भारत रत्न नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि प्रयागराज में मदन मोहन मालवीय
के नाम पर एक स्टेडियम है, जबकि अमिताभ बच्चन के नाम पर एक स्पोर्ट्स कांप्लेक्स है। उत्तर प्रदेश के हॉकी टीम से
खेलने वाले राजेश वर्मा ने बताया कि इलाहाबाद से आनंद सिंह, इदरीस अहमद, एलबर्ट कैलव, रामबाबू गुप्ता, जगरुद्दीन, सुजित कुमार, ए.एच. आब्दी, आतिफ इदरीस, दानिश मुजदबा जैसे एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इसके बावजूद शहर में हॉकी की बात करने वाले लोग ज्यादा नहीं बचे।भारतीय हाकी टीम को इतने
खिलाड़ी देने वाले इस शहर में एस्ट्रो टर्फ का एक भी मैदान नहीं है, जबकि बनारस, मुरादाबाद, रामपुर, गाजीपुर, सैफई
और झांसी में एस्ट्रो टर्फ लगा है। हॉकी खिलाड़ी दानिश मुजतबा ने बताया कि इलाहाबाद में हॉकी के पिछड़ने की सबसे बड़ी वजह एस्टो टर्फ का न होना है क्योंकि हमें आगे इसी पर खेलना होता है। इसके अलावा, यहां अच्छे ट्रेनर और मैदान की कमी है। उन्होंने कहा कि अब इलाहाबाद में कुछ ही कालेजों में हॉकी की नर्सरी रह गई है जिसमें इस्लामिया कालेज शामिल है। एक समय कर्नलगंज इंटर कालेज और केपी कालेज में अच्छी प्रैक्टिस हुआ करती थी, लेकिन वहां जगह की कमी होने से अब प्रैक्टिस नहीं होती। एक अन्य हॉकी खिलाड़ी शाहिद कमाल ने शहर में हॉकी की स्थिति खराब होने के लिए यहां से निकले खिलाड़ियों को भी जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जो खिलाड़ी आगे निकले जाते हैं और हॉकी के बल पर नौकरी हासिल कर लेते हैंए वे फिर कभी मुड़कर नहीं देखते ए जबकि उन्हें नई प्रतिभाओं को निखारने के लिए आगे आना चाहिए। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। पूरा देश इस महान शख्सियत को नमन कर रहा है। तमाम खेल पुरस्कार मिलने के बाद भी उनके योगदान को देखते हुए लगातार भारत रत्न देने की मांग काफी लम्बे समय से चली आ रही है ए देखना होगा कि इस दिग्गज को यह सम्मान कब मिलता है। स्पोर्ट्सकीड़ा परिवार भी मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि अर्पित करता है। बर्लिन में 1936 में हुए ओलम्पिक खेलों के बाद उनके प्रदर्शन से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया था। हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से हॉकी खेलने का प्रस्ताव भी दिया था उनकी मृत्यु के बाद, उनके जीवन को सम्मान देने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली में उनके नाम पर एक हॉकी स्टेडियम का उद्घाटन किया गया। इसके अलावा भारतीय डाक सेवा ने ध्यानचंद के नाम से डाक टिकट भी चलाए। लेकिन मेजर ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि उनका देश भारत है तथा वे इसके लिए ही खेलेंगे वर्ष 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने पहली बार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लिए खेल क्षेत्र को भी विभिन्न श्रेणियों में शामिल किया, परन्तु खेल क्षेत्र में पहला भारत रत्न पाने के प्रबल दावेदार माने जाने जा रहे दिवंगत हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के बजाय क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न से सम्मानित कर दिया गया। तब से अब तक देश के हॉकी खेल प्रेमी और मेजर ध्यान चन्द के फैन्स इसी उम्मीद में बैठे हैं कि आखिर हॉकी के इस महान जादूगर मेजर ध्यान चन्द को कब मिलेगा देश का सर्वोच्च सम्मान। वह भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाडी व कप्तान थे उन्हें भारत एवं विश्व हॉकी के क्षेत्र में सबसे बेहतरीन खिलाडियों में शुमार किया जाता है। वे तीन बार ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे हैं। इनमे से 1928 का एम्सटर्डम
ओलोम्पिक, 1932 का लॉस एंजेल्स ओलम्पिक और 1936 का बर्लिन ओलम्पिक शामिल है। 3 दिसंबर 1979 को जब उन्होंने दुनिया से विदा ली तो उनके पार्थिव शरीर पर दो हॉकी स्टिक क्रॉस बनाकर रखी गई। ध्यानचंद ने मैदान पर जो जादू’ दिखाए, वे इतिहास में दर्ज है। अब इसे मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के नाम से जाना जाएगा। मेजर ध्यानचंदको भारत रत्न दिए जाने का प्रस्ताव हर बार सरकार के पास भेजा जाता रहा है लेकिन, सन 2015 में अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणब मुखर्जी को और सन 2019 में भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को यह सम्मान दिया गया।
लेकिन हॉकी के जादूगर की बारी नहीं आ सकी.इससे पहले यह अवॉर्ड पूर्व प्रधानमंत्री के नाम हुआ करता था। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के जरिए इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मुझे पूरे भारत के नागरिकों से खेल रत्न पुरस्कार का नाम मेजर ध्यानचंद के नाम पर रखने के लिए कई अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं। उनकी भावना का सम्मान करते हुए, खेल रत्न पुरस्कार को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाएगा। अपने जीवन काल में ही एक मिथकीय हीरो बन चुके हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' दिए जाने की मांग और चर्चा अक्सर होती रही है लेकिन यह जानना दिलचस्प होगा कि उन्हें यह सम्मान क्यों और कैसे नहीं मिला
लेखक दून
विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।