कई गुणों की खान है पहाड़ी फल ‘काफल’
हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत में कुछ ऐसे फल हैं, जो एकदम स्थानीय माने जाते हैं। क्योंकि पकने के बाद वे आसपास के बाजारों या स्थानीय मण्डी में ही बिकते हैं। न तो वे इतने अधिक पैदा होते हैं और न ही उनमें कई दिन तक ताजा रहने की क्षमता होती है, जिस कारण वे बिकने के लिए अपने इलाके से बाहर नहीं निकल पाते, लेकिन स्थानीय लोग ऐसे फलों के गुणों के कायल होते हैं। ऐसा ही एक फल है ‘काफल’। मीठे और तीखे स्वाद वाला यह फल अद्भुत है। यह पेट के रोगों से दूर रखता है। यह फल एंटी-आॅक्सीडेंट से भरपूर है, जो अधिकतर बीमारियों में कारगर है। लोकगीतों में इस फल का वर्णन है और एक राज्य का तो यह राजकीय फल है। गर्मियों के मौसम में उत्तराखण्ड के पहाड़ी जिलों में फलों की बहार आ जाती है। पेड़ मौसमी फलों से लदना शुरू हो जाते हैं। काफल भी उन्हीं मौसमी फलों में से एक है। मौजूदा सीजन में पहली बार जब पहाड़ों से काफल हल्द्वानी के बाजार में पहुंचा तो देखते ही देखते खरीददारों की भीड़ उमड़ पड़ी। 240 रूपये किलो की कीमत वाला काफल अल्मोड़ा के लमगड़ा क्षेत्र से हल्द्वानी पहुंचा। हालांकि जंगलों में आग लगने और समय से बारिश नहीं होने से इस बार काफल में रस की कमी जरूर आई है। ऐसे में जब खट्टे और मीठे स्वाद से भरपूर काफल पहाड़ों से निकलकर बिकने लगा तो लोगों ने इसे खरीदने में देर भी नहीं लगाई। काफल को देखकर किसी की बचपन की यादें ताजा हुईं तो कोई इसके स्वाद का दीवाना निकला। बताते चलें कि पहाड़ों में 4000 फीट से 6000 फीट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उगने वाला काफल स्थानीय ग्रामीणों की आर्थिकी का जरिया भी है। बात यदि सेहत की करें तो काफल एंटी-आॅक्सीडेंट गुणों के कारण हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है। अत्यधिक रस युक्त और पाचक होने के कारण काफल को खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। काफल के अनेक औषधीय गुण आयुर्वेद में मिलते हैं। यह फल अपने आप में एक जड़ी-बूटी है। चरक संहिता में भी इसके अनेक गुणकारी लाभों के बारे में वर्णन है। काफल के छाल, फल, बीज, फूल सभी का इस्तेमाल आयुर्वेद में किया जाता है। काफल सांस संबंधी समस्याओं, डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, सूजन, जलन, मुंह में छाले, मूत्रदोष, बुखार, अपच, शुक्राणु के लिए फायदेमंद और दर्द निवारण में उत्तम है। इन दिनों तराई क्षेत्र में गर्मी शुरू होते ही पर्यटकों का रूख पहाड़ की ओर है। ऐसे में सैलानी भी यहां पहाड़ की ठंडी हवा और रसीले काफल का स्वाद लेने से नहीं चूक रहे हैं। काफल पेट के लिए काफी लाभदायक बताया जाता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तो यह एंटी आॅक्सीडेंट गुणों के कारण शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। यही नहीं इसके निरन्तर सेवन से कैंसर एवं स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है। इसका पेड़ कहीं उगाया नहीं जाता बल्कि अपने आप उगता है। इस फल को खाने से पेट के कई विकार दूर होते हैं। मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है। इसके तने की छाल का क्षार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिस तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। काफल के पेड़ की छाल का उपयोग टैनिंग के लिए भी किया जाता है। काफल का फल शरीर को ठण्डक प्रदान करता है। यह हृदय रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करता है। फरवरी माह में इसके पेड़ में फूल आने शुरू हो जाते हैं और अप्रैल तक यह पक और बिक कर निपट जाता है। रसभरी जैसा स्वाद वाला काफल बेहद ही स्थानीय फल है। यह नाजुक सा फल ज्यादा दिन तक नहीं टिकता। यह देवदार व बांज के पेड़ों के बीच में उगता है। स्थानीय लोग इस खट्टे-मीठे फल को नमक या सेंधा नमक और मिर्च पाउडर के साथ खाना पसंद करते हैं। शुरू में इसका रंग हरा होता है और अप्रैल माह के आखिर में यह फल पककर तैयार हो जाता है, तब इसका रंग सुर्ख लाल हो जाता है। चूंकि पहाड़ी क्षेत्र में यह कम और सीमित अवधि में उगता है, इसलिए स्थानीय बाजार या मण्डी में ही बिक जाता है। काफल फल का हर जगह स्वाद एक है लेकिन नाम हर जगह अलग-अलग हैं। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलंेटा के नाम से भी जाना जाता है। हिमाचल से लेकर गढ़वाल, कुमाऊं व नेपाल में इसके काफी बड़े-बड़े पेड़ पाए जाते हैं। आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है, जबकि अंग्रेजी में बाक्स मिर्टल के नाम से जाना जाता है। मेघालय में इसे सोह-फी के नाम से जाना जाता है। काफल का जूस व्यक्ति के डाइजेशन से जुड़ी हर बीमारी को ठीक करने में सक्षम होता है। इस फल में कई प्रकार के प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं, जैसे- माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स। इसके अलावा इसकी पत्तियों में फ्लावेन-4 और हाइड्रोक्सी-3 भी पाया जाता है।