हे गिरिधर तेरी धरती पे,फिर से दुशासन आया है।
फिर किसी नारी का दामन,संकट से गहराया है।
आ जाओ तुम किसी भेष में पापी साम्राज्य मिटाने को,
न्याय माँग रही वो नारी आ जाओ न्याय दिलाने को।
कैसे जीत गये दरिंदे,मर्यादा क्यों हार गई।
क्रूरता निर्दयता की हद,क्यों अबकी हद के पार गयी।
अस्थि तोड़ी जिह्वा काटी,क्यों ऐसे लाचार किया।
क्रूर दरिंदों ने क्यों ऐसे,मानवता को शर्मसार किया।
बेटी ही नहीं बेटों को भी,हर संस्कार सिखाना होगा।
अब गरिमा का अर्थ उन्हें,बचपन से बतलाना होगा।
देने होंगे यह संस्कार,हर औरत का सम्मान करो।
हर स्त्री बेखौफ जी पाये,अब दिल में ये अरमान करो।
हो अंधेरा या उजाला,अब खौफ ना हो आँख में।
उनकी दिल की ख्वाहिशों को,कोई मिला ना पाए राख में।
चोट शरीर को भेद के उसके,हृदय पर है यूँ लगी।
कि मानों दे रही सजा अब,पल-पल उसको जिंदगी।
अखबारों मैं फिर क्यों कोई,दुखद समाचार आएगा।
पुरुष भी यदि गरिमा में होगा,तो निश्चित सुधार आएगा।
न्यायधीश बनके तुम प्रभु, दुष्टों को दंडित कर दो ना।
नारी पर बुरी नजर रखने वालों को,पूर्ण रूप से खंडित कर दो ना।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल “ख्याति”
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड