बुद्ध पूर्णिमा के पावन पर्व पर उच्च हिमालई पौराणिक हिंदू दंडी पुष्करणी तीर्थ श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट खुले, श्रद्धालुओं ने लगाई पवित्र सरोवर में आस्था की डुबकी
संजय कुंवर, श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर,घांघरिया
चमोली जनपद की उच्च हिमालई लोकपाल घाटी में स्थित हिंदू आस्था का संगम पौराणिक तीर्थ श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट विधि विधान पूर्वक खुले, आज बुध पूर्णिमा के पावन पर्व पर खुले इस पौराणिक दंडी पुष्कर्णी तीर्थ और लोकपाल भ्यूंडार घाटी के रक्षक श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट। सुबह लोकपाल लक्ष्मण मंदिर समिति के पदाधिकारियों और पुलना घाटी के ग्रामीणों की उपस्थिति में द्वार पूजन के बाद मुख्य पुजारी द्वारा विधि विधान पूर्वक खोले गए। श्री लक्ष्मण मंदिर के कपाट,खुशनुमा मौसम के बीच आज कपाट खुलने के बाद श्री लोकपाल देवता की साल की पहली अभिषेक पूजा अर्चना हुई और भोग लगाया गया। मंदिर के मुख्य पुजारी कुशल सिंह, कुंदन सिंह, बसावर सिंह, ईश्वर सिंह, देवेश सिंह आदि ने बताया कि
श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के कपाट खुलने के अवसर पर पुलना भ्यूंडार घाटी से काफी श्रद्धालुओं ने आज बुध पूर्णिमा के पावन अवसर पर पवित्र अमृत सरोवर दंडी पुष्कर्णी सरोवर में आस्था की पवित्र डुबकी लगाई और लोकपाल घाटी के आराध्य देव श्री लोकपाल लक्ष्मण जी और मां भगवती के दर्शनों का पुण्य लाभ अर्जित किया। हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के समीप स्थित इस पौराणिक हिंदू तीर्थ श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर में अब आज से श्रद्धालु दर्शन के लिए आ सकते हैं, घंगरिया गोविंद धाम से लेकर श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर/हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे तक पैदल आस्था पथ पर आवाजाही सुगमता के साथ हो रही है। दरअसल श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर के बारे में लोक मान्यता है कि यहां इसी लोकपाल घाटी में पवित्र सरोवर के किनारे भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी ने अपने पूर्व जन्म में शेषनाग अवतार के रूप में घोर तपस्या की थी.यह मंदिर श्री हेमकुंड साहिब गुरुद्वारे के समीप पवित्र हिम सरोवर के निकट ही मौजूद है.समुद्र तल से 15 हजार 225 फीट की ऊंचाई पर होने के साथ साथ विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित लक्ष्मण मंदिर है. जहां देश विदेश के कोने कोने से श्रद्धालु पहुंचते हैं. साथ ही यहां भ्यूंडार गांव के ग्रामीण पूजा अर्चना के लिए जाते हैं. साथ ही हेमकुंड साहिब जी आने वाले सभी तीर्थयात्री श्री लोकपाल लक्ष्मण मंदिर में मत्था टेकना नहीं भूलते हैं.