भूस्खलन प्रभावित सोनल बीआरओ के लिए बना सरदर्द
डॉ.हरीश चन्द्र अन्डोला
राज्य में प्राकृतिक खतरों का एक अन्य रूप भूस्खलन की घटना है। हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियां व पहाड़ मानसून के दौरान भूस्खलन के लिए उत्तरदायी हैं और उच्च तीव्रता भूकंप भी आते हैं। विभिन्न हिमालय पर्वतमाला में भौगोलिक संवेदनशीलता युवा हैं और स्थिर खड़ी ढलान पर स्थिर नहीं हैं, अनुचित वनों की कटाई, सड़क काटने, सीढ़ीदार खेत और अधिक गहन पानी की आवश्यकता वाली कृषि फसलों में परिवर्तनों जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण हाल के दशक में तेजी से दर से बढ़ रही है।
कर्णप्रयाग -ग्वालदम -अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन प्रभावित सोनल जहां बीआरओ के लिए सरदर्द बन कर रह गया हैं। वहीं इस स्थान के ठीक ऊपर पहाड़ी पर बसें सीम गांव के परिवारों के ऊपर खतरें के बादल मंडराने लगे हैं। कर्णप्रयाग -ग्वालदम -अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन प्रभावित सोनल जहां बीआरओ के लिए सरदर्द बन कर रह गया हैं। वहीं इस स्थान के ठीक ऊपर पहाड़ी पर बसें सीम गांव के परिवारों के ऊपर खतरें के बादल मंडराने लगे हैं।
कर्णप्रयाग-ग्वालदम-आल्मोडा पर थराली से कर्णप्रयाग की ओर 2 किमी आगे सोनला नाम स्थान पर पिछले 5-6 सालों से लगातार भूस्खलन होता आ रहा है। जिस कारण बरसात में लगातार मार्ग बंद होता आ रहा है। इस वर्ष इस भूस्खलन का दायरा बढ़ गया हैं। जिस कारण मार्ग को यातायात के लिए खुले रखने के लिए बीआरओ को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ रही हैं। यहां पर मार्ग खोलने के लिए दो – दो जेसीबी मशीनों को लगाया जा रहा है तब जाकर मार्ग को कुछ घंटों के लिए खोला जा रहा है।जहां एक ओर मार्ग इस स्थान पर बीआरओ के लिए सरदर्द बना हुआ हैं। वहीं ठीक इस स्लाइड जोन के ऊपर बसें सीम गांव के ऊपर भी खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। भूस्खलन प्रभावित सोनल का ट्रीटमेंट करने के लिए सरकार के द्वारा धनराशि की स्वीकृति मिल चुकी है। किंतु अभी बरसात होने के कारण ट्रीटमेंट जम्मू का कार्य शुरू नही कर पा रहे हैं। जैसे ही बरसात खत्म हो जाएगी इस स्थान पर ट्रिटमेंट का कार्य शुरू कर स्थाई समाधान किया जाएगा। इस भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र के ऊपर भाग से गदेरे का पानी इस स्थान पर आ रहा है जिससे भूस्खलन का दायरा बढ़ता जा रहा है। सोनला स्लाइड जोन के ऊपर बसें सीम गांव लगातार धंसता जा रहा है। जितना डीजीबीआर के द्वारा सड़क को खोलने के लिए मलवा हटाया जा रहा है, उतना ही सीम गांव बैठता जा रहा है। सीम गांव के 15 परिवारों के ऊपर खतरें के बादल मंडरा रहे हैं। उनको सुरक्षित रखने के लिए प्रशासन को इन परिवारों का विस्थापन के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। उत्तराखण्ड में बारिश का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। दिन प्रतिदिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। आलम ये है भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से लोग दहशत में जी रहे हैं।
चमोली जिले के पगनों गांव में गुरूवार देर रात हुई भारी बारिश ने खूब तबाही मचाई। इस दौरान जहां दो गौशाला और चार मकान क्षतिग्रस्त हो गए। वहीं घरों के आगे मलबे के ढेर लगे हुए हैं। बारिश का रौद्र रूप देख ग्रामीण रात में जान बचाकर भागे। रात भर ग्रामीण इधर-उधर जान बचाते रहे। यहां रह रहे परिवार खतरे के बीच जिंदगी गुजार रहे हैं। इससे गांव के लोगों में दहशत का माहौल है। गुरुवार देर रात अचानक तेज बारिश हुई और पानी के साथ भारी भरकम मलबा गांव में घुस गया। ग्रामीणों ने बताया कि अब स्थिति यह आ गई है कि बारिश होते ही मलबा गांव में आ रहा है। खेत, खलियान, रास्ते सब मलबे से भरे हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि दोपहर को तो मलबा आने का पता चल रहा है, लेकिन रात को यदि बारिश होती है तो कोई भी सो नहीं पाता है।
बता दें कि तीन साल से पगनों गांव के ऊपर से भूस्खलन हो रहा है। जिससे गांव के 53 परिवारों के उपर खतरा मंडरा रहा है। उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं होने पर कुछ परिवार जोखिम वाले घरों में ही रहने को मजबूर हैं। पहाड़ों के दरकने का सिलसिला शुरू हो जाता है। जगह-जगह से लैंडस्लाइड की घटनाएं सामने आने लगती हैं ऐसी स्थिति से निपटने के लिए विश्वसनीयता और स्थिरता की दृष्टि से देश के मानसून पूर्वानुमान की बेहतर प्रणाली स्थापित करने की बेहद जरूरत है, तभी इस दिशा में कुछ सार्थक बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)