ऊखीमठ में हैंड पंप व स्टेंड पोस्ट बने शोपीस, लोग बूंद-बूंद पानी को मोहताज

Team PahadRaftar

लक्ष्मण नेगी

ऊखीमठ :  विकासखण्ड मुख्यालय प्रवेश द्वार पर लगे हैड़ पम्प व टैंक टाइप स्टेंड पोस्ट विगत कई वर्षों से सो पीस बनने से आम जनता को दो बूंद पानी के लिए दर – दर भटकना पड रहा है। हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट के शो पीस बनने से जल संस्थान विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार हैड़ पम्प पर शीध्र मोटर लगाकर पेयजल आपूर्ति करने की कार्यवाही की जा रही है जबकि पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना पर पानी की सप्लाई क्षमता से कम होने के कारण टैक टाइप स्टेड पोस्ट पर पेयजल आपूर्ति सुचारू नहीं हो पा रही है।

बता दें कि विकासखण्ड मुख्यालय में आवाजाही करने वाले जनप्रतिनिधियों व ग्रामीणों को पेयजल आपूर्ति मुहैया कराने के उद्देश्य से कई वर्षों पूर्व जल संस्थान विभाग द्वारा विकासखण्ड मुख्यालय के प्रवेश द्वार के निकट तथा भारत सेवा आश्रम – ऊखीमठ मोटर मार्ग के किनारे हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट का निर्माण तो किया गया था मगर विगत कई समय से हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट पर पेयजल आपूर्ति बाधित होने से आमजनता व स्थानीय व्यापारियों को हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट का लाभ नहीं मिल पा रहा है। पूर्व में जब ऊखीमठ नगर क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति बाधित हो जाती थी तो राहगीर व स्थानीय व्यापारी हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट का सहारा लेते थे मगर विगत लम्बे समय से राहगीरों व स्थानीय व्यापारियों को बूंद – बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। कांग्रेस कमेटी प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य व पूर्व व्यापार संघ अध्यक्ष आनन्द सिंह रावत का कहना है कि एक तरफ प्रदेश केन्द्र व प्रदेश सरकारें पहाड़ का पानी व पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम आने का ढिंढोरा पीट रही है वही शासन – प्रशासन व विभागीय लापरवाही के कारण राहगीरों को दो बूंद पानी के लिए दर – दर भटकना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि विकासखण्ड मुख्यालय के निकट से ऊखीमठ – गुप्तकाशी जीप, टैक्सियों का संचालन होता है तथा कई बार सवारियों को घण्टों इन्तजार करने के बाद पानी की जरूरत पड़ती है तो उन्हें भी दुकानों का सहारा लेना पड़ता है। उन्होंने कहा कि विकासखण्ड मुख्यालय के प्रवेश द्वार पर लगे हैड़ पम्प व टैक टाइप स्टेड पोस्ट के लावारिस होना शासन – प्रशासन व विभाग की उदासीनता दर्शाता है। वहीं दूसरी ओर जल संस्थान के अवर अभियन्ता बीरेन्द्र भण्डारी ने बताया कि हैड़ पम्प पर मोटर लगाने की कार्यवाही गतिमान है तथा लोकसभा चुनाव के बाद हैड़ पम्प पर मोटर लगाने के प्रयास किये जायेंगे। उन्होंने बताया कि विगत कई वर्षों से जलवायु परिवर्तन के कारण दिसम्बर व जनवरी माह में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से नदियों व प्राकृतिक जल स्रोतों का जल स्तर निरन्तर कम होता जा रहा है जिस कारण पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना पर पानी की सप्लाई कम होने के कारण टैक टाइप स्टेड पोस्ट पर पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है। ऊखीमठ – स्थानीय जनप्रतिनिधियों व जनता द्वारा लम्बे समय से पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना के पुर्नगठन की मांग की जा रही है। पेयजल योजना के पुर्नगठन के लिए कई बार पत्राचार भी किया गया है मगर पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना पुर्नगठन की फाइल शासन की आलमारियों में कैद रहने से पेयजल योजना का पुर्नगठन नहीं हो पा रहा है। गुरिल्ला संगठन की जिलाध्यक्ष बसन्ती रावत का कहना है कि यदि समय रहते पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना का पुर्नगठन नहीं हुआ तो भविष्य में भारी पेयजल संकट गहराने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।

ऊखीमठ – विभागीय जानकारी के अनुसार पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना का निर्माण का निर्माण 70 के दशक में हुआ था। पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना के निर्माण के समय मात्र 50 निजी कनेक्शन थे जो वर्तमान समय में बढ़कर 600 से ऊपर हो गयें हैं ऐसी दशा में पेयजल संकट गहराना स्वाभाविक ही। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार विगत कई वर्षों से जलवायु परिवर्तन के कारण दिसम्बर, जनवरी व फरवरी माह में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से आकाशकामिनी नदी के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट देखने आ मिल रही है इसलिए कई क्षेत्रों में जल संकट गहराने लगा है। यदि भविष्य में पिगलापानी – ऊखीमठ पेयजल योजना का पुर्नगठन नहीं हुआ तो यहाँ के जनमानस को बूंद – बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ेगा। ऊखीमठ – बद्री केदार मन्दिर समिति सदस्य व नगर पंचायत केदारनाथ के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास पोस्ती के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय आवागमन के कारण निरन्तर जलवायु परिवर्तन देखने को मिल रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण ही नदियों व प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरन्तर गिरावट आ रही है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। उनका कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही दिसम्बर, जनवरी माह में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश नहीं हो पा रही है तथा जलवायु परिवर्तन के कारण ही मार्च महीने में खिलने वाले विभिन्न प्रजाति के पुष्प जनवरी माह में ही खिलते नजर आ रहें हैं। उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन गम्भीर समस्या है तथा आने वाले समय में प्रकृति का संरक्षण व संवर्धन नहीं हुआ पर्यावरण की समस्या लगातार बढ़ती जायेगा जिसका परिणाम प्राणी जगत को भुगतना पड़ेगा।

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