फ्यूलानारायण धाम जहां नारी को है नारायण के श्रृंगार का अधिकार, कैसे पहुंचे धाम पढ़ें पहाड़ रफ्तार – रघुवीर नेगी की खास रिपोर्ट

Team PahadRaftar

रिपोर्ट रघुबीर नेगी

फ्यूलानारायण के दरबार में नारी को है विशेष सम्मान भगवान नारायण के श्रृंगार का अधिकार

उर्गम घाटी में कल्पेश्वर महादेव के शीर्ष पर स्थित फ्यूलानारायण भगवान् जहां नारी को है भगवान के श्रंगार का अधिकार। नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमालय की सुरम्य वादियों में सुन्दर फिजाओं के बीच विराजते हैं श्री फ्यूलानारायण। 16 जुलाई को भक्तो के दर्शनाथ हेतु विधि विधान के अनुसार सुबह 12 बजे लोक कल्याण हेतु खोल दिये गये हैं। भगवान फ्यूनारायण भक्तों को नन्दा अष्टमी तक दर्शन देंगे और भक्तों की कामनाएं पूर्ण करेंगे। पौराणिक परम्परा के अनुसार भर्की भैंटा के ग्राम पंचायत के परिवारों को प्रति परिवार अपनी बारी के अनुसार यहां श्री नारायण की पूजा करता है इस वर्ष हरीश सिंह चौहान श्री फ्यूलानारायण के पुजारी होंगे व श्रीमती गोदाम्बरी देवी नारायण का श्रृंगार करेंगी जिन्हें फ्यूया फ्यूयाण कहा जाता है।

फ्यूलानारायण कल्पेश्वर मन्दिर से चार किमी दूर है, उर्गम घाटी के कल्पेश्वर मंदिर तक वाहन से पहुंचा सकते हैं। भगवान कल्पेश्वर के दर्शन कर चार किमी की हल्की चढ़ाई के बाद श्री नारायण के धाम पहुंचा जाता है इस मंदिर के कपाट हर वर्ष श्रावण विखोत के दिन खुलते हैं। तथा भादों मास की नन्दा अष्टमी को कपाट बंद होते हैं। मंदिर में विशेष रूप से अखंड धुनि प्रवज्विल होती है जो कपाट खुलने के दिन से कपाट बंद होने तक जलती रहती है। यहाँ हर दिन पूजा अर्चना का विधान है भगवान नारायण को सत्तू एवं बाड़ी से विशेष भोग लगता है।

नारायण की मूर्ति चतुर्भुज रूप में यहाँ विराजमान है मूर्ति के दोनों तरफ जय और विजय नामक दो द्वारपाल है पुराणों के अनुसार जय विजय नारायण के द्वारपाल थे एक बार देवऋषि नारद को इन दोनों ने प्रणाम नही किया नारद ने इन्हें राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दिया जिनका रावण व कुम्भकर्ण के रूप में जन्म हुआ और राम अवतार में नारायण ने इनको मोक्ष प्रदान किया। फ्यूनारायण में भगवान नारायण के अलावा मां नन्दा स्वनूल वन देवियां जाख देवता क्षेत्रपाल पित्र देवता भन्दा दारू पूजा की जाती है नारी भगवान नारायण का श्रृंगार करती है तो पुजारी पूजा अर्चना करते हैं। फ्ययाण या तो 10 वर्ष से छोटी उम्र की होती है या 55 साल से ऊपर की महिला पुराणों में भी कहा गया है अष्ट वर्षा भवेद गौरी नव वर्षा च रोहणी दशम वर्षा भवेद कन्या उर्ध्वागतरे रजस्वला यहाँ धाम में वरूण देवता की भी पूजा की जिसे स्थानीय भाषा में मडकू मामा कहा जाता है।

 

मंदिर से थोडी दूर जाकर वरुण देवता यानि मडकू मामा का आवाह्न किया जाता है और एक दिन बाद गूल में पानी आना शुरू हो जाता है इसी दिन यहाँ नन्दा स्वरूप के कपाट भी खुलते हैं। मूल रूप से यह स्थान नन्दा स्वनूल का है लोक गाथाये है कि भगवान नारायण की मूर्ति भेड पालकों को नारायणबगड में नदी किनारे मिली फ्यूनारायण में पहुंचकर नारायण की मूर्ति को उठा नही पाये और यहीं स्थापित कर दी। जब नारायण यहाँ विराजमान थे तो उर्वशी ने फूलों से नारायण का श्रृंगार किया था तब से नारी को भगवान नारायण के श्रृंगार का अधिकार मिला और नारायण फ्यूनारायण के नाम से प्रसिद्ध हो गये। फ्यूलानारायण जाने के मार्ग में भिवरख्वे नामक जल प्रपात पड़ता है जो 100 मी ऊंचाई से गिरता है इस मार्ग में लोक देवताओ के छोटेछोटे मंदिर हैं। जिसमें पतोता विनायक जबरखेत विनायक दुदला विनायक, खर्सूपाटा विनायक, कुंजी विनायक, खोड़ विनायक के रास्ते में दर्शन होते हैं। फ्यूनारायण धाम में नारायण की फूलवाड़ी है जहां अनेक प्रकार के फूल खिलते रहते हैं।

जहां मन को अपार सकून मिलता है। प्रकृति का सुन्दर दीदार होता है। आप सभी भक्तों का हिमालय की नयनाभिराम वादियों में स्वागत एवं अभिनन्दन है।

Next Post

पूर्व सीएम ने चमोली जिले में किया पौधरोपण - पहाड़ रफ्तार

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत हरेला पर्व पर बडे मिशन के साथ जनपद चमोली के चार दिवसीय भ्रमण पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने हरेला पर्व पर पूरे राज्य में एक लाख पीपल, वट और बरगद के पेड लगाने का संकल्प लिया है। जिसमें से 11 हजार पेड़ उनके […]

You May Like