विषय – देवभूमि उत्तराखंड
विधा – स्वतंत्र
सर्वप्रथम मैं सौम्य संस्कृति परिचायक।
देवों की वरदान धरा मैं वरदायक।।
करता जहाँ भानु स्वयं झुककर प्रणाम।
मेरी गोदी में सुशोभित वो चारों धाम।।
श्रद्धेय ऋषि-मुनियों की तपस्थली हूँ मैं।
घास का भार ढोती महिलाओं की हँसी ठिठोली हूँ मैं।।
मीठे जल प्रकृति की सत्य निशानी हूँ।
करें भावनाएँ जहाँ आलिंगन वो कहानी हूँ।।
यूँ श्वेत रजत से हिम से चमके हर शिखर मेरा।
काँपे रिपु की मंशा भी कैसे डालें घेरा।।
गब्बर और दरबान सिंह जैसे लाल दिए।
मैंने वीर जसवंत के जैसे शत्रु के काल दिए।।
हँसते बुग्यालों और फूलों की घाटी हूँ।
चंद्र कुँवर श्री देव सुमन की माटी हूँ।।
माधो सिंह ने सुत रक्त से जिसको सींचा है।
मेरी गोदी आशाओं का वो बगीचा है।।
नंदा राज राजेश्वरी धारी की भक्ति हूँ।
मैं काली चंद्रबदनी ज्वालपा पूरित शक्ति हूँ।।
शक्तिपीठों से सुसज्जित वीरों की माता हूँ।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली तीलू की गाथा हूँ।।
मैं सरिताओं से सराबोर सुंदरता हूँ।
मैं जोत आरतियों में घुली अखंडता हूँ।।
हूँ तो मैं धरा पर सपनों का आकाश हूँ मैं।
कुल मिलाकर जनमानस विश्वास हूँ मैं।।
स्वरचित
सुनीता सेमवाल “ख्याति”
रुद्रप्रयाग उत्तराखंड