उत्तराखंड में फैल रहा नकली दवाओं का कारोबार!
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सारे संसार में नकली दवाइयों का 35 फीसदी हिस्सा भारत से ही जाता है और इसका करीब 4000 करोड़ रुपए के नकली दवा बाजार पर कब्जा है। भारत में बिकने वाली लगभग 20 फीसदी दवाइयां नकली होती हैं। सिर दर्द और सर्दी-जुकाम की ज्यादातर दवाएं या तो नकली
होती हैं या फिर घटिया किस्म की होती हैं। इन नकली दवाइयों का जाल भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। उत्तरी भारत में दिल्ली में भागीरथ पैलेस को नकली दवाइयों के व्यापार का गढ़ माना जाता है। दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गुजरात के
अहमदाबाद और मध्य प्रदेश के इन्दौर से पूरे देश को नकली दवाइयों की सप्लाई होती है। ज्यादातर नकली दवाएं झुग्गी-झोपडिय़ों में बहुत ही प्रदूषित वातावरण में तैयार की
जाती हैं। इन नकली दवाओं की मांग दक्षिणअफ्रीका, रूस और
जबेकिस्तान के साथ-साथ हमारे पड़ोसी
देशों जैसे, म्यांमार, नेपाल और बांग्लादेश में भी तेजी से बढ़ रही है। नकली दवाओं के फैलते कारोबार
पर सरकार, उपभोक्ता संगठनों और चिकित्सकों ने चिंता जताई है, लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार और प्रशासन की शिथिलता और उदासीन रवैए के कारण ही ये धंधा फलफूल रहा है। डॉक्टर नकली दवाइयां
बनाने वाली कम्पनियों से महंगे-मंहगे उपहारों के लालच में मरीजों को ये नकली दवाइयां लिखते हैं। उपभोक्ता संगठनों के एक आंकलन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बेची जाने वाली 40 फीसदी से ज्यादा दवाएं नकली और घटिया होती हैं। घोटाले दवा के क्षेत्र में हैं तो दवा की दुकाने कहां से बेदाग होंगी।
उत्तराखंड में नकली दवा फैक्ट्रियों का संचालन होना गंभीर सवाल बना हुआ है। जो न केवल
लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। बल्कि, नामी कंपनियों को भी बदनाम कर रहे
हैं। उत्तराखंड में नकली दवाओं का बोलबाला है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में
50 लोग नकली दवा बनाते हुए पकड़े गए हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ दवा विभाग ने एफआईआर भी दर्ज कर ली है। हालांकि, उनमें से कई ने सबूतों के अभाव में देश छोड़ दिया है और नकली दवाएं बनाने के कारोबार में फिर से प्रवेश किया है।उत्तराखंड में नकली दवाओं का जाल फैल रहा है। राज्य में बीते कुछ साल में अलग -अलग जगह पचास लोग नकली दवा बनाते हुए पकड़े जा चुके हैं। ऐसे लोगों पर औषधि विभाग ने एफआईआर भी कराई। हालांकि इनमें से कई लोग सुबूतों के अभाव में छूट जा रहे हैं और वे फिर नकली दवा बनाने के काम में लग जा रहे हैं।
सरकार ने विधानसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी है। हरिद्वार जिले में नकली दवा का कारोबार खूब फलफूल रहा है। हर साल रुड़की व आसपास के क्षेत्र में नकली दवाओं की फैक्ट्री पकड़ी जा रही हैं। औषधि विभाग और पुलिस इस काम में संलिप्त लोगों पर कार्रवाई करते हैं लेकिन नकली दवाइयों का नेटवर्क पूरी तरह नहीं टूट पा रहा है। हाल में संपन्न हुए विधानसभा सत्र में बसपा विधायक ने सरकार से नकली दवा बनाने वालों
पर की गई कार्रवाई के संदर्भ में जानकारी मांगी गई थी। इसके जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने
बताया कि विभाग की ओर से अलग-अलग क्षेत्रों में 50 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराए गए
हैं। राज्य में नकली दवाओं को पकड़ने का जिम्मा जिस विभाग के पास है, उसके पास ड्रग
इंस्पेक्टरों व कर्मचारियों की भारी कमी है। सरकार ने पूर्व में विभाग के नए ढांचे को मंजूरी दी
थी पर अभी तक नई भर्ती नहीं हो पाई है। विभाग में पास 40 ड्रग इंस्पेक्टर होने चाहिए लेकिन
अभी महज नौ ड्रग इंस्पेक्टर कार्यरत हैं। पूर्व में ड्रग इंस्पेक्टरों की भर्ती चिकित्सा चयन बोर्ड से
कराने का प्रस्ताव था लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिल पाई थी। अब लोक सेवा आयोग से यह भर्ती
कराने का निर्णय लिया गया है, जिसमें समय लगना तय है। नकली दवा बनाने-बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है। औषधि विभाग के ढांचे को बढ़ाने के साथ ही दवा की जांच को
आधुनिक लैब तैयार हो रही है। ड्रग इंस्पेक्टरों की स्थायी नियुक्ति तक हम दूसरे विभागों और
प्रदेशों से व्यवस्था कर रहे हैं। प्रदेश में बीते कुछ साल में अलग-अलग जगह पचास लोग
नकली दवा बनाते हुए पकड़े जा चुके हैं। ऐसे लोगों पर औषधि विभाग ने एफआईआर भी कराई। हालांकि इनमें से कई लोग सुबूतों के अभाव में छूट जा रहे हैं और वे फिर नकली दवा बनाने के
काम में लग जा रहे हैं। दवा दुकानों को स्थापित किए जाने को लेकर फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने जो मानक तय किए हैं, उनका भी उल्लंघन हो रहा है। इन मानकों के मुताबिक एक दुकान से लेकर दूसरी
दुकान के बीच तीन सौ मीटर की दूरी होनी चाहिए, लेकिन भारत में एक ही साथ तीन से लेकर दस दुकानें मिल जाएंगी। एक थोक विक्रेता के पीछे कम से कम छह खुदरा दवा दुकानें होनी चाहिए, लेकिन हकीकत
में ऐसा नहीं है। मानकों के उल्लंघन के बावजूद फलफूल रहा दवा उद्योग, सरकारी उदासीनता का परिणाम नहीं वरन व्यवस्था में शामिल है। दवाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए प्रयोगशालाओं की
भारी कमी है। इसके चलते यह पता करना अत्यंत कठिन है कि बाजार में चल रही कौन-सी दवा
असली है और कौन-सी नकली? सरकार के पास न तो पर्याप्त संख्या में ड्रग इंस्पेक्टर हैं और न
ही नमूनों की जांच के लिए सक्षम प्रयोगशालाएं हैं। नकली दवा माफिया इस कदर हावी है कि
उसे केंद्रीय औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम के गैर जमानती और आजीवन कारावास जैसे सख्त प्रावधानों की भी परवाह नहीं है।बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में आसानी से सस्ती दर पर पूरी सुरक्षा के साथ दवा परीक्षण कर सकती हैं। मुक्त बाजार की उदारवादी व्यवस्था का असर यह है कि आज देश राज्य में दवा बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा है। नकली और नशीली दवाइयों के मामले में सबसे बड़ा हिस्सा है बाजार में नकली दवाएं बिक रही हैं। लेकिन बावजूद इसके इस नेटवर्क को ध्वस्त करने की खास कोशिश न तो सरकारी स्तर पर हो रही है और न ही प्रशासनिक स्तर पर।देश में नकली दवाओं का नासूर कड़े कानून से ही रोका जा सकता है, वरना मौत के सौदागर लोगों के जीवन से इसी तरह खिलवाड़
करते रहेंगे। इस दिशा में विशेष कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। नकली दवाओं के फैलते कारोबार पर सरकार, उपभोक्ता संगठनों और चिकित्सकों ने चिंता जताई है, लेकिन सच्चाई ये है कि सरकार और प्रशासन की शिथिलता और उदासीन रवैए के कारण ही ये धंधा फलफूल रहा है।
लेखक के निजी विचार हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।