मिट्टी के बर्तन: पोषण और आजीविका संवर्धन के माध्यम : डॉ अमित मोहन
हरिद्वार/मेरठ. पतंजलि योगपीठ से संचालित होने वाले ऑनलाइन स्वैच्छिक दैनिक “योगाहार” कार्यक्रम के 1109वें दिवस पर मेरठ निवासी माटी कला उद्यमी डॉ अमित मोहन बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित रहे.
दिशा सेवा संस्थान के डॉ अमित मुख्यत: पर्यावरण कार्यकर्ता हैं. इस क्षेत्र के गांवों में हर आँगन फल-वृक्ष को बढ़ाने वाले अमित मोहन ने गढ़_लखनऊ राजमार्ग पर स्थित देवली गाँव में मार्च 2023 में मिट्टी एवं टेराकोटा आधारित “मिट्टी कला केंद्र की स्थापना की है. उनके द्वारा भारत सरकार की योजना एम्एसएम्ई के तहत 150 परिवारों को फिर से मिट्टी के कार्य से जोड़कर उनकी आजीविका संवर्धन की दिशा में आगे बढ़ने की शुरुआत हुई है. उन्होंने योगाहार के मंच पर कहा कि रसोईघर में तैयार होने वाले भोजन का जितना महत्त्व है उतना ही महत्त्व इस बात का है कि हमारे किचन में किस प्रकार के बर्तन हैं. उन्होंने ‘मिट्टी के बर्तनों की सुरक्षा और फायदों ‘ के बारे में बताया कि ये बर्तन ईको-फ्रेंडली हैं. इनमे भोजन पकाते समय तेल का कम उपयोग होता है. और मिट्टी के वर्तनों में बने आहार के पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं. साथ ही इनके जरिये भोजन का प्राकृतिक स्वाद भी बना रहता है. मिट्टी के ये बर्तन नॉन-टॉक्सिक होते हैं और इनमें किसी भी केमिकल का उपयोग भी नहीं होता.
उनका कहना था कि कुछ समय से स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता बढ़ने से देशभर में मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ रही है. जिन लोगों ने मिट्टी के कार्य को छोड़ दिया था वे आजीविका के लिए पुनः मिट्टी कला की और लौट रहे हैं.
डॉ अमित कहते हैं, “हमारे आस-पास के ऐसे दर्जनों परिवार थे जिनकी आजीविका मिट्टी के बर्तनों पर निर्भर थी. बाज़ार में सस्ते फ्रिज और नॉन स्टिक बर्तनों के कारण गाँव से कुम्हार ने मिट्टी के बर्तन बनाने छोड़ दिए थे या वे चाय और लस्सी के कुल्हड़ तक सीमित हो गए थे. हम अपने केंद्र पर 300 तरह के मिट्टी के आइटम बना रहे हैं. इनमे चाय पीने के कुल्हड़, गन्ना का जूस, फ्रूट चाट की कटोरी, शादी-व्याह में प्लास्टिक की जगह मिट्टी के वर्तन और कुल्हड़, भोजन पकाने वाले बर्तनों में कड़ाई, फ्राईपैन, हंडी, प्रेशर कुक्कर, डिनर सेट , टीसेट, पानी की बोतल, पानी के जग आदि सम्मिलित हैं. डॉ. अमित के साथ योगाहार के सदस्य श्री दिनेश सेमवाल भी माटी कला केंद्र पर उपस्थित थे.
इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ से वरिष्ठ सदस्य श्री पवन कुमार जी जुड़े हुए थे. उन्होंने मिट्टी के बर्तनों, उनको बनाने हेतु उपयोग में ली जाने वाली मिट्टी और इनके प्रति लोगों की जागरूकता के बारे में बताया. वहीँ, नॉएडा उत्तर-प्रदेश से डॉ. कुसुम भारद्वाज ने इन बर्तनों के टिकाऊपन से सम्बंधित अपनी जिज्ञासा प्रकट की. मुफ्फरनगर से श्रीमती मिथिलेश सिंह; मध्यप्रदेश से श्री रमेश चंद मेहरा, श्री शरद वर्मा, श्री हीरालाल कुशवाहा, श्री बने सिंह आर्य एवं श्रीमती कल्पना कोटेले साथ ही महाराष्ट्र से श्रीमती प्रणाली मराठे और डॉ किशोर दुबे ने अपनी टिप्पणियां साझा की. कार्यक्रम का सञ्चालन श्रीमती रंजना किन्हीकर ने किया. इस ऑनलाइन कार्यक्रम में अलग-अलग 9 राज्यों से 50 से भी अधिक सदस्य जुड़े हुए थे.