मजबूत आधारशिला डॉ. वाई एस परमार ने इतिहास के साथ प्रदेश का भूगोल भी बदला, विकास की रखी थी मजबूत आधारशिला
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चन्हालग गांव में उर्दू व फारसी के विद्वान व कला संस्कृति के संरक्षक भंडारी शिवानंद के घर हुआ था। परमार के पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा
दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी शिक्षा के लिए पिता ने जमीन जायदाद गिरवी रख दी थी। यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। 1944 में
‘सोशियो इकोनोमिक बैकवर्ड ऑफ हिमालयन पोलिएंडरी’ विषय पर लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी की। इसके बाद हिमाचल विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की।
हिमाचल प्रदेश अपने प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार को याद कर रहा है। आज परमार की जयंती है। साथ ही प्रदेश के विकास में उनके योगदान को याद किया जा रहा है। डॉ. परमार 1930 से 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज व 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे। 1943 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1946 में डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने
गए। 1947 में ग्रुपिंग एंड अमलेमेशन कमेटी के सदस्य व प्रजामंडल सिरमौर के प्रधान रहे। उन्होंने सुकेत आंदोलन में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया और प्रमुख कार्यों में से एक रहे। 1948 से 1950 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे। 1950 में हिमाचल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। अपने सक्षम नेतृत्व के बल पर 31 रियासतों को समाप्त कर हिमाचल राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई, जो आज पहाड़ी राज्यों का आदर्श बनने की ओर अग्रसर है। वह डॉ. परमार की ही देन है। डॉ.
परमार 1952 में प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने। 1956 में वे संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। 1963 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।डा. परमार ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने प्रदेश का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल कर रख दिया था। जिसका जीता जागता प्रमाण पूर्ण राज्य के रूप में
प्रदेशवासियों के सामने है। जिसमें प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था, जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी। अगर ऐसा न होता तो आज हम हिमाचली नहीं, पंजाबी कहला रहे होते। आज हर कोई यह बात कह रहा है, डा. परमार न होते तो हिमाचल, हिमाचल
न होता।‘चन्हालग ने तुम्हें परमार दिया, परमार ने दिया हिमाचल, अब तुम बताओ कि तुमने चन्हालग को क्या दिया’। यह सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि हिमाचल निर्माता की जन्म चन्हालग को वास्तव में कुछ नहीं मिला। यह क्षेत्र सरकार की अनदेखी का अनोखा उदहारण है।
हिमाचल रूपी पौधे को रोपकर उसे पल्लवित, पुष्पित और फलित होने का स्वपन देखने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार
ने जिस स्थान पर जन्म लिया उसकी खबर लेने वाला आज कोई नहीं है। हर वर्ष 4 अगस्त डॉ. परमार
जयंती पर जिला सिरमौर सहित प्रदेश में जगह-जगह सरकारी व गैर सरकारी आयोजन होते हैं। राजनेता उनके कसीदे पढ़ते हैं, मगर उन पर अमल नहीं होता। प्रत्येक वर्ष चार अगस्त बीतने के बाद डॉ.परमार व उनका व्यक्तिव मात्र इतिहास बन कर रह जाता है। कांग्रेस हो या भाजपा, किसी भी
सरकार ने अभी तक परमार के गृह जिले सिरमौर व जन्मस्थली चन्हालग के पिछड़ेपन को गंभीरता
से नहीं लिया। 'डॉ. परमार का सम्पूर्ण जीवन हिमाचल प्रदेश के लिए समर्पित रहा है. वर्तमान में प्रदेश
विकास की राह पर अग्रसर है, यह डॉ. परमार का सपना था. डॉ. परमार ने प्रदेश का इतिहास ही नहीं, बल्कि भूगोल को भी बदला. उन्होंने प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा किया. हिमाचल का अस्तित्व डॉ. परमार की अतुलनीय देन है. उन्हें हिमाचल की संस्कृति और पर्यावरण के संरक्षक के रूप
में भी जाना जाता है, उन्हें पर्यावरण से बहुत लगाव था. उन्होंने प्रदेश की सबसे बड़ी सम्पदा वनों के संरक्षण को सदैव ही अधिमान दिया. डॉ. परमार ने प्रदेश को हरित राज्य बनाने का मार्ग प्रशस्त किया. डॉ. परमार एक ‘युग पुरुष’ थे, जिन्होंने अपने सीमित संसाधनों के साथ राज्य की विकास यात्रा शुरू की। उन्होंने कहा कि डॉ. परमार ने केंद्र में सर्वोच्च स्तर पर चिंता को प्रभावी ढंग से उठाकर हिमाचल
प्रदेश को एक अलग राजनीतिक इकाई बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि डॉ. परमार द्वारा लागू किए गए भूमि सुधारों ने भूमि के न्यायसंगत वितरण के माध्यम से भूमि के जोतने वालों को स्वामित्व अधिकार प्रदान किए। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने राज्य के
संस्थापक मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस. परमार के सम्मान में विधानसभा के सभी सदस्यों का संकलन लाने का पहला प्रयास किया है।
डॉ. परमार की छवि इतनी साफ थी कि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के एक संदेश से ही मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया था, जब डॉ. परमार मुख्यमंत्री
पद से इस्तीफा देकर हिमाचल पथ परिवहन निगम की बस से अपने गांव आ रहे थे तो उनका बैंकबैलेंस मात्र 563 रुपये था। डॉ. परमार ने सिरमौर जिला को छोड़कर अन्य जिलों का विकास किया, जबकि डॉक्टर परमार के बाद जितने भी मुख्यमंत्री आए उन्होंने अपने जिलों को ही ज्यादा तवज्जो दी।
आज पूरा हिमाचल प्रदेश अपने प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार को याद कर रहा है। आज परमार की जयंती है। साथ ही प्रदेश के विकास में उनके योगदान को याद किया जा रहा है। डा. परमार ऐसी शख्सीयत थे, जिन्होंने प्रदेश का इतिहास ही नहीं भूगोल भी बदल कर रख दिया था। जिसका जीता
जागता प्रमाण पूर्ण राज्य के रूप में प्रदेशवासियों के सामने है। जिसमें प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था, जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी। अगर ऐसा न होता तो आज हम हिमाचली नहीं, पंजाबी कहला रहे होते। आज हर कोई यह बात कह रहा है, डा. परमार न होते तो हिमाचल, हिमाचल न होता।
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।