ग्लेशियर खिसक से जनजीवन पर मंडरा रहा खतरा
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
दुनिया के ग्लेशियर जिस तेजी से पिघल रहे हैं या यों कहें कि वे खत्म हो रहे हैं, वह भयावह आपदाओं का संकेत
है। दुनिया के वैज्ञानिकों ने आशंका जतायी है कि जलवायु परिवर्तन की मौजूदा दर यदि इसी प्रकार बरकरार
रही तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इस सदी के अंत तक दुनिया के दो तिहाई ग्लेशियरों का अस्तित्व ही समाप्त
हो जायेगा। यह आशंका वैज्ञानिकों ने अपनी सोच से भी ज्यादा तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों के कारण उनके
खत्म होने की स्थिति के अध्ययन के उपरांत व्यक्त की है। उनके अनुसार यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं हैं।
असलियत में हम कहें कुछ भी, लेकिन यह कटु सत्य है कि हम दुनिया के बहुत सारे ग्लेशियरों को खोते चले जा
रहे हैं। दुख तो इस बात का है कि इस खतरे के प्रति हमारा मौन समझ से परे है। जबकि हमारे पास ग्लेशियरों
के पिघलने को सीमित करने की और उसमें अंतर पैदा करने की क्षमता है।बडे़ ग्लेशियरों के मामले में इसकी
संभावना ज्यादा है जबकि छोटे ग्लेशियरों के मामले में बहुत देर हो चुकी है। असली खतरा यह है और सबसे
बड़ी चिंता की बात यह भी कि यदि दुनिया आने वाले वर्षो में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
रखने में कामयाब भी रहती है, तब भी लगभग आधे से ज्यादा ग्लेशियर गायब हो जायेंगे या यों कहें कि मिट
जायेंगे।क्योंकि अधिकतर छोटे ग्लेशियर तो धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ ही रहे हैं। गौरतलब है कि तापमान
के कई डिग्री तक गर्म होने की सबसे खराब स्थिति में दुनिया के तकरीबन 83 फीसदी ग्लेशियर वर्ष 2100 तक
पिघल कर खत्म हो जायेगें। इसका खुलासा जर्नल साइंस में प्रकाशित कानेंगी मेलन यूनिवर्सिटी और अलास्का
फेयरबैंक्स यूनिवर्सिटी के अध्ययन से हुआ है।अध्ययन की मानें तो पूर्व औद्योगिक काल से दुनिया अब 2.7 डिग्री
सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर अग्रसर है। इसका अर्थ यह है कि साल 2100 तक दुनिया के ग्लेशियरों का 32
फीसदी हिस्सा यानी 48.5 ट्रिलियन मीट्रिक टन बर्फ पिघल जायेगी। इससे समुद्र के जल स्तर में 115
मिलीमीटर की बढ़ोतरी होगी।उस हालत में जबकि दुनिया के समुद्रों का जल स्तर पहले से ही बर्फ की पिघलती
चादरों और गर्म पानी से बढ़ रहा है। यह स्पष्ट है कि यदि ग्लेशियरों से समुद्र के जल स्तर में 4.5 इंच की भी
बढ़ोतरी होती है तो समूची दुनिया के एक करोड़ से भी अधिक लोग उच्च ज्वार रेखा से नीचे होंगे।तात्पर्य यह
कि समुद्र के तटीय इलाकों में रहने-बसने वाले लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। उस हालत में
यह भी ध्यान में रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन के चलते 20वीं सदी में समुद्र के जल स्तर में लगभग चार
इंच की वृद्धि हुयी है।दरअसल इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दुनिया के 2,15,000 भूमि आधारित ग्लेशियरों की
जांच में विभिन्न स्तर की ताप बढ़ोतरी का इस्तेमाल कर कम्प्यूटर सिमुलेशन के माध्यम से पता लगाया कि
कितने ग्लेशियर गायब हो जायेंगे, कितनी टन बर्फ पिघलेगी और उसके परिणाम स्वरूप समुद्र का जल स्तर
कितना बढ़ेगा।जहां तक हिमालयी क्षेत्र का सवाल है, एक अध्ययन के मुताबिक हिमालयी ग्लेशियरों को साल
2000 से 2020 के दौरान तकरीबन 2.7 गीगाटन का नुकसान हुआ है जो करीब 57 करोड़ हाथियों के बराबर
है। इस अध्ययन की मानें तो उपग्रहों से पानी के नीचे होने वाले ग्लेशियरों के परिवर्तन को देखने में असमर्थ
होने के कारण हिमखण्डों को बहुत बड़े पैमाने पर पहुंच रहे नुकसान को 2000 से 2020 तक काफी कम करके
आंका गया।ब्रिटेन और अमरीका की अध्ययन टीम के अनुसार पिछले आंकलनों में वृहद हिमालयी क्षेत्र में
पिघलकर गिर रहे ग्लेशियरों के कुल नुकसान को 6.5 फीसदी कम करके आंका गया था। जबकि इस नुकसान का
आंकड़ा 2.7 गीगाटन से भी काफी ज्यादा था। यदि हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के अध्ययन के बाद खुलासा हुआ
है कि यहां विभिन्न इलाकों में अधिकतर ग्लेशियर अलग- अलग दर पर पिघल रहे हैं।सरकार ने भी माना है कि
जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय ग्लेशियर के पिघलने का न सिर्फ हिमालय की नदी प्रणाली के बहाव पर
प्रतिकूल गंभीर प्रभाव पड़ेगा बल्कि इसके चलते प्राकृतिक आपदाओं में भी काफी बढ़ोतरी होगी जिसका आम
जनमानस पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ेगा। सरकार ने इसका खुलासा ग्लेशियरों का प्रबंधन देखने वाली संसद की
स्थायी समिति को किया है।संसद की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण
विभाग ने हिमालय में ग्लेशियरों के लगातार पिघलना, पीछे खिसकना और साल के दौरान ग्लेशियर के क्षेत्र में
अनुमानत: कमी की समस्या के बारे में बताया गया कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में नौ ग्लेशियरों के
द्रव्यमान संतुलन में पाया गया है कि इस हिमालय अंचल में शियर विभिन्न क्षेत्रों में अलग- अलग दर से अपने
स्थान से खिसक रहे हैं।या यूं कहें कि वे अलग- अलग गति से पिघल रहे हैं। इससे इस अंचल में हिमालयी नदी
प्रणाली का प्रवाह गंभीर रूप से प्रभावित होगा बल्कि यह ग्लेशियर झील के फटने की घटनाएं, हिमस्खलन और
भूस्खलन जैसी आपदाओं के जन्म का कारण भी बनेगा। चीन सीमा पर गुंजी-कुटी-आदि कैलास मार्ग पर नाम्पा
सहित दो अन्य स्थानों पर हिमस्खन होने से ग्लेशियर खिसक कर सड़क पर आ चुके हैं। जिस कारण मार्ग बंद हो
चुका है। रोंगकोंग, कुटी सहित आदि कैलास का संपर्क कट चुका है।दूसरी तरफ चीन सीमा को जोड़ने वाले
दारमा में भी झकला और गलछिन में एवलांच आया और ग्लेशियर खिसक कर मार्ग पर आ गए। दारमा मार्ग
बंद होने से दारमा गए वाहन फंस गए हैं। दारमा में लगातार हिमपात हो रहा है। मार्ग संचालन सीपीडब्ल्यूडी
के सहायक अभियंता ने बताया कि मार्ग से बर्फ हटाने का कार्य चल रहा है। मौसम में थोड़ा सुधार आने के बाद
देर सायं तक मार्ग खुलने की संभावना है।मुनस्यारी में भी मौसम साफ रहा। बाद में निचले इलाकों में वर्षा और
उच्च हिमालय में हिमपात हो रहा है। मौसम विभाग की चेतावनी को देखते हुए उच्च हिमालय में आगे भी
हिमस्खलन की आशंका जताई गई है। चीन सीमा पर एक ही दिन में पांच बार हिमस्खलन होने से ग्लेशियर
खिसक कर सड़क पर आ गये जिससे राहगीरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा उच्च हिमालय में आए
दिन हिमपात जारी है। मुनस्यारी के उच्च हिमालयी जोहार घाटी में एवलांच आने से छिरकानी ग्लेशियर खिसक
कर गोरी नदी तक पहुंच चुका है। मिलम जाने वाला पैदल मार्ग पर ग्लेशियर आ जाने से मार्ग बंद हो गया है।
उच्च हिमालयी गांवों को माइग्रेशन को जाने वाले 250 के आसपास परिवार प्रभावित हैं। छिरकानी में जान
हथेली पर रखकर ग्रामीण और जानवर चल रहे हैं। प्रतिपल खतरा बना हुआ है। मुनस्यारी के मल्ला जोहार के
गांवों का माइग्रेशन प्रारंभ हो चुका है। वहीं कीड़ा-जड़ी दोहन के लिए भी लोग उच्च हिमालय की तरफ जाने की
तैयारी कर चुके हैं। माइग्रेशन के लिए मुनस्यारी सहित आसपास के गांवों के ग्रामीण मय परिवार, जानवरों,
राशन सहित अन्य सामान के साथ प्रस्थान कर चुके हैं। इस बीच लगातार हिमपात होने से बर्फ ने माइग्रेशन की
राह रोक दी है। मुनस्यारी से लगभग 25 से 30 किमी की दूरी पर स्थित छिरकानी में एवलांच (बर्फिला तूफान)
आने से छिरकानी ग्लेशियर खिसक कर गोरी नदी तक आ चुका है। शीतकाल में गोरी नदी तक ग्लेशियर बना
रहता है। तब लोग ग्लेशियर पर ही चल कर आवाजाही करते हैं।इधर अब एवलांच के चलते ग्लेशियर खिसक
तक फिर नदी तक पहुंच चुका है और पैदल मार्ग बर्फ से ढक चुका है। जिसमें आवाजाही करना कठिन हो चुका है।
माइग्रेशन में जाने वाले ग्रामीण अपने जानवरों घोड़े-खच्चरों,भेड़-बकरियों की पीठ पर लाद कर खाद्यान्न व अन्य
घरेलू सामान ले जाते हैं। मुनस्यारी मिलम मोटर मार्ग अभी तैयार नहीं होने से ग्रामीणों को पैदल मार्ग से ही
माइग्रेशन करना पड़ रहा है। जिस स्थान पर ग्लेशियर खिसका है वहां पर पैदल मार्ग नदी के किनारे है और यहां
पर सड़क बन चुकी है। सड़क पैदल मार्ग से काफी अधिक ऊंचाई पर है। खड़े पहाड़ में पैदल मार्ग से सड़क तक
पहुंचने के लिए कोई संपर्क मार्ग नहीं है। जिसके चलते ग्रामीण रास्ते में फंसे हैं चीन सीमा से लगे उच्च हिमालयी
13 गांवों लास्पा, रिलकोट, टोला, मर्तोली, बिल्जू, बुर्फु, पांछू, गनघर, मिलम, ल्वा, खैलांच, बुगडियार के 250
परिवार माइग्रेशन कर रहे हैं। ग्रामीणों को अपने उच्च हिमालयी गांवों में पहुंच कर खेती करनी होती है। इस
सीजन में बोई जाने वाली उच्च हिमालयी फसलों के बोने का समय आ चुका है। ग्रामीणों के समय पर नहीं
पहुंचने से कृषि प्रभावित होने के आसार बने हैं। जोहार घाटी के लिए निर्माणाधीन सड़क का कार्य अभी पूरा
नहीं हुआ है। क्षेत्र तक खाद्यान्न भी पैदल मार्ग से पहुंचाया जाता है। मार्ग के बाधित होने से ग्रामीणों के पहुंचने
से पूर्व खाद्यान्न पहुंचना भी कठिन लग रहा है।माइग्रेशन के अलावा अब कीड़ा जड़ी (यारसा गंबू) दोहन के लिए
भी ग्रामीण तैयार हैं। मई प्रथम सप्ताह में ग्रामीण दोहन के लिए जाने की तैयारी कर चुके हैं। तब तक बर्फ नहीं
हटने पर उनके भी फंसने के आसार हैं। मल्ला जोहार विकास समिति के अध्यक्ष ने इस संबंध में जिलाधिकारी
और लोनिवि को पत्र भेज कर शीघ्र मार्ग खोलने की मांग की है। मार्ग खोलने के लिए भेजी गई ठेकेदार की दो
टीमें और लोनिवि के बेलदार लाचार हो चुके हैं। सुबह मौसम साफ मिलता है, कुछ बर्फ हटाई जाती है।
अपराह्न के बाद फिर हिमपात होता है और हिमस्खलन से स्थिति पूर्ववत हो जा रही है। लेकिन यह कटु सत्य
है कि हम दुनिया के बहुत सारे ग्लेशियरों को खोते चले जा रहे हैं. हमारी हुकूमतों को अलग से कार्य योजनाएं
बनानी चाहिए।