शिक्षक के तबादले पर रो पड़ी नंदाकिनी घाटी, 20 बरस दुर्गम में सेवा देने पर ग्रामीणों ने दी भावुक विदाई, फफक कर रो पड़े छात्र- छात्राएं
संजय चौहान
गोपेश्वर : ये दृश्य न तो किसी बेटी के ससुराल जानें का था, न तो नंदा देवी राजजात /लोकजात यात्रा में नंदा की डोली का कैलाश विदा होने का था बल्कि ये दृश्य शिक्षक विवेक कुमार चौधरी की विदाई समारोह का था जिसमें हर कोई शिक्षक विवेक कुमार चौधरी के गले मिलकर रो रहे थे। क्या बच्चे क्या बुजुर्ग, सबकी आंखों में आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। सबको अपने इस शिक्षक के तबादला होंने पर यहाँ से चले जाने का दुख है। आखिर हो भी क्यों न, 20 बरस दुर्गम में सेवा करने के बाद शिक्षक की विदाई जो हो रही थी।
गणित जैसे कठिन विषय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने दुर्गम के छात्र-छात्राओं के लिए गणित विषय को रुचिकर और सरल बनाया जिस कारण विगत 20 बरसों से राजकीय इंटर कॉलेज बूरा में कोई भी छात्र गणित विषय में फेल नहीं हुआ। हर बार रिजल्ट 100 फीसदी। बेहद मिलनसार, मृदभाषी, सरल, सौम्य और प्रतिभा के धनी शिक्षक विवेक कुमार चौधरी जैसे शिक्षकों की वजह से गुरुओं का मान बढ़ा है। 20 बरस की सेवा के बाद ग्रामीणों ने हर घर से विदा करते हुए विदाई दी। शिक्षक नरेंद्र चौहान, आनंदपाल, सोहन कठैत ने बताया की शायद ये पहला अवसर होगा जब घर – घर से किसी शिक्षक को ऐसी यादगार विदाई दी होगी।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 से सीमांत जनपद चमोली की नंदाकिनी घाटी के राजकीय इंटर कॉलेज बूरा में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात शिक्षक विवेक कुमार चौधरी की जो विदाई हुई है वैसी विदाई हर कोई शिक्षक अपने लिए चाहेगा। ग्रामीणों ने फूल माला और ढोल दमाऊं, घोड़े, बैंड बाजे के संग कभी न भूलने वाली विदाई दी। विवेक कुमार चौधरी विगत 20 सालों से नंदाकिनी घाटी के अतिदूरस्थ विद्यालय बूरा में तैनात थे, जहां आज लोग दुर्गम स्थानों पर नौकरी नहीं करना चाहते है तो वहीं गुरू विवेक कुमार चौधरी नें दुर्गम को ही अपनी कर्मस्थली बना डाला और उसे अपनी मेहनत से सींचा और संवारा। विवेक कुमार चौधरी नें गुरु द्रोण की नयी परिभाषा गढ़ डाली है जो शिक्षा महकमे सहित अन्य सरकारी सेवको के लिए नजीर है, उन्होंने एक मिशाल पेश की है। आज उनके विदाई समारोह में एक नही दो नहीं बल्कि पूरी नंदाकिनी घाटी के गांवों के ग्रामीण और स्कूल के बच्चे उनके विदाई समारोह में फफक कर रो पड़े, हर किसी की आंखों में आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। शायद ही अब उन्हें विवेक कुमार चौधरी जैसे शिक्षक मिल पाये। आज के दौर में ऐसी विदाई हर किसी को नसीब नहीं होती है। गुरू विवेक कुमार चौधरी ने गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन कर समाज में एक मिशाल पेश की है। धन्य हैं वो स्कूल जो आपके जैसे गुरूओं की कर्मभूमि बनेगी।