ऊखीमठ। वन विभाग अगस्तयुनि रेंज के अन्तर्गत गुप्तकाशी यूनिट की फाटा जामू पौधशाला में तैनात पांच मजदूरों को कार्य मुक्त किये जाने से मजदूरों के सन्मुख दो जून को रोटी के साथ परिवार के भरण – पोषण का संकट खड़ा हो गया है। लगभग 10 वर्षों तक पौधशाला में कार्य करने के बाद वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के समय पांचों मजदूरों को एक साथ कैसे कार्यमुक्त किया गया यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। कार्यमुक्त हुए मजदूरों द्वारा न्याय पाने के लिए डीएम से लेकर सीएम दरवार तक न्याय की गुहार लगाई गयी है मगर कार्यमुक्त हुए मजदूरों को निराशा ही हाथ लगी है। भले ही वन विभाग का कहना है कि मजदूरों को पौध उत्पादन के आधार पर मासिक भुगतान किया जाता था मगर कार्यमुक्त हुए मजदूरों के अनुसार उन्हें प्रतिमाह 6800 रूपये का हुआ भुगतान भी सवालों के घेरे में है!
बता दें कि वन विभाग अगस्तयुनि रेंज के अन्तर्गत गुप्तकाशी यूनिट की फाटा जामू पौधशाला में मई 2011 को सलामी निवासी अनिल सिंह, अप्रैल 2011 को घोलतीर निवासी पूनम सिंह, जून 2011 को नाला गुप्तकाशी निवासी अनुराधा देवी, सितम्बर 2011 जामू निवासी माधवानन्द नौटियाल तथा अक्टूबर 2016 को जामू निवासी प्रकाश सिंह को जामू पौधशाला में पौध उत्पादन हेतु मासिक मजदूरी के आधार पर तैनात किया गया था। वर्ष 2015 में पौधशाला में तैनात मजदूरों द्वारा न्यायालय की शरण लेकर उन्हें नियमित करने की गुहार लगाई थी तथा न्यायालय ने तत्कालीन प्रदेश सरकार व वन विभाग निदेशालय को सभी मजदूरों को नियमित करने का फरमान जारी किया था। मगर लम्बा अरसा व्यतीत होने के बाद पौधशाला में तैनात मजदूरों को न्यायालय के आदेश के अनुसार नियमित तो दूर विगत जून माह में वन विभाग ने पौधशाला में तैनात तैनात पांचों मजदूरों को कार्यमुक्त करने का फरमान जारी कर दिया है। पौधशाला में तैनात पांचों मजदूरों को कार्यमुक्त का आदेश जारी होने के बाद कार्यमुक्त हुए मजदूरों द्वारा न्याय पाने के लिए जिला प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री शिकायत निवारण केन्द्र तक गुहार लगाई गयी है मगर कार्यमुक्त हुए मजदूरों को कोरे आश्वासन ही मिले हैं।
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पौधशाला में तैनात मजदूरों को पौध उत्पादन के आधार पर मासिक भुगतान किया जाता था मगर कार्यमुक्त हुए मजदूरों के अनुसार उन्हें प्रतिमाह हुए 6800 रुपये का भुगतान भी सवालों के घेरे है! वन विभाग द्वारा पौधशाला में तैनात मजदूरों को पौध उत्पादन क्षमता के आधार पर भुगतान न करने के बजाय प्रतिमाह में 6800 भुगतान के पीछे कई हजारों रूपये की हेराफेरी होने की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। कार्यमुक्त हुए मजदूरों का कहना है कि पौधशाला में 10 वर्षों तक कार्य करने के बाद वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के समय कार्यमुक्त करना समझ से परे है तथा वन विभाग द्वारा पौधशाला में तैनात सभी मजदूरों को कार्यमुक्त करने के उनके व उनके परिवार के सन्मुख रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। कार्यमुक्त हुए मजदूरों का कहना है कि यदि समय रहते हुए न्याय नहीं मिला तो वे अपने अधिकारों को पाने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए बाध्य होना पडे़गा जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी शासन – प्रशासन की होगी। वहीं दूसरी ओर रेंज अधिकारी सर्वेशानन्द रावत का कहना है कि शासन से पौधशाला के लिए धन न मिलने के कारण पौधशाला में तैनात मजदूरों को कार्यमुक्त किया गया है।