रिपोर्ट रघुबीर नेगी
भनाई बुग्याल जहाँ से देवकन्या मसक्वसयाण पिण्ड रूप में भगवान के पास पहुंची
उर्गम घाटी में स्थित भनाई बुग्याल जहां पर धर्मशिला में अपनी देह को विलीन कर पिण्ड रूप में भगवान के पास वैकुण्डधाम पहुंची देवकन्या मसक्वस्यांण। हिमालय में स्थित प्रकृति के आंचल में न जाने कितनी अनगिनत रहस्यमयी लोक गाथायें समाई हुई है। मसक्वस्यांण नामक देवकन्या उत्तराखण्ड के श्रीनगर गढ़वाल में एक पंडित के घर पैदा हुई थी जो कि पैदा होते ही बोलने लग गयी थी कि मैं आज से सात दिनों के भीतर अपने घर को छोड़कर हिमालय की ओर चली जाऊंगी। और हिमालय की वादियों से पिण्ड के रूप में भगवान के पास चली जाऊंगी।
जैसे ही श्रीनगर में सात दिन का समय बीता वह देवकन्या उच्च हिमालय को जाने लगी लोगों के समझाने बुझाने पर भी वह कन्या न मानी। सगे सम्बन्धियों ग्रामीणों ने उसके लिए बर्तन कपडे़ आदि सामान रखकर साथसाथ चलने लगे। देवकन्या कमलेश्वर महादेव धारी देवी रूद्रप्रयाग होते हुये गौचर पहुंची। कहां जाता है कि एक किसान खेत में चर रही गाय काे मार रहा था जिसे देखकर देवकन्या ने वहां पर गौचर होने का श्राप दिया। कर्णप्रयाग नन्दप्रयाग चमोली गोपेश्वर में देवदर्शन के बाद घिंघराण कुजांऊ में देवी देवताओं से मिलन कर डुमक कलगोठ बजीर व मां नन्दा के दर्शन कर उर्गमघाटी के उर्वाश्रम महादेव दर्शन के बाद जूनागेर पंचम केदार के निकट पहुंची। जहां पर तीन हेक्टे. जमीन को गौचर होने का श्राप दिया कल्पेश्वर मन्दिर में रात्रि प्रवास के बाद पत्थरकटा तमगोना लौहबार उनियाणा पहुंची।
तमगौना में तांबे के बर्तन लौहबार लोहे का सामान उनियाणा मे ऊनी वस्त्र छोड़ने के बाद असेली में अस्सी किलो सामान कम कर डुगखोड़ होते हुये श्री नारायण के पास फ्यूलानारायण पहुंची। नर रूप में भनाई तक पहुंचो की आकाशवाणी हुई। यहां से विदा लेकर वह कन्या धर्मशिला पहुंची पत्थर पर रूप बनाकर मन्यू में चावल का भात बनाकर अपने लोगों को विदाकर रोखनी मोखान खर्क पहुंची और भनाई पहुंचकर ऊंची इस शिला में भगवान से पूछा हे नारायण में किस रूप में पहुंचू। कहा जाता है कि आकाशवाणी हुई कि तुम पिण्ड रूप में मेरे लोक वैकुण्ड पहुंचों ।उसी पत्थर में देवकन्या अपने प्राण त्याग कर भगवान के पास चली गई। आज भी लोक जागरों में मसक्वस्यांण देवकन्या का वर्णन हेता है भादों मास में नन्दा अष्टमी के पर्व पर उर्गमघाटी के ग्रामीणों द्वारा यहां पर पूजा होती है भर्की भैंटा उर्गमघाटी की लोकजात भी होती है केवल नन्दा अष्टमी के पर्व पर दशमी मेले में भर्की गांव में ही देवकन्या मसक्वसयाण के जाकर गाये जाते है।