रिपोर्ट रघुबीर नेगी चमोली
हिमालय वासियों की आराध्य भगवती नन्दा स्वनूल मायके पहुंची मैतियों ने किया भव्य स्वागत बेटियों के मायके पहुंचने पर छलक उठी आंखें मैनवाखाल में जागरों के माध्यम से दोनों बहिनें नन्दा स्वनूल की भेंट होती है नन्दा नन्दीकुंड और स्वनूल सोना शिखर से मैनवाखाल में पहुंचती है फिर दोनो बहिनें घंटाकर्ण के सानिध्य में मायके पहुंचती है। फुलाणा में स्थानीय लोगों द्वारा भगवती को भोग लगाया जाता है। जगह-जगह भगवती नन्दा स्वनूल का भव्य स्वागत होता है। जागरों के माध्यम से जात यात्रियों से कैलाश आने जाने का वर्णन वहां के सौन्दर्य खुशहाली का जिक्र होता है, जिसमे जात यात्री भी जागरों में ही वर्णन करते हैं।
मां नन्दा के मंदिर में नन्दा का धर्म भाई लाटू अवतरित होता है। भगवान घंटाकर्ण क्षेत्र से लोगों ने खुशहाली की कामना की भक्तों को ब्रहमकमल प्रसाद के रूप में बांटा जाता है भर्की भूमियाल के सानिध्य में मा स्वनूल भी फ्यूलानारायण होते हुये भर्की से अपने मायके पहुंची मैनवाखाल भनाई की लोक जात में 37 छतोलियों शामिल होती है। मैनवाखाल में उर्गम घाटी के सलना, ल्यारी,थैणा, बडगिण्डा, देवग्राम, गीरा व बांसा के अलावा पंचगै पल्ला जखोला किमाणा लांजी पोखनी द्वींग कलगोठ की जात होती है। जहाँ पर नन्दा का आह्वान होता है एवं भनाई बुग्याल में भर्की भैंटा अरोसी पिलखी उर्गम डुमक पल्ला की एकएक छंतोलियां शामिल होती है।जहाँ देवी स्वनूल का आह्वान होता है नन्दा स्वनूल के मायके आने के साथ ही कल 15 सितम्बर को फ्यूलानारायण के कपाट बंद होगें 16 सितम्बर को भर्की दशमी मेला के बाद नन्दा स्वनूल की कैलाश विदाई होगी।