वंशीनारायण मंदिर जहां केवल रक्षाबन्धन पर ही होती है सालभर में एक ही दिन पूजा – रघुबीर नेगी की रिपोर्ट

Team PahadRaftar

वंशीनारायण मंदिर जहां केवल रक्षाबन्धन के अवसर पर ही होती है सालभर में केवल एक ही दिन पूजा।

उर्गमघाटी : हिमालय की वादियों में विराजमान 12000 फीट की ऊंचाई पर उर्गमघाटी से लगभग 12 किमी की पैदल यात्रा कर पहुंचा जाता है। वंशीनारायण जहां केवल साल भर में एक ही दिन पूजा होती है नाम से तो लगता है कि कृष्ण का मन्दिर होगा पर यहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में जलेरी में विराजमान है साथ ही गणेश तथा वनदेवियों की मूर्ति भी हैं। भगवान शिव व विष्णु का यह अनोखा मन्दिर है पर वंशीनारायण नाम क्यों पड़ा यह इतिहास के गर्भ में ही है, हो सकता है कि वनदेवियां शिव व विष्णु की संयुक्त रूप से होने के कारण वंशीनारायण पड़ा हो। कत्युरी शैली में बना मन्दिर सुन्दर पत्थरों को तराश कर बनाया गया है। लोक कथाओं के अनुसार पाण्डव इस मन्दिर को इतना बड़ा बनाना चाहते थे कि जहां से बदरी केदार की एक साथ पूजा हो सके किन्तु निर्माण कार्य रात्रि में ही सम्पन होना था, देवयोग से यह पूरा नही हो पाया आज भी भीम द्वारा लाये गये विशाल शिलाखण्ड यहां मौजूद हैं।

 

जब वामन अवतार नारायण ने राजा बलि के वचन के अनुसार धरती आकाश नाप लिया तो राजा बलि ने तीसरा पंग अपने सर पर रखने के लिए वामन भगवान से कहा तो पग रखते ही वामन भगवान नारायण राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गये और बलि के दरबार में द्वारपाल बन गए। इधर नारायण को न पाकर लक्ष्मी परेशान हो गयी तो नारद जी के पास गयी नारद ने भगवान नारायण को पाताल लोक में बलि के दरबार में द्वारपाल होने की बात कही। लक्ष्मी ने नारद से पाताल लोक जाने का अनुरोध किया । नारद लक्ष्मी के साथ पाताल लोक में चले गये देवी लक्ष्मी ने रक्षाबंधन के दिन राजा बलि को रक्षासूत्र बांधा बलि ने देवी लक्ष्मी को वरदान मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने पति मांगा जो राजा बलि के दरबार में द्वारपाल बने थे। राजा बलि ने देवी लक्ष्मी के पति को मुक्त कर दिया इस दिन वंशीनाराण की पूजा अर्चना मनुष्यों द्वारा की गयी। इसलिए इस दिन वर्षभर में रक्षाबंधन के दिन ही पूजा अर्चना होती है। यह स्थान उर्गमघाटी के लोकजात यात्रा का प्रथम पड़ाव भी है, यहां से दो किमी पर छोटा नन्दीकुण्ड व स्वनूल कुण्ड भी है। वंशीनारायण मन्दिर में कलगोठ के ग्रामीण पुजारी होते हैं जहां भगवान को सत्तू बाड़ी का भोग लगाया जाता है। भले ही उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग की बेरूखी का शिकार हो पर कुदरत ने यहां अनुपम छटा बिखेरी है। उर्गमघाटी से यहां तक के रास्ते की स्थिति दयनीय है। जरूरत है कि नन्दा देवी राष्ट्रीय पार्क को यहां तक रास्ता बनाने की तो पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है यह मार्ग उर्गमघाटी की हर वर्ष लोकजात का मार्ग भी है। बुनियादी सुविधायें रहने के स्थान की कमी है वंशीनारायण में केवल कुदरत की गुफायें ही है। रक्षाबन्धन के अवसर यहां भव्य मेला मनाया गया। रमणीय हिमालय में युवक मंगल दल कलगोठ द्वारा भंडारे का आयोजन कर भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया।इस अवसर पर सुरेन्द्र सिंह सहदेव रावत, लक्ष्मण सिंह, अतुल डिमरी, कुलदीप मनोज समेत सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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