बदरीनाथ : काकभुशुण्डि ताल में श्री रामचरितमानस पाठ कर सकुशल बदरीनाथ लौटे सोमेश

Team PahadRaftar

पौराणिक तीर्थ और आध्यात्मिक पर्यटन स्थली काकभुशुण्डि ताल में श्री रामचरितमानस पाठ कर सकुशल बदरीनाथ लौटे सोमेश

संजय कुंवर बदरीनाथ धाम

साहसिक पर्यटन से लेकर तीर्थाटन आध्यात्मिकता की खोज के लिए सदैव तत्पर और नित नई डेस्टिनेशन की खोज के लिए तैयार चमोली जिले के पांडु नगरी पांडुकेश्वर बदरीनाथ धाम के युवा सोमेश पंवार किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।

अपने जोश और जज्बा के बलबूते इन्होंने साईकिल से बदरीनाथ से भारत भ्रमण कर कन्याकुमारी तक बदरीनाथ जी की धर्म ध्वजा फहरा चुके हैं,कुछ नया करने का जुनून इस श्री नारायण भक्त सोमेश को इस बार उच्च हिमालई तीर्थ और आध्यात्मिक पौराणिक पर्यटन तीर्थाटन स्थल काकभुशुण्डि ताल तक खींच लाया। वर्तमान समय में जहां समाज में युवा वर्ग नशा से लेकर अन्य कुरीतियों में जकड़ा जा रहा है, वहीं बदरी पुरी के इस युवा सोमेश ने अपनी अथातो घुमकड्डी जिज्ञासा के चलते 15 हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले इस दुरूह काकभुशुण्डि ताल की यात्रा पूरी की और प्रदेश के युवाओं को भी एक संदेश दिया कि नशा नहीं साहसिक पर्यटन और आध्यात्म के साथ जुडो, सामाजिक कुरीतियों से अपने आप दूर हो जाओगे। वहीं कई दिनों तक नित्य नियम से पूजापाठ ओर कीर्तन के साथ श्री रामचरित मानस का पाठ किया और इस पौराणिक तीर्थ में आध्यात्मिक शान्ति प्राप्ति की,और तीर्थाटन आध्यात्मिक पर्यटन के लिए आने वाले लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत बने है बदरी पुरी के नारायण भक्त सोमेश पंवार, बद्रीनाथ धाम से पौराणिक तीर्थ काग भुशंडी ताल की 15 दिन के आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर धाम लौटे सोमेश ने अपने इस तीर्थाटन के अनुभव साझा किए, कहा कि
तुलसी रामायण में मे प्रभू श्रीराम के बाल्यावस्था मे कौवे के साथ खेलने का “काकभुशुण्डि” नामक अध्याय का वर्णन आता हे ये वही तीर्थ है।

हम जानते हैं सबसे पहले वाल्मीकि ऋषी द्वारा रामायण की रचना हुई परंतु इसके भी पहले ही यह रामायण कथा के रुप में गिद्ध राज गरुड जी को कागभुशुण्डि (कौवे) ने जिस जगह सुनाई वह स्थान उत्तराखण्ड देवभूमि में उच्च हिमालई कागभुशुण्डि ताल नामक अत्यंत दुर्गम, घने जंगल, कल कल करते झरने, उंचेउंचे पहाड़ों के बीच, बर्फाच्छदित पर्वत हिमालय के तलहटी मे अद्भुत नयनाभिराम दृश्यों से भरपुर यही जगह है। जहां हाथी पर्वत के तलहटी मे आयाताकृती झील कागभुशुण्डि ताल नाम से प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हे इसी के किनारे पर सबसे पहले यह रामायण की कथा सुनी सुनाई गयी।

उन्होंने बताया कि श्री बद्रीनारायण की कृपा से उनकी ये “कागभुशुण्डि ताल” यात्रा संपन्न होने के पश्चात इसकी अद्भुत सुन्दर भगवत कृपा से श्री कागभूषंडी जी के दिव्य स्थान पर श्री रामचरितमानस का पाठ करने का सौभाग्य मिला प्रभु आपकी लीला अपरंपार है। लगभग 15 दिन के समय के अंतराल तक नित्य नियम से भजन कीर्तन संध्या आरती एवं श्री रामचरितमानस का पाठ किया सच में धन्य हो गए हम जिस दिव्य स्थान पर स्वयं श्री कागभूषंडी जी ने गरुड़ जी को श्री राम कथा सुनाई थी। उस स्थान पर श्री रामचरितमानस का पाठ करना वास्तव में जीवन का बहुत सुखद एवं आत्मविभोर करने वाला क्षण था। वास्तव मैं पाठ करने के बाद जीवन की सबसे अमूल्य बात सीखी वेद पुराण, भागवत गीता आत्मज्ञान सिखाए , रामायण जो पड़े हमेशा राम ही राह दिखाएं ।

Next Post

ऊखीमठ : भाजपा महिला मोर्चा द्वारा राष्ट्रीय हथकरघा सप्ताह के तहत महिलाओं को हथकरघा के लिए किया जाएगा जागरूक

लक्ष्मण नेगी ऊखीमठ : राष्ट्रीय हथकरघा सप्ताह भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा के आवाह्न पर पूरे देश में मनाया जा रहा है। 4 अगस्त से 14 अगस्त तक मनाये जाने वाले हथकरघा सप्ताह के तहत भाजपा महिला मोर्चा द्वारा पूरे देश भर के विभिन्न स्थानों पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे […]

You May Like