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उर्गम : तल्ला बड़गिन्डा के 45 आपदा प्रभावित परिवारों की गुहार,हमारी विस्थापन की फाईल आगे बढ़ा दो सरकार
जोशीमठ प्रखण्ड की सबसे बड़ी उर्गम घाटी के तल्ला बड़गिन्डा गाँव के 45 आपदा प्रभावित परिवारों का बेहाल है। 2013 की आपदा का दंश झेल रहे इन लोगों का हाल पूछने वाला कोई नही है। और आज तक इनका विस्थापन तो दूर मुआवजा तक नही मिला लोगों को। आज भी बरसात में ये 45 परिवार दूसरों के यहां आसरा लेने को मजबूर हैं। उर्गमघाटी जन संपर्क हेतु कुछ माह पूर्व पहुँचे आपदा प्रबंधन मंत्री और चमोली जिला प्रभारी मंत्री धन सिंह रावत द्वारा मौके पर ही विस्थापन की दूरभाष से शासन स्तर पर लटकी फाईल की जानकारी मांगी और सचिव स्तर से लेकर DM और SDM लेबल तक मामले की पत्रावली संख्या मांग कर शीघ्र उचित कार्यवाही होने का आश्वासन आपदा प्रभावित परिवारों को दिया। लेकिन मामला फिर भी अधर में ही लटका हुआ है जिससे ग्रामीणों में रोष है। भूगर्भीय सर्वे होने के बाद भी न इनको अभी तक मुआवजा की राशि मिली और न ही विस्थापन मिला तो बस कोरा आश्वाशन।
गौरतलब है कि वर्ष 2013 की कल्प गंगा घाटी में आई भीषण आपदा में उर्गम घाटी के तल्ला बड़गिन्डा गाँव के निचले इलाकों में कहर बरपा दिया था,यहाँ आसमानी आफत और कल्प गंगा के उफान में गाँव के करीब 45 परिवारों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा था। सैकडों नाली उपजाऊ काश्तकारी भूमि आपदा में तबाह होने के साथ इन 45 परिवारों के आवासीय भवनों को भू स्खलन और कटाव के चलते खतरा पैदा हो गया। लेकिन सरकार द्वारा इनको विस्थापन के साथ उचित मुआवजा देने की फाईल अब तक शासन में अटकी हुई है और यहाँ 45 परिवार हर दिन सुरक्षित आसरे और रात गुजारने तक के लिए गाँव में दूसरे लोगों के घर शरण लेने को मजबूर हैं। लेकिन गरीब बेसहारा परिवारों की कौन सुनेगा,ग्राम प्रधान बड़गिन्डा मिंकल देवी का कहना है की 2008 से ही यह क्षेत्र स्लाइड joni बन गया था और कल्पनाथ मन्दिर क्षेत्र में 2013 में आई बाढ़ नें पूरी तरह तल्ला बड़गिन्डा के निचले इलाके को बर्बाद कर दिया और लगातर यहाँ नदी के बहाव और कटाव और भू स्खलन के कारण खेती सहित गाँव ही खतरे की जद में आ गया है। लेकिन विस्थापन तो दूर अबतक सरकार से प्रभावितों को मुआवजा तक नही मिला है। विस्थापन की फाईल शासन तक पहुंची की नही ये भी पता नही है। प्रभावित ग्रामीण चंद्र सिंह का कहना है की न कोई भी क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और नही कोई नेता विधायक हमारी आपबीती सुनने को तैयार हैं। हम बरसात के इन दिनों में डर के साये में गाँव के दूसरे नाते रिश्तेदारों के घरों में आसरा लेने को मजबूर हैं। कभी भी भू स्खलन हमारे बचे हुए आवास को भी अपने आगोश में ले सकता है। सरकार कबतक हम लोगों को विस्थापन देगा कोई नही जानता हाँ हमदर्दी और आश्वासन से हमारा पेट भरने जरूर जनता के प्रतिनिधि और मंत्री अधिकारी यहाँ पहुँच रहे लेकिन हमें अपना आशियाना कब मिलेगा कुछ नही पता।