अक्षत नाट्य संस्था द्वारा किया गया स्वर्गीय तरुण जोशी के काव्य संग्रह ‘बेरंग स्याही’ का विमोचन – पहाड़ रफ्तार

Team PahadRaftar

अक्षत नाट्य संस्था गोपेश्वर द्वारा किया गया तरुण जोशी के काव्य संग्रह ‘बेरंग स्याही’ का विमोचन

गोपेश्वर। रंगमच और कला साहित्य के लिये समर्पित अक्षत नाट्य संस्था गोपेश्वर के तत्वावधान में स्व0 तरूण जोशी की पुण्य स्मृति में उनके काव्य संग्रह बेरंग स्याही के विमोचन के अवसर पर देहरादून के शुभारंभ वाटिका में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य स्व० तरुण जोशी की कविताओं को विमोचित कर उन्हें पाठकों के मध्य हमेशा जिंदा रखना था। पुस्तक बेरंग स्याही के प्रकाशन में तरुण के सखा-संबंधियों का अहम योगदान रहा। जिसमें विजय वशिष्ठ (मौसाजी, अक्षत नाट्य संस्था के डायरेक्टर), कुसुम वशिष्ठ (मौसी), आयुष वशिष्ठ (भाई), सुशील पुरोहित व समस्त अक्षत परिवार, बीना बेंजवाल (मौसी, वरिष्ठ कवियत्री) रमाकांत बेंजवाल, धीरेन्द्र सती (मामा), भूपेश सती (मामा), मुन्नी उपाध्याय (ताईजी) व दिवंगत तरुण के सभी दोस्त शामिल रहे।

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य सहयोगी में सुशील पुरोहित व अन्य सहयोगियों में जगमोहन पंवार, आयुष बशिष्ठ, सुनील मैखुरी, कुसुम बशिष्ठ, ईशान जोशी, पीयूष बशिष्ठ आदि रहे। इस कार्यक्रम में कुछ खास मेहमानों ने भी शिरकत किया। जिन मेहमानों में घनानंद (मुख्य अतिथि), विनोद कपरवाण (उपाध्यक्ष बाल संरक्षण आयोग), किशन महिपाल (लोकगायक), श्रीमती मुन्नी उपाध्याय, सी.पी.सती, अनिल मैखुरी, बी.पी.मैंदोली, ओम बधानी, धीरेन्द्र चंद्र सती, भूपेश सती, अखिलेश डिमरी, जयंत कुमार, डॉक्टर यतीश बशिष्ठ, भगवती बशिष्ठ, राकेश डिमरी आदि।

इस कार्यक्रम में उनकी माता आशा जोशी व पिता गणेश दत्त जोशी ने बड़े भावुक मन से बताया कि तरुण खेलों के साथ-साथ कुकिंग का भी शौक रखता था।
उनके भाई ईशान जोशी बताते हैं कि उनके भाई भले ही शारीरिक रूप से उनके साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी यादों में वे अभी भी जिंदा हैं और हमेशा रहेंगे।

अक्षत नाट्य संस्था द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन

स्वर्गीय तरुण जोशी के काव्य संग्रह ‘बेरंग स्याही’ के लोकार्पण के अवसर पर शुभारम्भ वाटिका देहरादून में गढ़वाली व कुमाउनी कवियों ने अपने अंदाज में श्रृंगार व करुण रस से भरी कविताओं से सम्मेलन में नादमय ध्वनि प्रस्तुतकर श्रोताओं के दिल को सुकून का अहसास कराया। क्योंकि साहित्य और कवि सम्मेलनों का नाता चोली-दामन के जैसा है। इस कवि पाठ में डॉ० नंदकिशोर हटवाल, मुरली दीवान, कृष्णा बगोट, बीना बेंजवाल, ओमप्रकाश सेमवाल, मनीषा रावत, मोहन वशिष्ट, शांति प्रकाश जिज्ञासू, डॉ० सत्यानंद बडौनी आदि ने अपने अंदाज़ में कविता पाठ कर अपना परिचय दिया।
अक्षत नाट्य संस्था के डायरेक्टर विजय वशिष्ठ का कहना है कि कवि सम्मेलन आयोजित करने का उद्देश्य स्व0 तरूण जोशी की कविताओ को पाठकों के बीच में लाकर उनकी रचनाधर्मिता को पाठकों के बीच में लाना है।
कार्यक्रम के संयोजक सुशील पुरोहित का कहना है कि बेरंग स्याही काब्य संग्रह पाठकों के बीच लाकर एक ओर स्व0 तरूण जोशी को सच्ची श्रद्धाजंलि देना है। वहीं स्व0 जोशी की कविताओं से नए युवाओं में कविता/साहित्य लेखन के प्रति एक नवीन उर्जा का संचार करना है ।
एक समय था, जब हर राष्ट्रीय और धार्मिक पर्वों पर कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाता था। तब मनोरंजन के सीमित संसाधनों के चलते घर-गाँव, कस्बों व नगरों में कवि सम्मेलन एक महा-आयोजन सा होता था और श्रृंगार से हास्य रस और करुण से वीर रस तक सब कुछ जन-जन के मन तक पहुंचता था। किन्तु समय के साथ-साथ हर एक चीज का या हर एक कला का व्यवसायीकरण होने लगा, जिससे कवि सम्मेलन का आयोजन भी शून्य की स्थिति में पहुंच गया, लेकिन कालांतर में अक्षत नाट्य संस्था, जहां रंगमंच को संवार रही है, वहीं कवि सम्मेलन का पाठ आयोजित कर अपने स्वर्णिम इतिहास में एक नया अध्याय जोड़कर कवि पाठ का रास्ता भी प्रशस्त कर रही है।
अक्षत नाट्य संस्था के डायरेक्टर विजय वशिष्ट का कहना है कि अब अक्षत नाट्य संस्था रंगमंच के साथ समय-समय पर कवि पाठ का भी आयोजन करती रहेगी। जिसमें अक्षत नाट्य संस्था नए-नए कवियों को एक प्लेटफॉर्म देने का काम करेगी। फलस्वरूप कविता पाठ की ये अविरल धारा अपनी पुराने दिनों को ओढ़ते हुए नए युग की ओर बहती रहेगी।

स्व० तरुण जोशी की ‘बेरंग स्याही’ के अनमोल पन्ने —

बेरंग स्याही कविता संग्रह की कविताओं से स्पष्ट है कि कवि जीवन, समाज और आसपास घट रहे घटनाओं के प्रति गहरी दृष्टिकोण रखते हैं और गहरा सरोकार भी। इनकी कविताएं शोर मचाने वाली न होकर गम्भीर व चिन्तन प्रशस्त करने वाली है। बदलते वक्त के साथ-साथ रिश्ते नाते भी बदल जाते हैं। इन रिश्तों को कवि ने कुछ इस अंदाज में पेश किया है-
दुनिया बदली, इंसान बदले और बदल गई इंसान की सोच
वक्त बदला, साल बदले और तुम भी बदल गई
न बदला तो सिर्फ ये आसमां, ये धरती, ये तारे
पर वो बादल की टुकड़ी भी बदल गई
कविताओं में मौसम से रंग न हो, ऐसा भला कहीं होता है? दिलकश मौसम में ही कविता परवान चढ़ती हैं। कवि ने अपनी कविता एक नया ठौर की अन्तिम पंक्तियों में लिखा है कि-
ऐसा घरौंदा हो मेरा जहां
स्वप्न देखूँ खुले आसमान तले
चादर अंधेरे की काली हो
और पंछी कलरव से नींद खुले
नैन खुले तो बस हरियाली हो
कवि ने समाज में फैली बुराइयों पर भी कड़ा प्रहार किया है, वह चाहे महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध हों, भ्रष्टाचार हो, सांप्रदायिकता का जहर हो, परम्परागत रूढ़ियों में जकड़ी जिंदगियां हो या फिर दरकती मानवीय संवेदनाएं हो। सभी पर कवि ने चिंतन किया है। इतना ही नहीं, कवि ने निराश के इस घने अंधकार में भी आस का एक दीया जलाकर रखा है। कवि का कहना है-
जला सको यदि अपने अंदर के हैवान को
आदम रूप में शैतान को
कुछ सुकून शायद पा जाऊँगी
एक मौका देता है गर खुदा
ते फिर बेटी बन वापस न आऊँगी
बहरहाल, भावनाओं के अलावा काव्य सृजन के मामले में भी कविताएं उत्कृष्ट हैं। कवि को अच्छे से मालूम था कि उसे अपनी भावनाओं को किन शब्दों में और किन बिम्बों के माध्यम से प्रकट करना है और यही बिम्ब विधान पाठक को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
दरिया ढूंढने निकले थे हम।
खबर ये आयी कि दरिया खुद आया था चल के ढूंढनें हमें।।

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