पहाड़ से मैदान तक हवा की गुणवत्ता की होगी निगरानी
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड राज्य में पहाड़ से लेकर मैदान तक ध्वनि और वायु प्रदूषण की गुणवत्ता की जांच करेगा। इसके
लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को पत्र भेजा है।दिवाली में हवा की गुणवत्ता प्रभावित
होती है पर कुछ सालों में कई शहरों में सुधार होने का संकेत मिल रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिवाली के सात दिन
पहले और सात दिन बाद हवा की गुणवत्ता की जांच करता है। वर्ष-2021 से ऋषिकेश, काशीपुर और हल्द्वानी में
तीन साल लगातार एक्यूआई में सुधार हुआ है। इसका एक कारण आतिशबाजी कम होना भी हो सकता है। दिवाली
के दिन लोग जमकर आतिशबाजी करते है। इससे हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। हवा प्रदूषित होने और शोर से
कई लोगों को असहजता भी महसूस होती है। ऐसे में लोग आतिशबाजी कम करें इसके लिए जागरूकता के प्रयास
किए जाते हैं। इसके अलावा पीसीबी ने पहाड़ों में भी हवा की गुणवत्ता जांचने का काम शुरू किया है। बहरहाल,
पीसीबी के आंकड़ों के अनुसार दिवाली में लगातार तीन सालों में ऋषिकेश, काशीपुर और हल्द्वानी में हवा की
गुणवत्ता की जांच की गई, उसमें हर वर्ष लगातार एक्यूआई में सुधार दिखाई दिया है। जबकि देहरादून में 2021 की
तुलना में वर्ष-2022 में 80 एक्यूआई का सुधार आया था। वर्ष-2023 में वह फिर 2021 की स्थिति में पहुंच गया।
कमोबेश यही हाल रुद्रपुर का है। वहीं, हरिद्वार में वर्ष-2022 की तुलना में हवा की गुणवत्ता कुछ प्रभावित हुई है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सार्वजनिक सूचना देने के मामले में पीछे चल रहा है। हालत यह है कि पीसीबी हवा की
गुणवत्ता की जांच करता है, उसका डेटा रियल टाइम तो दूर की बात है, उस माह तक जारी नहीं हो पाता है।
पीसीबी की वेबसाइट पर देहरादून, ऋषिकेश, काशीपुर, हरिद्वार, रुद्रपुर, हल्द्वानी, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी,
गोपेश्वर, अल्मोड़ा, बागेश्वर और नैनीताल निगरानी के साथ यहां के प्रदूषण की जानकारी देने के लिए पीएम-10,
एसओ टू समेत अन्य की जानकारी दी गई है, पर यह जानकारी अगस्त माह की है। पीसीबी के सदस्य सचिव कहते हैं
कि व्यवस्था में सुधार का प्रयास किया जा रहा है, वेबसाइट में सुधार किया जाएगा। इसके अलावा प्रयास है कि जल्द
यह जानकारी साझा की सके। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ध्वनि और वायु प्रदूषण की गुणवत्ता की जांच के लिए तैयारियाँ
तेज कर दी हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सभी क्षेत्रीय कार्यालयों को इस संबंध में निर्देश दिए हैं।
यह विशेष जांच दिवाली के त्योहार के दौरान, 24 अक्टूबर से 7 नवंबर तक, 15 दिनों के लिए की जाएगी। राज्य
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने बताया कि यह जांच दिवाली के समय में प्रदूषण स्तर की वृद्धि का आकलन
करने के लिए आवश्यक है। हर वर्ष इस दौरान वायु और ध्वनि प्रदूषण में बढ़ोतरी देखी जाती है, और इस बार भी
सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। जांच नैनीताल जिले के हल्द्वानी और नैनीताल, साथ ही देहरादून, ऋषिकेश,
रुड़की, हरिद्वार, काशीपुर, रुद्रपुर और टिहरी जैसे प्रमुख स्थानों पर की जाएगी। जांच के परिणाम केंद्रीय प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड को भेजे जाएंगे, ताकि उचित कार्रवाई की जा सके। राज्य में प्रदूषण की निगरानी और संबंधित कार्यों के
लिए पीसीबी के राज्य मुख्यालय के अलावा चार क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो देहरादून, रुड़की, हल्द्वानी और काशीपुर में
स्थित हैं। इन कार्यालयों के माध्यम से राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में प्रदूषण स्तर की नियमित निगरानी की जाएगी। इस
पहल से न केवल स्थानीय प्रशासन को मदद मिलेगी, बल्कि नागरिकों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण उपलब्ध
कराने में भी सहायता मिलेगी। उत्तराखंड में बारिश के बाद जंगलों की आग भले ही शांत हो गई हो, लेकिन उसका
असर अभी तक दिखाई दे रहा है. हालात ये है कि पहाड़ की आबोहवा भी पूरी तरह से दूषित हो चुकी है. जानकार
इसके पीछे पिछले महीने से जंगलों में लगी आग और पहाड़ में पर्यटकों के वाहनों का बढ़ता दबाव मान रहे है.दिल्ली,
हरियाणा, यूपी, पंजाब और राजस्थान के अलावा देश भर से बड़ी संख्या में पर्यटक शुद्ध आबोहवा और प्राकृतिक
सौंदर्य के लिए उत्तराखंड आते है, लेकिन इस साल जंगलों में लगी आग और वाहनों की बढ़ती भीड़ ने पहाड़ की हवा
को भी खराब कर दिया है. झील और खूबसूरत वादियों के साथ-साथ ठंडी हवाओं के लिए जाना-जाने वाले नैनीताल
भी वायु प्रदूषण की चपेट में आ गया है. कारखानों से निकलता धुआं, लगातार कटते जंगल, वाहनों से निकलने वाला
प्रदूषण और वनाग्नि ये सब उत्तराखंड के लिए घातक साबित हो रहे है. जिसका असर सीधे तौर पर हिमायल पर पड़
रहा है. जंगलों की आग से वायुमंडल में कार्बन पार्टिकल्स भी नई समस्या को जन्म दिया है. दरअसल, ब्लैक कार्बन
वायुमंडल में फैलने के बाद हिमालयी ग्लेशियर को भी नुकसान पहुंचा रहे है.क्या हैं पर्यावरणविद का कहना है कि
हम जल-जंगल और जमीन को बचाने के लिए बाते तो बड़ी-बड़ी करते है, लेकिन धरातल पर इसके लिए काम होता
दिखाई नहीं दे रहा है. हर काम सरकार करें ये जरूरी नहीं, बल्कि हम सबकों को मिलकर इस दिशा में काम करना
होगा.जबकि हम वास्तविक स्थिति को देखकर मुंह मोड़ लेते हैं, जो सही नहीं है. जिस रफ्तार के साथ आज वाहन
पहाड़ों पर पहुंच रहे है, वो भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बना रहा है.सीएनजी गाड़ियों की बात तो की जाती है,
लेकिन वो एक दो ही दिखाई देती है. डीजल और पेट्रोल की गाड़ियां लगातार वायु प्रदूषण फैल रही हैं. इतना ही नहीं
सरकार को भी इस दिशा में जरूर सोचना चाहिए कि उत्तराखंड के जंगलों में हर साल आग की इतनी अधिक घटना
क्यों हो रही है? बात सिर्फ पर्यावरण प्रदूषण की नहीं है, बात हमारे जल जंगल की भी है आज प्रदेश में जल स्रोतों के
क्या हालात हैं यह किसी से छुपे नहीं है.लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून
विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।