ऊखीमठ। मदमहेश्वर घाटी की ग्राम पंचायत रासी के सात सदस्यीय साहसी दल ने विसुणीताल का भ्रमण कर प्रकृति के अनमोल खजाने से रूबरू हुए। सात सदस्यीय दल ने बुरूवा – विसुणीताल – बुरूवा 40 किमी का पैदल ट्रैक की दूरी तीन दिन में पूरी की। विसुणीताल से लौटने के बाद सात सदस्यीय दल ने बताया कि विसुणीलात को प्रकृति ने अपने अनूठे वैभवों का भरपूर दुलार दिया है इसलिए थौली से विसुणीताल का भू-भाग स्वर्ग के समान है। सात सदस्यीय दल में शामिल प्रकृति प्रेमी हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि विसुणीताल व सोन पर्वत के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्यालों में घड़ी भर बैठने से मानव जीवन के दुख: दर्दों को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाता है तथा भटके मन को अपार शान्ति मिलती है।
दल में शामिल ऋषिराज खोयाल ने बताया कि मदमहेश्वर घाटी के बुरूवा व गडगू गाँव से विसुणीताल पहुंचा जा सकता है! उन्होंने बताया कि बुरूवा गाँव से 10 किमी खडी चढ़ाई पैदल तय करने के बाद टिगरी बुग्याल पहुंचा जा सकता है तथा वहाँ से फिर 10 किमी की दूरी पर विसुणीलात है ! विपिन राणा ने बताया कि लोक मान्यता है कि लक्ष्मी के आग्रह पर इस ताल का निर्माण विष्णु भगवान ने किया था इसलिए यह तालाब विसुणीताल के नाम से जाना जाता है। विक्की रावत ने बताया कि थौली से सोन पर्वत व विसुणीताल के भूभाग में बरसात ऋतु में अनेक प्रकार के रंग – बिरंगे पुष्प खिलने से यहाँ की सुन्दरता पर चार चांद लग जाते है।
अखिलेश बर्तवाल ने बताया कि बुरूवा – विसुणीताल पैदल ट्रैक पर पानी का बड़ा अभाव है तथा विसुणीलात में रात्रि प्रवास करने पर लगभग 8 किमी दूर थौली से जंगल की लकड़ी साथ ले जानी पड़ती है। कैलाश पंवार ने बताया कि सोन पर्वत के शीर्ष से चौखम्बा सहित हिमालय की चमचमाती स्वेत चादर सहित मदमहेश्वर घाटी की असंख्य पर्वत श्रृंखलाएं तथा कई नदियों की सैकड़ों फिट गहरी खाईयाँ एक साथ दृष्टिगोचर हो सकती है! दीपक बिष्ट का कहना है कि यदि पर्यटन विभाग व केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग बुरूवा – विसुणीताल व गडगू – विसुणीताल पैदल ट्रैक को विकसित करने की कवायद करता है तो स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ देश – विदेश का सैलानी विसुणीताल की प्राकृतिक छटा से रूबरू हो सकता है।