आर्मी की बैंड धुनों से की जा रही भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली की अगुवाई
आज रात्रि रामपुर प्रवास को पहुंचेगी बाबा केदार की डोली
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अग्रणी ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल के छः माह के लिए विधि-विधान एवं पौराणिक परंपराओं के अनुसार बंद कर दिए गए हैं। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालुओं ने भगवान केदारनाथ का जलाभिषेक कर पुण्य अर्जित किया। आर्मी की बैंड धुनों से भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली की अगुवाई की जा रही है। पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली प्रथम रात्रि प्रवास के लिये रामपुर पहुंचेगी, जहां से रविवार को डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी में रात्रि प्रवास के लिए पहुंचेगी।
पौराणिक परंपराओं के अनुसार भैयादूज के पावन पर्व पर बाबा केदारनाथ के कपाट शीतकाल के छः माह के लिए बंद कर दिये गये हैं। कपाट बंद से पहले मुख्य पुजारी बागेश लिंग ने रात्रि दो बजे बाबा केदार को बाल भोग लगाया। दो बजे से तीन बजे तक श्रद्धालुओं ने भगवान केदारनाथ के स्वयं-भू लिंग का जलाभिषेक कर क्षेत्र की खुशहाली की कामना की। तीन बजे से चार बजे तक भगवान केदारनाथ का रूद्राभिषेक, हवन व आरती उतारी गई। पांच से छह बजे तक भगवान केदारनाथ के स्वयं-भू लिंग को ब्रम्हकमल, पुष्प, अक्षत्र, भष्म, फल सहित अन्य पूजार्थ सामाग्रियों से समाधि दी गई और गर्भग्रह के कपाट बंद कर दिए गए, जिसके बाद शीतकाल के छः माह भगवान शंकर विश्व कल्याण के लिये तपस्यारत हो गये। अब शीतकाल में भगवान शिव की पूजा देवताओं की ओर से की जाएगी। ठीक सात बजकर 45 मिनट पर भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली सभामंडप से मंदिर परिसर लाई गई और आठ बजे मुख्य द्वार को बंद कर भगवान केदारनाथ के कपाट शीतकाल के लिये बंद कर दिए गये। पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली के मंदिर परिसर आते ही आर्मी की बैंड धुनों, स्थानीय वाद्य यंत्रों एवं श्रद्धालुओं की जयकारों से केदारपुरी गुंजायमान हो उठी।
इसके बाद पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली ने मुख्य मंदिर की एक परिक्रमा की और केदारपुरी, लिनचैली, जंगलचटटी, गौरीकुंड सहित अन्य स्थानों पर श्रद्धालुओं को दर्शन दिये। गौरीकुंड में गौरीमाई मंदिर में कुछ देर विश्राम करने के बाद बाबा केदार की डोली सोनप्रयाग, सीतापुर होते हुए प्रथम रात्रि प्रवास के लिये रामपुर पहुंचेगी। आर्मी की बैंड धुनों द्वारा पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली की अगुवाई की जा रही है। रविवार को चल विग्रह उत्सव डोली रामपुर से प्रस्थान कर शेरसी, बडासू, नारायकोटी, नाला होते हुए द्वितीय रात्रि प्रवास के लिये गुप्तकाशी पहुंचेगी। इसके बाद सोमवार को गुप्तकाशी से प्रस्थान कर बाबा केदार की डोली शीतकालीन गददीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान होगी।
राॅवल को स्थानीय भाषा में कहा जाता है बोलांदा केदार
रुद्रप्रयाग। 11 हजार 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के केदारनाथ में पृष्ठ भाग की पूजा होती है। मान्यता है कि ग्रीष्मकाल में नर पूजा व शीतकाल में देवतागण केदारनाथ भगवान की पूजा करते हैं। हर वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर बाबा के कपाट खुलने का दिन तय होता है और फिर ग्रीष्मकाल में बाबा अपने धाम केदारपुरी में भक्तों को दर्शन देते हैं। पौराणिक परंपराओं के अनुसार लिंग समुदाय के लोग ही बाबा केदारनाथ के राॅवल व पुजारी हुआ करते हैं। ग्रीष्मकाल में जब केदारबाबा केदापुरी में रहते हैं तो उनके माथे पर स्वर्ण मुकुट लगा रहता है, जो कि श्रृंगार दर्शन के दौरान देखा जाता है, मगर जब बाबा की उत्सव डोली पंचकेदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचती है तो वही स्वर्ण मुकुट केदारनाथ के राॅवल के माथे पर लग जाता है। इसलिए केदारनाथ के राॅवल को स्थानीय भाषा में बोलांदा केदार के नाम से भी जाना जाता है। जिस तरह से एक बेटी को अपने घर से विदा करते हुए हर परिवार दुखी होता है, वही माहौल बाबा केदार के कपाट बन्द होने के दौरान भी स्थानीय लोगों एवं तीर्थपुरोहितों व श्रद्वालुओं में भी साफ देखने को मिलता है। इसके पीछे आस्था व अटूट श्रद्धा तो है। मगर बड़ी बात यह है कि बाबा केदार के केदारपुरी में रहने के दौरान हजारों लोगों को यहां रोजगार मिलता है और उनके घरों के चूल्हे जलते हैं। तो यही कारण है कि बाबा की विदाई अश्रुपूर्ण होती है। पूर्व परंपरा के अनुसार भैया दूज के दिन भगवान के कपाट छह माह के लिए बन्द कर दिये जाते हैं।