केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग द्वारा रुद्रनाथ में ईडीसी में कुछ गांवों के हक हकूक धारियों को रखा गया, जिस पर बेमरू के सरपंच रविंद्र नेगी ने आपत्ति जताई, डीएम को सौंपा ज्ञापन – पहाड़ रफ्तार

Team PahadRaftar

चतुर्थ केदार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग पर प्रस्तावित केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग के रेंज कार्यालय गोपेश्वर द्वारा रूद्रनाथ मन्दिर के कुछ हक हकूक धारी गांवों के चुनिंदा प्रतिनिधियों को जोड़ कर यात्रा मार्ग की देखरेख वनों को संरक्षित व यात्रा मार्ग पर पर्यावरण दूषित न हो के लिए प्रस्तावित इको डेवलपमेंट कमेटी(ईडीसी) किया गया। ग्राम पंचायत/वन पंचायत बेमरू के अधिकारों पर छेड़ छाड़ न किये जाने को लेकर वन पंचायत सरपंच रविन्द्र नेगी ने जिलाधिकारी व उप वन संरक्षक/प्रभागीय वनाधिकारी केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग को ज्ञापन सौंपा। उन्होंने कहा कि हम ग्राम पंचायत व वन पंचायत बेमरू के निवासी श्री रुद्रनाथ मंदिर के आसपास पास के वन बीट बेमरू क्षेत्र के वन्य क्षेत्र पर सदियों से पुश्तैनी हक हकूक रखते हैं।

विगत कुछ वर्षों से चतुर्थ केदार रूद्रनाथ तीर्थ में यात्रियों की संख्या आये दिन बढ़ने से रूद्रनाथ मन्दिर के कुछ हक हकूक धारी व अन्य गांवों के ग्रामीणों द्वारा वनों/बुग्यालों के कई स्थानों पर अनाधिकृत रूप से गाय भैंस भेड़ बकरी चुगाने की सह पर अवैध रूप से होटल ढाबे खोल दिए गए हैं। नेगी ने कहा कि हमारे पूर्वजों के समय से ही प्राचीन परंपरा के अनुसार पनार बुग्याल से ऊपर का क्षेत्र सिर्फ बकरी चुगान तक ही सीमित था। वन विभाग का गठन से पूर्व व बाद तक जब सेंचुरी क्षेत्र/संरक्षित वन क्षेत्र घोषित से पूर्व सदियों से हमारे ग्राम बेमरू के पुश्तैनी पधान परिवार के सबसे पहले स्व रूद्रसिहं के बाद स्व रामप्रसाद सिंह के बाद स्व मलक सिंह के बाद फतेसिंह द्वारा बुग्यालों पर भेड़ बकरी पालकों को चुगान करने का पास/अनुमति देते थे। वन क्षेत्रों/बुग्यालों में भेड़ बकरी पालकों को चुगान की अनुमति देने की और श्री रूद्रनाथ नाथ मंदिर में चुगान का कर जमा करने की सदियों से चल रही परंपरा के आधार पर यह पूरी तरह स्पष्ट है कि उक्त वन क्षेत्रों का वन विभाग का गठन से पूर्व व बाद तक तथा सेंचुरी क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र घोषित होने से पूर्व तक वनों के संरक्षण की जिम्मेदारी ग्राम बेमरू के ग्रामीण व पधान परिवार की थी। इस अनुमति द्वारा किसी भी गांव का कोई भी व्यक्ति हमारे वन पंचायत क्षेत्र में बकरी चुगान कर सकता था। इस चुगान का कर संबंधित को आवश्यक रूप श्री रुद्रनाथ मंदिर में जमा करना होता था। वन विभाग के गठन व सैंचुरी क्षेत्र घोषित होने से पूर्व यह परंपरा हमारे बुजुर्गों द्वारा कायम रखी गई थी।

अभी भी स्थानीय भेड़ बकरी पालकों द्वारा परंपरा के अनुसार मंदिर में जमा किया जाता है। ग्राम वन पंचायतों की सीमा मानचित्रों में भी स्पष्ट रूप से यह उल्लिखित है कि वन विभाग के सहयोग से गठित की जाने वाली EDC में सम्मिलित गांवों के किसी भी प्रकार के परंपरागत वन्य अधिकार इस क्षेत्र में नही रहे हैं। उक्त क्षेत्र में बकरी चुगान हेतु परमिट जारी करने व कर श्री रुद्रनाथ मंदिर में जमा करने की प्राचीन परंपरा के आधार यह पूरी तरह स्पष्ट है कि इस पूरे क्षेत्र के वन विभाग गठन होने व सैचुरी क्षेत्र नोटिफाई होने से पूर्व के संरक्षक बेमरू ग्रामवासी परंपरागत रूप से रहे हैैं। जिसकी पुष्टि सभी सम्बंधित गांवों के वन पंचायत मानचित्र व अभिलेखों द्वारा भी की जा सकती है। वन विभाग के द्वारा उक्त क्षेत्र में कतिपय ग्रामों को मिलाकर EDC के गठन की प्रक्रिया की जा रही है जो कि क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से प्रशंसनीय है।

लेकिन प्रस्तावित EDC के गठन से पूर्व हम सभी ग्राम बेमरू निवासियों की निम्न आपत्तियाँ व सुझाव सम्मिलित कर उक्त प्रस्तावित EDC गठन से पूर्व इनका निस्तारण प्राथमिकता किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित EDC के अधिकार क्षेत्र में शामिल किए जाने वाले गांवों के वन पंचायत क्षेत्र को ही रखा जाये तथा यह पूरी तरह स्पष्ट रहे कि उक्त EDC का कार्यक्षेत्र उन गांवों की संबंधित वन पंचायत क्षेत्र की सीमा में ही होगा। उक्त समिति के कार्यक्षेत्र की सीमा निर्धारण में भी सभी संबंधित पक्षों के साथ ही ग्राम बेमरू, स्यूंण, डुमक, मठ-झडेता, देवर खडोरा व रुद्रनाथ राजस्व ग्राम के निवासियों को भी बुलाया जाए। जिससे वन अधिकारों में अनावश्यक हस्तक्षेप न हो व आपसी विवाद की स्थिति न पैदा हो।

यह भी अनुरोध किया कि समिति के नाम में रुद्रनाथ नाम के उपयोग से भ्रम पैदा हो रहा है, जबकि यह समिति कुछ गांवों को मिलाकर बनाई जाने वाली EDC मात्र है। ज्ञातव्य है कि पूर्व में वन विभाग द्वारा श्री हेमकुंड साहिब व फूलो की घाटी मार्ग पर ग्राम भ्यूंडार में बनाई गई EDC का नाम भी EDC भ्यूंडार है ना कि EDC फूलों की घाटी या EDC हेमकुंड साहिब। इसी तरह इस EDC में श्री रुद्रनाथ जी या रुद्रनाथ मंदिर के नाम का उपयोग बिल्कुल न किया जाए क्योकि श्री रुद्रनाथ क्षेत्र बहुत बड़ा है व मंदिर के आसपास के वन्य क्षेत्र पर सरंक्षित क्षेत्र घोषित होने से पूर्व से ही सदियों से हमारी वन पंचायत के साथ ही रुद्रनाथ राजस्व ग्राम, डुमक आदि ग्रामीणों का संरक्षण/वन अधिकार रहे हैं। जबकि इस प्रस्तावित EDC में वास्तविक रुद्रनाथ क्षेत्र के मूल निवासी व हक हकूक धारी गांवों से कोई प्रतिनिधित्व ही नही है। पनार बुग्याल से ऊपर के क्षेत्र में पुश्तैनी वन्य अधिकारों का दावा करने वाले सभी गांवों के दावों का दस्तावेजों व मानचित्र के आधार पर निस्तारण करते हुए वास्तविक स्थिति स्पष्ट की जाए जिससे भ्रम की स्थिति दूर हो व EDC गठन के पश्चात गांवों में वन पंचायत की सीमा व EDC के कार्यक्षेत्र को लेकर आपसी विवाद न हो। रुद्रनाथ मंदिर के आसपास स्थित सेंचुरी क्षेत्र में स्थित वन क्षेत्र पर पूर्वजों के समय से ही हमारी वन पंचायत के हक हकूक व स्थानीय आवश्यकताओं हेतु आश्रितता रही है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी सैंचुरी बनने के बाद हमारे वन्य अधिकारों व कर्तव्यों को भी स्पष्टता के साथ हमे समझाया जाए जिससे अपने पूर्वजों की भांति ही हम लोग भी इस वन क्षेत्र के संरक्षण में वन विभाग का बढ़ चढ़ कर सहयोग कर सके।

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