ऊखीमठ : केदारघाटी का हिमालयी भू-भाग फरवरी माह के प्रथम सप्ताह मे धीरे – धीरे बर्फ विहीन होने तथा बसन्त आगमन से पूर्व प्रकृति में रूखापन महसूस होने से तथा फ्यूंली – बुरांस के फूलों के समय से पहले खिलने से पर्यावरणविद खासे चिन्तित है। निचले क्षेत्रो में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसल चौपट होने से काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है। तुंगनाथ घाटी ,देवरियाताल व कार्तिक स्वामी मे मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से क्षेत्र का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गयी है। फरवरी माह के प्रथम सप्ताह मे ही तपन महसूस होने से अप्रैल – मई व जून में विभिन्न क्षेत्रों में भारी पेयजल संकट गहराने की सम्भावनाओं से इनकार नही किया जा सकता है। दो दशक पूर्व दिसम्बर से मार्च महीने तक बर्फबारी से आच्छादित रहने वाले खेत – खलिहानों की फसल चौपट होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है। प्रकृति के साथ निरन्तर मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण प्रति जलवायु परिवर्तन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है । आने वाले समय मे यदि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप व प्रकृति के दोहन पर अंकुश लगाने के लिए पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन की जिम्मा संभाले स्वयं सेवी संगठन जागरूक नही हुए तो भविष्य मे परिणाम गम्भीर हो सकते है। बता दे कि फरवरी शुभारंभ मे ही हिमालय धीरे – धीरे बर्फ विहीन होने लगा है। तापमान मे वृद्धि होने के कारण प्रकृति मे रूखापन महसूस होने लगा है। मौसम के अनुकूल बारिश न होने के काश्तकार की फसलें चौपट होने से काश्तकारो को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है । चैत्र मास के शुभारंभ अवसर पर खिलने वाले फ्यूंली बुरांस के फूलों के इन दिनो पूर्ण यौवन पर आने के कारण पर्यावरणविद खासे चिन्तित हैं। मौसम के अनुकूल बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों पर निरन्तर गिरावट देखने को मिल रही है । गैड़ बष्टी के काश्तकार बलवीर राणा ने बताया कि मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारो की 50 प्रतिशत फसल चौपट होने से काश्तकारो को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है । व्यापार संघ अध्यक्ष चोपता भूपेन्द्र मैठाणी ने बताया कि इस वर्ष तुंगनाथ घाटी मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है । केदार घाटी निवासी सुमन जमलोकी ने बताया कि फरवरी माह मे ही धरती तपने लगी है तथा मई- जून मे भीषण गर्मी पड़ने की प्रबल सम्भावना बनी हुई है। जल संस्थान के अवर अभियन्ता बीरेन्द्र भण्डारी ने बताया कि इस वर्ष मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर भारी गिरावट आने लगी है तथा कई स्थानों पर इस वर्ष अप्रैल महीने से पेयजल संकट गहरा सकता है तथा ग्रामीणों को बूंद – बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड सकता है।