खड़िया भंडार होने के बावजूद स्थानीय युवाओं को नहीं मिला रोजगार, बाहरी काट रहे हैं चांदी
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
देहरादून : दुनिया में सबसे अच्छी क्वालिटी का खड़िया उत्तराखंड के पहाड़ों से आता है। राज्य का बागेश्वर जिला खड़िया उत्पादन में सबसे आगे हैं। हालांकि इसके ताबड़तोड़ खनन से हिमालय से सटे कई पहाड़ खराब हो गए हैं, हर वर्ष लाखों टन खड़िया निकालने से पहाड़ धीरे-धीरे खोखले हो रहे हैं, तो वहीं सदियों पुराने जलस्रोत, नाले और धारे भी समाप्त हो रहे हैं। खड़िया एक सफेद मिट्टी या पत्थर के रूप में मुलायम पदार्थ है। यह जमीन के अंदर चूने से बनता है, और चूना पत्थर के रूप में बाहर निकलता है, जो खनिज कैल्साइट से बना होता है। इसमें जीरो कैल्शियम वाली खड़िया को बेस्ट क्वालिटी का माना जाता है। यह साबुन की तरह सॉफ्ट होता है, जिस कारण इसे सोप स्टोन भी बोला जाता है। यह एक मल्टीपरपज मिनरल्स है। जिसका कई प्रोडेक्ट्स बनाने में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होता है। जिले में खड़िया हजारों लोगों और हिंदुस्तान में लाखों लोगों को रोजगार दे रही है। इसमें माइन मलिक, पार्टनर, मैनेजर, इंजिनियर, फोरमैन, मजदूर, ट्रक, जेसीबी, पोकलैंड मालिक और संचालक, प्रबंधक, लोकल दुकानदारों समेत कई लोग शामिल हैं। वर्तमान में 130 माइन रजिस्टर है। इसमें से अभी 10 माइन खुली गई है। पिछले वर्ष खड़िया उत्पादन से लगभग 29 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। इस बार अन्य माइनों के खुलने के बाद राजस्व प्राप्त होने का आंकलन किया जा सकेगा। खड़िया को ओपन कॉस्ट माइनिंग की सहायता से निकाला जाता है। इसको निकालने के लिए ब्लास्टिंग की आवश्यकता नहीं होती है। इसे सॉफ्ट ढंग से जेसीबी और पोकलैंड मशीन की सहायता से निकाला जाता है। इसको निकालने के लिए चिह्नित एरिया के पिट की खुदाई की जाती है, और पूरी सेफ्टी के साथ इसे बाहर निकाला जाता है।खड़िया पर हुई कई रिसर्च के मुताबिक है, पूरे हिंदुस्तान या पूरे विश्व में बेस्ट क्वालिटी का खड़िया उत्तराखंड के पहाड़ों से आता है, इसमें राज्य का बागेश्वर जिला बेस्ट क्वालिटी खड़िया उत्पादन में सबसे आगे हैं। यहां के खनन पट्टा धारकों का भी मानना है कि बागेश्वर में अच्छी गुणवत्ता का खड़िया निकलता है और इसे ‘बागेश्वर का भाग्य’ भी बोला जा सकता है। बागेश्वर का खड़िया पहले तो हल्द्वानी भेजा जाता है। इसके बाद यहां से अन्य राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात जाता है, और यहां से अन्य राष्ट्रों के लिए एक्सपोर्ट होता है। उत्तराखंड सोप स्टोन माइन एसोसिएशन के अध्यक्ष का मानना है कि यदि उत्तराखंड में खड़िया का औद्योगिक प्लांट स्थापित कर दिया जाएं, तो इससे उत्तराखंड को व्यवसायियों को माल एक्सपोर्ट करने में सरलता होगी। उत्तराखंड और अच्छा फायदा कमा सकेगा। बागेश्वर में खड़िया लगभग 4551 से अधिक लोगों को रोजगार दे रही है। खनन पट्टा धारक का मानना है कि खड़िया पूरे राज्य में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार दे रही है, और इससे करोड़ों का राजस्व राज्य गवर्नमेंट को भी मिल रहा है। इसके अतिरिक्त खनन पट्टा क्षेत्र में पट्टा धारक की ओर से अतिरिक्त 15% क्षेत्र के विकास में खर्च किया जाता है। खड़िया के व्यवसाय में जितना फायदा है यह उतना ही खर्चीला भी है। खड़िया से जुड़े व्यवसायियों का मानना है कि यदि खड़िया से संबंधित औद्योगिक प्लांट उत्तराखंड में ही स्थापित कर दिए जाए, तो इससे बागेश्वर समेत उत्तराखंड के लोगों को अधिक रोजगार मिल सकेगा, और राज्य को भी अच्छा राजस्व प्राप्त हो सकेगा। टीम ने जितने भी खनन पट्टा धारकों से बात की उन सभी का यह मानना था कि उत्तराखंड में खड़िया औद्योगिक प्लांट स्थापित होने से खड़िया के क्षेत्र में उत्तराखंड का भविष्य बेहतर हो सकता है। उत्तराखंड एक ओर जहां अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के ऐसे कई सारे पहाड़ी इलाके हैं जो प्राकृतिक आपदा के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते है। उन्हीं में से एक संवेदनशील जिला बागेश्वर भी है जहां पर बीते कुछ सालों में भूस्खलन और ग्लेशियर खिसकने जैसी घटनाएं घटित हुई है लेकिन इसके बाद भी प्रशासन इस पर ध्यान नहीं देता है। दरअसल बागेश्वर जिले में कुदरत ने चाक ( खड़िया) के रूप में खनिज संपदा का अकूत भंडार दिया है जिसके कारण प्रतिवर्ष हजारों टन खड़िया खोदकर मैदानी जिलों तक पहुंचाई जाती है। जिसका खामियाजा ग्रामीण लोगों को भुगतना पड़ सकता है। बागेश्वर जिले के रीमा से लेकर कांडा तक सोप स्टोन पाया जाता है। इसके कारोबार ने भले ही इससे जुड़े लोगों को को समृद्ध किया हो, लेकिन दशकों से हो रहे खुदान के कारण अब गांवों की बुनियाद खोखली होती जा रहे है। पहाड़ की संवेदनशीलता के बावजूद बागेश्वर में खड़िया खनन का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। रातों रात करोड़पति बनने के सपने रखने के कारण ग्रामीण खेती करने के बजाय अपनी जमीनें खनन कारोबारियों को सौंप रहे हैं। उत्तराखंड के वन और पर्यावरण अतिरिक्त सचिव द्वारा दायर की गई रिपोर्ट को लेकर नाराज़गी भी जाहिर की थी. इसका कहना है कि इसमें कई ‘कमियां’ हैं. मसलन, इसमें उन एजेंसियों को सूचीबद्ध नहीं किया गया, जो नियमित भूवैज्ञानिक जांच की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार हैं. यदि जिले में ही खड़िया पर आधारित उद्योग लगाए जाएं तो बड़े पैमाने पर युवाओं के लिए रोजगार के दरवाजे खुल सकते हैं। पलायन को रोकने में काफी हद तक मदद मिल सकती थी। वर्तमान खनन प्रक्रिया से सिर्फ मजदूर तबके को ही रोजगार मिल रहा है। शिक्षित युवाओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।
लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।