ऊखीमठ : केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से हिमालय धीरे – धीरे बर्फ विहीन होता जा रहा है जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से फरवरी माह में ही तापमान में वृद्धि होने लग गयी है। केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकारों की फसलों को खासा नुकसान हो गया है। आने वाले दिनों में यदि मेघ नहीं बरसते हैं तो मई जून में भारी पेयजल संकट गहरा सकता है! तथा तापमान का पारा अधिक चढ़ने से मनुष्य की दिनचर्या खासी प्रभावित हो सकती है! लगभग दो दशक पूर्व की बात करें तो फरवरी से लेकर मार्च दूसरे सप्ताह तक हिमालयी भूभाग सहित सीमान्त क्षेत्र बर्फबारी से लदक रहते थे।
विगत वर्ष की बात करें तो विगत वर्ष बर्फबारी ने 46 वर्षों का रिकार्ड तोडा़ था मगर इस बार मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से हिमालयी बर्फ विहीन होता जा रहा है। केदार घाटी के निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से प्यूली व बुरास के पुष्प निर्धारित समय से एक माह पूर्व खिल चुके हैं तथा मई माह में तैयार होने वाली सरसों की फसल भी तैयार हो चुकी हैं। मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की गेंहू, जौ की फसलों के साथ राई, पालक की फसलों को खासा नुकसान हुआ है। फरवरी माह में ही तापमान में वृद्धि होना भविष्य के लिए शुभ सकेत नहीं माने जा रहे हैं!
आने वाले दिनों में यदि हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी व निचले क्षेत्रों में बारिश न होती है तो मई जून में भारी पेयजल संकट गहराने से मनुष्य को दो बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है तथा गर्मियों में मौसम का पारा अत्यधिक चढ़ने से मानव का जीना मुश्किल हो सकता है। व्यापार संघ चोपता अध्यक्ष भूपेन्द्र मैठाणी का कहना है कि दो दशक पूर्व अप्रैल महीने तक तुंगनाथ घाटी बर्फबारी से लदक रहती थी मगर इस वर्ष मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से तुंगनाथ घाटी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हुआ है। जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि इस बार फरवरी माह में ही तापमान में वृद्धि होने लग गयी है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है! मदमहेश्वर घाटी मंच अध्यक्ष मदन भटट् का कहना है कि मानव द्वारा निरन्तर प्रकृति का दोहन करने के कारण लगातार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती जा रही है! आचार्य हर्ष जमलोकी का कहना है कि फरवरी माह में पृथ्वी का तपने के लिए कहीं ना कही मनुष्य जिम्मेदार है तथा आने वाले भविष्य में यदि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बन्द नही कि तो भविष्य में इसके बुरे परिणाम होगें।