तिमुडिया वीर से बदरीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना
रघुवीर सिंह नेगी जोशीमठ
भगवान बदरी विशाल के वैकुंठ धाम के कपाट खुलने के एक सप्ताह पूर्व शनिवार को जोशीमठ के नृसिंह मंदिर मठागण में तिमुडिंया मेले का आयोजन किया जाता है। प्राचीन समय में जोशीमठ क्षेत्र के गांवों में तिमुडिंया नामक वीर का आतंक था जिसे भगवती दुर्गा ने युद्ध में परास्त किया युद्ध में परास्त होने पर तिमुड़िया वीर भगवती दुर्गा की शरण में चला गया तब से अपने दिए गए वचन के अनुसार हर वर्ष भगवती दुर्गा के सानिध्य में तिमुडिंया वीर को पूजा दी जाती है। आज जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में तिमुडिया वीर को भरपूर पूजा देकर भक्तों ने बदरीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना की।
कौन हैं तिमुड़िया वीर
लोक मान्यताओं के अनुसार तिमुडिया वीर तीन सिरों वाला वीर है ।
एक सिर से दिशा का अवलोकन दूसरे से मांस का सेवन व तीसरे से शास्त्र का अध्ययन प्राचीन समय में जब लोग बदरीनाथ की यात्रा पर आते थे तो यह वीर प्रतिदिन कई मनुष्यों का भक्षण कर लेता था जिसका ह्यूणा आदि गांवों के आसपास बड़ा आतंक था।
लोगों के अनुरोध पर मां दुर्गा ने इस वीर से कहा कि तुम्हारी साल भर में पूजा होगी ओर तुम लोगों की हत्या नही करोंगे दूसरी मान्यताओं के अनुसार जब मां दुर्गा देवरा यात्रा पर जोशीमठ आई तो तिमुडिया वीर ने इस यात्रा काल में भी अपना आतंक जारी रखा मां दुर्गा ने भक्तों की रक्षा के लिए इस वीर के दो सिर काट दिये जो पहला सिर काटा वो उर्गम घाटी के आसपास गिरा और हिसवा राक्षस के नाम से प्रसिद्ध हुआ दूसरा सेलंग के आसपास गिरा जो पट्पटवा वीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
जैसे ही मां दुर्गा तीसरे काटने लगी तिमुडिया वीर देवी की शरण में चला गया तब मां ने उससे कहा कि तुम नर बलि नही करोंगे तुम्हे हर साल भरपूर पूजा दी जायेगी तब से नृसिंह भगवान मन्दिर में इस वीर का स्थान है हर साल बदरीनाथ के कपाट खुलने से पूर्व यह मेला शनिवार को आयोजित होता है इस वीर का अवतारित पश्वा सवा मण चावल चार किलो गुड तीन घडा पानी तामसिक भोजन करता है देवता शान्त होने के बाद एक सेर आटे का रोट व सवा सेर चावल की खिचडी खाता है मां दुर्गा व दाणी के अवतारित पश्वा भी इस वीर के साथ रहते है जो वीर को अपने नियंत्रण में रखते हैं। पहला सिर उर्गम घाटी में गिरने के बाद भी सिर आतंक मचाने लगा तब घंटाकर्ण उर्गम ने उस सिर को दमाऊ के अंदर बंद कर अपने साथ ले जाने लगे और घंटाकर्ण मंदिर उर्गम के पास वह वीर दमाऊ के अंदर से बाहर आ गया जिससे घंटाकर्ण के इस मंदिर को दमैं कहा जाता है घंटाकर्ण भूमि क्षेत्र पाल ने गांव से 20 किमी दूर हिस्वा ठेला में स्थापित कर वचन दिया कि आज से उर्गम में मेरे स्थान पर जो भी तामसिक पूजा होगी सब तुमको दी जायेगी और जब तुम्हारा आवाहन होगा तब तुम अवतरित होंगे आज भी हिस्वा पावें उर्गम घाटी का रक्षक है तिमुडिया वीर एवं हिस्वा पाबे को तामसिक पूजा दी जाती है एवं पट्टटया वीर को रोट प्रसाद देकर प्रसन्न किया जाता है।
सूदूरवर्ती क्षेत्र जोशीमठ के अंचलों में अनगिनत रहस्यमी परम्परा संस्कृति समाई हुई है आज भी लोग इन परम्पराओं का निर्वहन करते हैं परम्परा संस्कृति रीति रिवाज पौराणिक मेले ही हमें अपनी माटी से जोड़ें रखती है किसी भी गांव राज्य देश की पहचान वहां की संस्कृति सभ्यता वेशभूषा भाषा से होती है ।