भीगी पलकों के साथ भगवती नन्दा स्वनूल देवी कैलाश के लिए विदा हुई
रघुबीर नेगी की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट
उर्गमघाटी की धियाण नन्दा स्वनूल देवी को भूमि क्षेत्रपाल घंटाकर्ण एवं भर्की भूमियाल के सानिध्य में मैनवाखाल व भनाई बुग्याल में जाकर भगवती नन्दा और स्वनूल देवी को उर्गमघाटी में अष्टमी की तिथि को बुलाया गया भगवती नन्दा नंदीकुड व स्वनूल देवी सोना शिखर से अपने मायके उर्गम घाटी अष्टमी तिथि को पहुंची नवमी को फ्यूंलानारायण के कपाट बंद होने के बाद भर्की चोपता मंदिर में जागरों का गायन किया गया जिसमें सभी पंचनाम देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। रात्रि के चारों पहर में पूजा होती है जागरों का निरन्तर गायन होता है जिसमें शिव पार्वती विवाह नन्दा स्वनूल को बुलावा राजा की जात दैत्यासुर संग्राम नारद कथा वर्णन आदि होता है।
सुबह घंटा कर्ण भूमि क्षेत्रपाल उर्गम अपने छोटे भाई से मिलने भर्की गांव जाते है जहाँ देव मिलन होता है जागर दांकुडी गाए जाते हैं।अन्त में दोनों भाई अपनी धियाण नन्दा स्वनूल को जागरों के माध्यम से नन्दीकुंण्ड और सोना शिखर के लिए विदा करते हैं। कुछ पल मैतियों के सानिध्य में अपने मैती सखी सहेलियों से मिलकर भगवती नन्दा स्वनूल भींगी पलकों के साथ विदा होती है।
लोग अपनी धियाण को स्थानीय उत्पाद समुण देकर इस आशा के साथ विदा करते है कि जब उर्गम में चोपता मेला का आयोजन चैत वैशाख महीने में होगा हम तुम्हे जरूर बुलायेंगे घंटा कर्ण अपने छोटे भाई भर्की भूमियाल व अन्य देवी देवताओं को क्षेत्र की रक्षा, दुःख, दरिद्र के लिए कहते हैं और भाई से भेंट कर अपने स्थान लौट जाते हैं इस मेले को भर्की दशमी मेला कहा जाता है।
इस अवसर पर देवेन्द्र पवांर, लक्ष्मण सिंह पंवार, रघुबीर चौहान, हर्षवर्धन सिंह फर्स्वाण, अध्यक्ष मेला कमेटी भर्की भैटा मंगल सिंह चौहान, अब्बल सिंह पंवार, मुकेश कंडवाल, सुरेन्द्र रावत, सरपंच भर्की मंजू देवी, प्रधान भर्की महावीर राणा, पश्वा भूमिक्षेत्र पाल घंटाकर्ण पश्वा दांणी हीरा सिंह चौहान, रणजीत चौहान, पार्वती देवी, आरती देवी, सरस्वती देवी, मुरूकुली देवी, ढोलवादक दीपक, कमला समेत सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।