चमोली
पहाड़ में जीवन बचाने का संकट
उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में अनियोजित विकास कार्यों से पहाड़ का जनजीवन खतरे में पड़ गया है। पहाड़ी जनपदों के हर दूसरा – तीसरा गांव भूस्खलन व भूधंसाव का दंश झेल रहा है। जिससे सैकड़ों गांवों के हजारों परिवार बेघर होने के कगार पर खड़े हैं। समय रहते पहाड़ी गांवों और नगरों की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले दशकों में गांवों का भविष्य समाप्त हो जाएगा। और गांव रहने के लिए सुरक्षित नहीं बचेंगे। गांवों को जोड़ने वाली मोटर मार्गों का अनियोजित कार्य भी भूस्खलन व भूधंसाव का मुख्य जिम्मेदार है।
भूस्खलन से पगनों गांव पर मंडराया संकट
ग्रामीण सड़कों के निर्माण एजेंसियां मनमर्जी कटिंग कर मकिंग को जिस तरह से बिना डंपिंग जोन के जहां – यहां फेंकने के साथ ही गांवों के बरसाती नालों में डंपिंग कर रहे हैं। उससे सैकड़ों गांवों का भविष्य खतरे में पड़ गए हैं। साथ ही गांवों की हजारों नाली कृषि भूमि भी खत्म हो गई है। जिसका मुआवजा भी ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है। ऑलवेदर और ग्रामीण सड़कों के निर्माण में लाखों पेड़ काट और तबा दिए गए हैं। जबकि इनके एवज में कोई पेड़ नहीं लगाए गए हैं ! इससे पहाड़ के पर्यावरण पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। और मौसम में भी परिवर्तन आ गया है। पहाड़ में तापमान हर वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव यहां के कृषि व बागवानी पर भी पड़ रहा है। पहाड़ जिस तरह से भूस्खलन और भूधंसाव से दरक रहे हैं। उससे लोग अपने घरों को छोड़कर भाग रहे, अपने जीवन भर की कमाई को अपने सामने जमींदोज होते देख लोगों के आंखों से आंसू टपक रहे हैं। जोशीमठ नगर के भूधंसाव का दंश पूरे देश और दुनिया ने देखा है। अब जोशीमठ विकासखंड के ही पगनों गांव के ऊपर से जिस तरह से पूरा पहाड़ ही दरक रहा है। उससे ग्रामीण दशहत में हैं। ग्राम प्रधान रीमा देवी ने बताया कि हमारा पूरा ही गांव खतरे में पड़ गया है। अब यहां रहना खतरे से खाली नहीं है। उन्होंने शासन – प्रशासन से विस्थापन की मांग की।