आस्था का सबसे बड़ा केंद्र देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड अपने धार्मिक स्थलों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। यहां ऐसे बहुत से मंदिर हैं जिनकी महिमा पूरे विश्व भर में फैली हुई है। इनमें से एक है पंचकेदार में चतुर्थ केदार के रूप में प्रसिद्ध रूद्रनाथ का मंदिर। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय पांडवों ने किया था यहां दूर-दूर से लोग भगवान शिव के मुखाकृति के दर्शनार्थ आते हैं। लेकिन यात्रा में समुचित व्यवस्था न होने के चलते यात्रियों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
संतोष कुंवर
नैसर्गिक सौंदर्य के बीच स्थित पंचकेदारों में प्रसिद्ध चतुर्थ केदार भगवान रूदनाथ का मंदिर विराजमान है। भारत में शिव का यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां भक्तों को भगवान शिव के मुखारविंद के दर्शन होते हैं।
हर वर्ष ग्रीष्मकाल में कपाट खुलने पर हजारों श्रद्धालु भोले के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। पंच केदारों में भगवान रूदनाथ की सबसे कठिन यात्रा है। प्रशासन द्वारा यहां के पैदल मार्ग में किसी भी तरह की मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था नहीं की गई है। जिससे यहां पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन व वन विभाग पैदल ट्रैक पर मूलभूत सुविधाओं विकसित करती है तो इससे जहां तीर्थयात्रियों को लाभ मिलेगा वहीं स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा। जिला प्रशासन की उदासीनता के चलते तीर्थयात्रियों में भी नाराज़गी है।
नैसर्गिक सौंदर्य धरती का स्वर्ग पनार बुग्याल
उत्तराखंड हिमालय में नैसर्गिक सौंदर्य व चारों ओर फूलों की क्यारियां के साथ मखमली बुग्यालों के मध्य चतुर्थ केदार भगवान रूदनाथ का मंदिर विराजमान है। संपूर्ण भारत में शिव का यह एक मात्र मंदिर है जहां शिव के मुखारविंद के दर्शन श्रद्धालुओं को होते हैं। लगभग 2290 मीटर की उंचाई पर स्थित भगवान रूदनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालु लालायित रहते हैं। 22 किमी की दुरूह व कठिन यात्रा कर भगवान के दर तक पहुंचना हर किसी श्रद्धालु के लिए आसान नहीं होता है। जिसके चलते यहां पर यात्रा काल में अन्य धामों से कम तीर्थयात्री व पर्यटक यहां पहुंच पाते पाते हैं।
चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ धाम में दर्शन करते श्रद्धालु
गोपेश्वर – सगर गांव होते हुए 22 किमी की पैदल यात्रा में कई किमी खड़ी चढ़ाई पार कर पनार बुग्याल पहुंचे हैं। चार – पांच किमी क्षेत्र में फैला पनार बुग्याल पहुंच कर तीर्थयात्रियों व पर्यटकों को स्वर्ग सा एहसास होता है। पनार बुग्याल चारों ओर से मखमली हरी घास के साथ दर्जनों किस्म के रंग-बिरंगे फूलों से भरा रहता है। जहां पहुंच कर श्रद्धालु की थकावट कुछ पलों में ही गायब हो जाती है। पनार बुग्याल के बाद चतुर्थ केदार भगवान रूदनाथ के लिए हल्की चढ़ाई के साथ सीधा मार्ग पड़ता है।
तीर्थयात्रियों व पर्यटकों का फूलों से होता स्वागत
पनार बुग्याल में वन विभाग का हट और एक – दो दुकानें हैं जहां पर श्रद्धालुओं द्वारा चाय – नाश्ता और खाना खाकर थकावट दूर की जाती है। कुछ तीर्थयात्री यहां पर रात्रि विश्राम भी करते, लेकिन यहां पर 10 – 20 तीर्थयात्रियों से अधिक ठहरने की व्यवस्था नहीं है। लिहाजा अधिकतर श्रद्धालु धीरे – धीरे हल्के कदमों से आगे बढ़ते हुए रात्रि विश्राम के लिए मंदिर परिसर में पहुंचते हैं। जहां पर मंदिर समिति द्वारा श्रद्धालुओं को ठहरने की उचित व्यवस्था है। भगवान रूदनाथ ट्रैक पर घोड़े – खच्चर की भी ज्यादा व्यवस्था नहीं है केवल स्थानीय लोगों के लगभग दर्जन भर घोड़े खच्चर ही यहां चलते हैं। जबकि अधिकतम तीर्थयात्रियों व पर्यटकों द्वारा पैदल ही इस मार्ग पर आगे बढ़ा जाता है। तीर्थयात्रियों को सबसे अधिक परेशानी तब होती है जब यहां हर समय मौसम बनता और बिगड़ता रहता है। पैदल रास्ते पर चमोली प्रशासन व केदारनाथ वन प्रभाग द्वारा किसी तरह के स्थाई व अस्थाई टेंट तक की व्यवस्था नहीं की गई है और नहीं कहीं पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। भगवान रूदनाथ की यात्रा पर सभी श्रद्धालु बाजार से या घर से ही अपनी व्यवस्था करके दर्शन के लिए पहुंचते हैं। प्रशासन द्वारा इस कठिन मार्ग पर सुरक्षा और मेडिकल की भी कोई व्यवस्था नहीं है। जिस पर देश – प्रदेश से आने वाले तीर्थयात्रियों ने वन विभाग और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। अभी दो सप्ताह पुर्व ही तमिलनाडु की एक महिला श्रद्धालु घोड़े से गिर गई थी, मेडिकल व्यवस्था न होने पर जिसे किसी तरह उपचार के लिए गोपेश्वर जिला अस्पताल पहुंचाया गया। जहां इलाज के बाद उन्हें डिस्चार्ज किया गया। दूसरी ओर पैदल मार्ग पर अधिकतर समय बारिश होती रहती है, ऐसे में श्रद्धालुओं को बारिश से बचने के लिए अस्थाई टेंट तक की व्यवस्था प्रशासन व वन विभाग द्वारा नहीं किया गया है। जिससे तीर्थयात्रियों के खाने के सामान के साथ अन्य बदलने वाले कपड़े भी रास्ते में भीग जाते हैं। रुद्रनाथ यात्रा पर गयी महिला तीर्थयात्री ज्योति कंडारी द्वारा पैदल रास्ते में मूलभूत सुविधा न होने पर शासन – प्रशासन व वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। महिला तीर्थयात्री ज्योति कंडारी अपने साथियों के साथ रूद्रनाथ पैदल मार्ग पर भारी बारिश से पूरी तरह भीग गये थे, साथ ही उनके खाने का सामना और अन्य कपड़े भी भीग गये थे। तब उन्होंने एक पहाड़ी के नीचे शरण लेकर अपना बचाव किया। महिला तीर्थयात्री ने कहा कि वन विभाग इतनी बड़ी मात्रा में टैक्स लेता है कम-से-कम पैदल मार्ग पर बारिश से बचने के लिए कुछ अस्थाई टेंट या अन्य व्यवस्थाएं कर सकता है। उन्होंने कहा कि धामों में बुजुर्ग लोग तीर्थयात्रा के लिए आते हैं पैदल मार्ग पर कोई भी व्यवस्था न होने पर ऐसे में कैसे लोग धाम के दर्शन कर पाएंगे ?
बात अपनी – अपनी
पंचकेदारों में चतुर्थ केदार भगवान रूदनाथ की यात्रा सबसे कठिन है। सभी तीर्थयात्री अपनी स्वयं की व्यवस्था से यहां पहुंचते हैं। प्रशासन को पैदल ट्रैक पर मूलभूत सुविधाओं के साथ शेल्टर व मेडिकल की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे तीर्थयात्रियों को किसी तरह की परेशानी न हो और देश – दुनिया में देवभूमि से अच्छा संदेश जाए।
मनोज तिवारी स्थानीय निवासी गोपेश्वर
बदरीनाथ हाईवे पीपलकोटी से 10 किमी वाहन से बेमरू गांव पहुंचकर यहां से 6 किमी दूरी पर तोलीताल होते हुए तीर्थयात्री व पर्यटक पनार बुग्याल से एक दिन में रूद्रनाथ पहुंच सकता है। तीर्थयात्री और पर्यटक चाहे तो तोलीताल और पनार में रात्रि विश्राम कर दूसरे दिन भी रूद्रनाथ पहुंच सकते हैं। बेमरू गांव के ग्रामीणों द्वारा रक्षाबंधन पर्व पर हर दूसरे वर्ष जाख देवता लाटा लिंग के सानिध्य में रूद्रनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। यह परम्परा सदियों से होकर चली आ रही है। जो आज भी अनवरत जारी है। प्रशासन और पर्यटन विभाग को चाहिए की यहां के पैदल ट्रैक को विकसित किया जाए। जिससे तीर्थयात्री यहां से भी तोलीताल को निहारते हुए रूद्रनाथ दर्शन को पहुंचे।
रविन्द्र नेगी पूर्व प्रधान बेमरू
रूद्रनाथ मंदिर सेंचुरी जोन क्षेत्र में आता है, जहां पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते किसी तरह का भी स्थाई – अस्थाई कंस्ट्रक्शन नहीं किया जा सकता है।