चमोली : लक्ष्मी रावत पर्यावरण संरक्षण व महिला सशक्तिकरण की बनी मिशाल

Team PahadRaftar

चिपको आंदोलन की धरती पर 20 सालों में 50 हजार वृक्षारोपण कर चर्चा में आई लक्ष्मी रावत उत्तराखंड की महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई है। 500 स्वयं सहायता समूह बनाकर 150 ग्राम संगठनों के जरिए 5 हजार महिलाओं को स्वावलंबन बनाने का प्रशिक्षण दे चुकी हैं। 2018 में पर्यावरण संरक्षण के लिए गौरा देवी सम्मान प्राप्त लक्ष्मी रावत को उत्तराखंड सरकार द्वारा हरियाणा में भी भेजा गया। जहां उन्होंने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत सैकड़ों महिलाओं का प्रशिक्षित किया। देवभूमि में महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी लक्ष्मी का लक्ष्य अधिक से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना है।

संतोष कुंवर

पर्यावरण संरक्षण में चमोली जिले की महिलाओं का हमेशा ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए देश और दुनिया में चिपको आंदोलन की जननी भी चमोली जिला ही रहा है। सीमांत जोशीमठ ब्लाक के रैणी गांव की गौरा देवी के नेतृत्व में ही 26 मार्च 1974 को रेणी में वृक्ष काटने आए लोगों को यहां की महिलाओं ने यह कहकर भगा दिया कि जंगल हमारा मायका है, हम इसे कटने नहीं देंगे। पेड़ों को बचाने के लिए महिलाएं पेड़ से चिपक गई। यहीं से देश और दुनिया में चिपको आंदोलन की मुहिम शुरू हुई थी।

चमोली जिले में चिपको की भूमि में अब एक ऐसी महिला भी हैं जो 20 सालों से पर्यावरण संरक्षण के साथ ही महिला सशक्तिकरण के लिए आगे आकर काम कर रही है। और 20 वर्षों में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक पौधों का रोपण के साथ संरक्षण के लिए महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। इतना ही नहीं इनके द्वारा उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में अब तक पांच सौ से अधिक महिला समूह बनाकर लगभग पांच हजार से अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण देकर जागरूक किया गया है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जैविक खेती के माध्यम से भी विभिन्न प्रकार की सब्जी उत्पादन का प्रशिक्षण और दुग्ध उत्पादन के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिससे सैकड़ों लोगों को स्वरोजगार से जोड़ चुकी है। और महिला सशक्तिकरण के लिए जागरूक अभियान के साथ ही स्वच्छता अभियान भी चलाया जा रहा है।

चमोली जिले के थिरपाक गांव की लक्ष्मी रावत पर्यावरण संरक्षण के साथ महिला समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए निरंतर आगे आकर कार्य कर रही है। कर्णप्रयाग ब्लॉग के सोनाली गांव में जेठुली देवी व भवान सिंह के घर में लक्ष्मी रावत का जन्मदिन 1984 में हुआ। जन्म के कुछ साल बाद ही उनकी मां का साया सर से उठ गया। मां का साया सिर से उठ जाने के बाद उनका पालन – पोषण उनकी दूसरी मां गुड्डी देवी द्वारा किया गया। गरीब किसान परिवार में पैदा हुई लक्ष्मी का जीवन बचपन से ही संघर्षमय रहा। बचपन में ज्यादा समय जंगल और घर के बीच ही व्यतीत हुआ। जिससे उन्हें बचपन से ही पेड़ – पौधों से गहरा लगाव होने लगा। आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद घर वालों ने 15 वर्ष की आयु में वर्ष 1998 में इनकी शादी थिरपाक गांव में कर दी। उनके पति बलबीर सिंह बहुत ही सरल स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति हैं। बचपन में ही ठोकर खाकर पली बढ़ी लक्ष्मी की छोटी उम्र में शादी होने के बाद भी उसने अपने को ससुराल में जल्द ही सामंजस्य बना दिया। और अपने कार्य और मेहनत से परिवार का दिल जीत लिया।

आर्थिक रूप से कमजोर लक्ष्मी रावत का भी खेती किसानी कर अपनी आजीविका चला रहे थे। इसी बीच उन्होंने 2003 में गांव की पांच महिलाओं के साथ मिलकर नंदाकिनी स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें गुड्डी देवी अध्यक्ष, लक्ष्मी रावत कोषाध्यक्ष, गोदाम्बरी देवी, रामेश्वरी देवी व कलावती देवी थी। जिसमें पांचों ने मिलकर हर महीने 100 रूपए जमा कर आगे बढ़ाया गया। समूह के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2008 में दुग्ध डेरी खोली गई और गांव में दूध इकठ्ठा कर पांच किमी दूर नंदप्रयाग बाजार तक पहुंचा गया और वहां दुकानों में विक्रय किया गया। इससे गांव की महिलाओं की आमदनी बढ़ने लगी तो आसपास के गांवों में भी इसकी खबर पहुंच अन्य गांव के लोगों ने भी दुग्ध उत्पादन शुरू किया गया। जिससे लक्ष्मी रावत ने धीरे-धीरे आसपास के गांवों की महिलाओं को जागरूक कर उन्हें भी दुग्ध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया। थिरपाक गांव की पांच महिलाओं से शुरू हुआ कारवां बढ़ता गया और कुछ ही सालों में थिरपाक, कमेडा, खडगओलई, तेफना, मंगरोली, चटिग्याला,कंडारा,सुनाली,बांतोली, सेंज व सिलंगी सहित नंदप्रयाग न्याय पंचायत के 23 पंचायत में लक्ष्मी रावत ने महिलाओं को दुग्ध उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिससे महिलाओं की आर्थिकी भी मजबूत होती गई। और तब 23 गांवों से 600-700 लीटर दूध इकठ्ठा होकर बाजार पहुंचने लगा और महिलाएं अधिक मेहनत कर आत्मनिर्भर बनने लगी। अधिक दुग्ध उत्पादन होने पर महिलाओं द्वारा नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग तक इसकी मार्केटिंग किया गया।

महिलाओं को इसमें हीमोत्थान संस्था द्वारा भी सहयोग किया गया। इसके बाद इन्होंने 23 समूहों के लिए एकता स्वायत्त सहकारिता समिति का गठन किया गया। जिसके माध्यम से महिलाओं द्वारा अब दुग्ध उत्पादन के साथ ही जैविक खेती भी की जा रही है जिससे विभिन्न सब्जियों और दालों का उत्पादन किया जा रहा है। लक्ष्मी रावत ने सभी समूहों की महिलाओं को आर्थिकी बढ़ाने के लिए जैविक खेती का प्रशिक्षण देकर उन्हें सब्जी में टमाटर, गोबी, मशरूम, लहसून, गोबी, भिंडी, राई, मूली उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया। और ग्रामीण महिलाओं को जैविक खेती में विभिन्न फसलों मंडुवा, कहथ की दाल, रैंस, काले व सफेद भट्ट, तौर जैसे अन्य दालों के उत्पादन के लिए जागरूक किया गया। अधिक उत्पादन होने पर इसके लिए सोनला में प्रोसेसिंग मशीन लगाकर इनका नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोपेश्वर में मार्केटिंग किया गया। धीरे – धीरे-धीरे इसका आकार बढ़ने लगा तो एकता स्वायत्त सहकारिता से 720 महिलाएं जुड़ गई हैं।

सोनला में महिलाओं द्वारा आटा,मशाल, धान पिसाई चक्की के साथ तेल निकालने और जूस निकालने की मशीन लगा दी गई है। लक्ष्मी देवी ने महिलाओं को स्थानीय उत्पादन के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए भी सभी महिलाओं को जागरूक किया गया और हर वर्ष हजारों पेड़ भी रोपण किया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को कर्ज देकर स्वरोजगार स्वरोजगार से भी जोड़ा गया है। जिससे गाय,भैंस, दुकान और वाहन तक के लोन दिया जा रहा है। लक्ष्मी देवी ने बताया एकता स्वायत्त सहकारिता अध्यक्ष पद पर रहते उन्होंने विगत दो वर्ष में 35 लाख से अधिक का लोन महिलाओं को दिया गया है। उन्होंने कहा कि अब महिलाओं द्वारा तिमला, आंवला, लेंगुडा, आम का अचार भी बनाया जा रहा है। इसके मार्केटिंग के लिए स्थानीय बाजारों के साथ ही कर्णप्रयाग में हाट बाजार में अपना उत्पाद बेचा जाता है।

लक्ष्मी देवी ने कर्णप्रयाग ब्लॉक के माध्यम से विभिन्न प्रशिक्षण लिया गया है। जिसके बाद उन्हें मास्टर ट्रेनर के रूप में जिले के विभिन्न गांवों में स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए भेजा गया। लक्ष्मी देवी ने न्याय पंचायत से बाहर निकल कर मास्टर ट्रेनर के रूप में जोशीमठ ब्लाक के उर्गमघाटी के देवग्राम, ल्यांरी,भर्की, भेठा, पिलखी, आरोसी व ग्वाड़ में महिला समूह बनाकर उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण के लिए भी जागरूक किया गया। ऐसे ही नौटी न्याय पंचायत में 30 समूह बनाया गया और नौली क्लस्टर में 40 समूह बनाकर प्रशिक्षण दिया गया। इस तरह चमोली जिले में 180 से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाया गया। पर्यावरण में निरंतर काम करने पर इन्हें 2018 में गौरा देवी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। लक्ष्मी का महाअभियान यहीं नहीं रुका उनके उत्कृष्ट कार्य को देखते हुए उनका महिला समूह तैयार करने के लिए प्रदेश स्तर पर मास्टर ट्रेनर के रूप में चयन हुआ। इसी बीच लक्ष्मी रावत से गांवों में महिलाओं द्वारा यह पूछा जाता कि आपने कितने तक पढ़ाई की है तो उनके मन में यह बात घर कर गई कि मैं तो कम पढ़ी लिखी हूं तो उन्होंने बढ़ाई आगे करने की ठानी और 20 16 में हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा पास की। 2018 में जब लक्ष्मी रावत 12वीं परीक्षा दे रही थी तो दूसरी कक्ष में बेटी 10वीं की परीक्षा दे रही थी। इस तरह मां – बेटी ने बोर्ड परीक्षा एक साथ दी। लक्ष्मी का जुनून ही है कि उसने घर परिवार, सामाजिक कार्य और पढ़ाई एक साथ पूरी की। जिसमें उनके पति व परिवार का उन्हें पूरा सहयोग मिला। लक्ष्मी अभी बीए फाइनल की भी पढ़ाई कर रही है। इस बीच उत्तराखंड स्तर पर मास्टर ट्रेनर बनने पर उन्होंने गढ़वाल व कमाऊं के आठ से अधिक जिलों में जिनमें चमोली, रूद्रप्रयाग, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, नैनीताल, उधमसिंहनगर, चंपावत सहित अन्य जिलों में 500 से अधिक समूह व 150 ग्राम संगठन और लगभग 5000 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। इस तरह उन्होंने अपने गांव के साथ ही उत्तराखंड में हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक किया गया। इस दौरान 20 वर्षों में उन्होंने 50 हजार से अधिक विभिन्न प्रजातियां बांज, बुरांश, आंवला, काफल, के पेड़ों का रोपण भी किया गया है। पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्हें कर्णप्रयाग वन विभाग द्वारा सराहनीय कार्य किए भी प्रमाण पत्र दिया गया। उनकी कार्य कौशल को देखते हुए 2022 में उन्हें उत्तराखंड से हरियाणा के जिंद जिले में महिलाओं को प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। जहां उन्होंने 600 महिलाओं को महिला समूहों और महिला सशक्तिकरण के लिए जागरूक किया गया। लक्ष्मी रावत ने बताया कि कोरोना काल में भी उन्होंने ने स्वयं अपने घर में ही 1000 बोतल सेनेटाइजर बना कर लोगों में निशुल्क बांटा गया। कही गांवों में मास्क भी वितरित किया गया। लक्ष्मी रावत ने कहा कि बचपन से ही जंगल और घर का नाता बना रहा जिससे उनमें पेड़ पौधों और जंगलों से बचपन से ही प्यार बना रहा। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य है कि पर्यावरण संरक्षण के साथ महिलाओं समूहों के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए और अधिक कार्य करना है। इसके लिए मैं निरंतर कार्य कर रही हूं और सैकड़ों महिलाओं को इसका लाभ मिल भी रहा है।

 

Next Post

उत्तरकाशी : सीएम धामी ने की मंडुआ की बुआई

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने उत्तरकाशी के दो दिवसीय दौरे पर आज प्रातः काल उत्तरकाशी के ग्राम सिरोर में “मंडुआ” की बुआई कर हर किसी का ध्यान अपनी आकर्षित किया है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जिस प्रकार मिलेट्स का प्रचार प्रसार हो रहा है उसी का परिणाम है […]

You May Like