लक्ष्मण नेगी
ऊखीमठ : केदारघाटी के ऊंचाई वाले इलाके फरवरी माह में ही बर्फ विहीन होने से पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं।
केदारघाटी का ऊंचाई वाला भू:भाग फरवरी माह में ही बर्फ विहीन होना जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है जो कि भविष्य के लिए शुभ संकेत नही है! जलवायु परिवर्तन होना प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप माना जा रहा है। निचले क्षेत्रों में भी मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें चौपट होने की कंगार पर है तथा काश्तकारों को भविष्य की चिन्ता सताने लगी है तुंगनाथ घाटी में भी मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से तुंगनाथ घाटी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो गया है। दिसम्बर माह से लेकर मार्च माह के प्रथम सप्ताह तक पर्यटकों से गुलजार रहने वाली तुंगनाथ घाटी वीरान है। जलवायु परिवर्तन के कारण फ्यूंली, बुंरास सहित अनेक प्रजाति के पुष्प निर्धारित समय से डेढ़ माह पहले खिल चुके हैं। प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर में निरन्तर गिरावट आने से मई जून में अधिकांश इलाकों में पेयजल संकट गहरा सकता है। केदार घाटी में फरवरी माह के अन्त में ही चारा चढ़ने से प्रकृति प्रेमी खासे चिन्तित हैं। डेढ दशक पूर्व की बात करे तो केदार घाटी का सीमान्त क्षेत्र तोषी, त्रियुगीनाराण, गौरीकुण्ड, चौमासी, रासी, गौण्डार, देवरिया ताल, चोपता, मोहनखाल, कार्तिक स्वामी व घिमतोली का भूभाग दिसम्बर माह से लेकर मार्च माह के दूसरे सप्ताह तक बर्फबारी से लदक रहना था तथा मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश होने से प्रकृति के साथ काश्तकारों की फसलों में नव ऊर्जा का संचार होने लगता था। मगर इस बर्ष मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होने से पर्यावरणविद् व काश्तकार खासे चिन्तित हैं तथा भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं मान रहे हैं। मौसम के अनुकूल बर्फबारी व बारिश न होना जलवायु परिवर्तन माना जा रहा है। जिला पंचायत सदस्य परकण्डी रीना बिष्ट का कहना है कि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने से जलवायु परिवर्तन की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्रधान पाली सरूणा प्रेमलता पन्त का कहना है कि निचले इलाकों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से काश्तकारों की फसलें चौपट होने की कंगार पर है। प्रधान पठाली गुड्डी राणा ने बताया कि इस बार तुंगनाथ घाटी में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से पर्यटकों के आवागमन में भारी गिरावट देखने को मिली है। प्रधान बुरुवा सरोज भटट् ने बताया कि एक दशक पूर्व फरवरी माह में काली शिला का भू-भाग बर्फबारी से लकदक रहता था मगर इस बार काली शिला का भू-भाग बर्फ विहीन है। प्रधान बेडूला दिव्या राणा ने बताया कि केदारघाटी के निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश न होने से प्राकृतिक जल स्रोतों के जल स्तर पर निरन्तर गिरावट देखने को मिल रही है। प्रधान कोटमा आशा सती का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में लगातार मानवीय आवागमन होने से जलवायु परिवर्तन की समस्या लगातार बढ़ रही है तथा भविष्य में यह समस्या और गम्भीर हो सकती है।