मातृभाषा दिवस के अवसर पर कलम क्रांति साहित्यिक मंच चमोली उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में कवियों ने गढ़वाली कविताओं से वातावरण को गुंजायमान किया। ग्रीन वैली हाॅल में आयोजित इस कार्यक्रम में कलम परिवार के वरिष्ठ कवियों के साथ कई नवोदित कवि कवयित्रियों ने भी अपनी गढ़वाली कविता का वाचन किया। गोष्ठी का शुभारम्भ मां सरस्वती की वंदना से किया गया तत्पश्चात कलम क्रांति साहित्यिक मंच की संस्थापिका शशि देवली ने जनपद चमोली के सुविख्यात साहित्यकार स्व. श्री शिवराज सिंह रावत ‘निसंग’ जी की रचना “गढ़ कुमौ की लाड़ी च यो म्यरू पाड़” रचना का वाचन कर उनकी कृतियों का स्मरण कराया।
इस अवसर पर मंच की सबसे छोटी नवोदित कवयित्री वैभवी कपरुवाण को मंच द्वारा सम्मानित भी किया गया। वैभवी ने “मां नंदा तु जेयी सोर्यास, बिसरी ना जेई लगी रैलि आस” रचना का पाठ किया और सभी की वाहवाही बटोरी।
वरिष्ठ कवयित्री दीपलता झिंकवाण ने “देवी त्यरु द्वार सज्यूं ” स्वरचित रचना से सबका मन मोह लिया। कवि अनिरुद्ध सिनवाल ने “देखा कति बड़ी बीमारी लगी च,
ई कोरोना कु कुई हिसाब नी,
इमा त सबकी बारी लगी च” कविता सुनाकर तालियां बटोरी।
नवोदित कवयित्री प्रेरणा सेमवाल ने “लाड़ी म्यरा गौळा की घण्डुली बणि गे” रचना सभी बेटियों को समर्पित की। अनुकृति डिमरी ने
“कि कन जमानु एगी कि हम गढ़वाली भु़लण लग्या छिन ।
अपणा बटिन अपणी पहचान मिटोण लग्या छिन” कविता से श्रोताओं को चिंतन की ओर ले गयी। मंच की वरिष्ठ कवयित्री ज्योति कपरुवाण ने “प्रकृति मां हरयलि ल्यावा,
डाल्यों रोपा धरती बचावा” कविता सुनाकर पर्यावरण बचाओ का संदेश दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिमांशु थपलियाल ने मातृभाषा के रखरखाव तथा अगली पीढ़ी को सुसंस्कृत करने हेतु भाषा के महत्व के बारे में जानकारी दी। अंत में मंच की संस्थापिका शशि देवली ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए गढ़वाली भाषा के प्रचार- प्रसार तथा अगली पीढ़ी को अपनी भाषा से सुदृढ़ करने की बात की।मंच का संचालन नरेन्द्र रावत ने किया।