पहाड़ की बेटी मांगल गर्ल नंदा सती को संगीत में मिला गोल्ड मेडल, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया प्रदान
चमोली : हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के 11 वें दीक्षांत समारोह में विभिन्न छात्र – छात्राओं को विभिन्न विषयों में गोल्ड मेडल और डिग्रियां प्रदान की गयी। दीक्षांत समारोह में सीमांत जनपद चमोली की पिंडर घाटी के नारायणबगड़ ब्लाॅक के नारायणबगड गांव की बेटी मांगल गर्ल नंदा सती को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा मास्टर ऑफ आर्ट (संगीत विषय) में गोल्ड मेडल प्रदान किया गया।
मांगल गर्ल नंदा सती ने गोल्ड मेडल हासिल करके न केवल गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का नाम ऊंचा किया अपितु पहाड़ की बेटियों के लिए नये प्रतिमान भी स्थापित किया है। मांगल गर्ल नंदा सती ने मास्टर ऑफ आर्ट (संगीत) में गोल्ड मेडल हासिल करके ये संदेश दिया है कि आज पहाड़ की बेटियां केवल खेत खलिहान, घास लकड़ी और चूल्हा चौके तक ही सीमित नहीं है। अब वो हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है और सफलता हासिल करने में सक्षम हैं। नंदा सती की माँ और पिताजी अपनी बेटी को गोल्ड मेडल से सम्मानित होने के समारोह का हिस्सा बनी और बेटी की सफलता पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर नाज है। कहती हैं कि हमें खुशी है कि उसने पहाड़ का नाम रोशन किया है। वहीं नंदा सती ने अपनी सफलता का सारा श्रेय अपने माँ पिताजी और शिक्षकों को दिया।
कौन है नंदा सती
सीमांत जनपद चमोली के पिंडर घाटी के नारायणबगड ब्लाॅक के नारायणबगड गांव की रहने वाली है नंदा सती। नंदा के पिताजी ब्रह्मानंद सती पंडिताई का कार्य करते हैं जबकि मां गृहणी है। तीन बहिनों में नंदा सबसे छोटी हैं जबकि उनका एक छोटा एक भाई भी हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर 12 वीं की शिक्षा नंदा ने नारायणबगड से प्राप्त की। हेमवंती नंदन केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर से स्नातक और संगीत विषय में स्नाकोत्तर की डिग्री हासिल की है। 22 साल की छोटी सी उम्र में नंदा सती द्वारा गाये जानें वाले मांगल गीतों और लोकगीतों को सुनकर हर कोई अचंभित हो जाता है। मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति पर उनकी लोक को चरितार्थ करती जादुई आवाज और हारमोनियम पर थिरकती अंगुलियां लोगों को झूमने पर मजबूर कर देती है। लोग के मध्य नंदा सती, मांगल गर्ल के नाम से प्रसिद्ध है। यही नहीं हारमोनियम पर उनकी पकड़ वाकई अद्भुत है। जिस उम्र में आज की युवा पीढ़ी मोबाइल, मेट्रो और गैजेट की दुनिया में खोई रहती है उस उम्र में नंदा का अपनी लोक संस्कृति से इतना लगाव उन्हें अलग पंक्ति में खड़ा करता है। नंदा ने मांगल गीतों के संरक्षण और संवर्धन के जरिये एक नयी लकीर खींची हैं। भले ही नंदा सती के घर के ठीक सामने बहनें वाली पिंडर नदी में हर दिन लाखों क्यूसिक मीटर पानी बिना शोर शराबे के यों ही बह जाता हो परंतु नंदा के मांगल गीतो की गूंज देश दुनिया तक सुनाई दे रहे हैं। नंदा पहाड के लोक में रचे बसे मांगल गीतों और लोकगीतों के संरक्षण और संवर्धन में बडी शिद्दत से जुटी हुई है।
ये होते हैं लोकगीत
लोकगीतों का संसार बड़ा ही रोचक होता है, जिनका जुड़ाव सीधा लोगों से होता है। लोकसंगीत लोक गीतों की आत्मा है। पहाड़ के लोकजीवन का प्रतिबिम्ब यहां के लोकगीत और लोक संगीत में दिखाई देता है।
गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिली लोकगीतों की समझ और गुनगुना।
मांगल गर्ल नंदा सती कहती हैं लोकगीत और मांगल गीत हमारी सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। लोकगीत पीढ़ी दर पीढी एक दूसरे को हस्तांतरित होते हैं। इनके बिना पहाड़ के लोक की कल्पना करना असंभव है। मैं बहुत ख़ुशनसीब हूं की मुझे मांगल गीतों की समझ और महत्ता अपने गांव के बुजुर्गों से विरासत में मिली, जो बरसों से इनको संजोते आ रहें हैं।
कोरोना काल में डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिये मांगल और लोकगीतों को हजारों लोगों तक पहुंचाया।
भले ही कोरोना काल लोगों के लिए दुःस्वप्न साबित हुआ हो लेकिन नंदा सती ने इस कठिन दौर में भी अपनी मांगल गीतों के जरिये लोक संस्कृति की सौंधी खुशबू को देश – विदेश तक हजारों लोगों तक पहुंचाया। नंदा सती ने लाॅकडाउन की अवधि में विभिन्न ग्रुपों, संगठनों, फेसबुक लाइव, इंस्टाग्राम और यूट्यूब के जरिये मांगल गीतों की शानदार प्रस्तुति से हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। जिस कारण लोगों को झुकाव अपने पौराणिक मांगल गीतों की ओर हुआ। खासतौर पर युवा पीढ़ी के युवाओं को नंदा की ये अनूठी मुहिम बेहद पसंद आई। नंदा सती बच्चों को हारमोनियम बजाने और मांगल गीतों को गाने की ट्रेनिंग भी देती हैं। कोरोना काल में नंदा ने बच्चों को ऑनलाइन प्रशिक्षण भी दिया।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं मांगल गर्ल
मांगल गर्ल नंदा सती बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वो न केवल एक बेहतरीन मांगल गायिका है अपितु प्रतिभाशाली छात्रा और खिलाडी भी है जबकि एनसीसी की होनहार छात्राओं में शुमार है।वास्तव में देखा जाए तो मांगल गर्ल नंदा सती ने अपनी छोटी सी उम्र में मांगल गीतों को सहेजने का जो बीड़ा उठाया है वो अनुकरणीय तो है ही अपितु नई पीढ़ी के युवाओं के लिए उदाहरण भी है की कैसे अपनी माटी और जड़ों से जुड़ा जा सकता है। नंदा ने उत्तराखंड के मांगल गीतों को एक नयी पहचान दिलाई है इसलिए लोग उन्हें मांगल गर्ल के नाम से जानते हैं।